पटना (नवल कुमार)। भाजपा के साथ मिलकर वर्ष 2005 में बिहार की कमान संभालने वाले नीतीश कुमार ने इस बार पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। खास बात यह है कि इस बार उनके सहयोगी लालू प्रसाद हैं। वहीं लालू प्रसाद जिनका विरोध करके वे वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कुमार की सफलता कोई तुक्का मात्र नहीं था।
बताते चलें कि कुमार बिहार अभियांत्रिकी महाविद्यालय, के छात्र रहे हैं, जो अब राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, पटना के नाम से जाना जाता हैं। वहां से उन्होंने विद्युत अभियांत्रिकी में उपाधि हासिल की थी। वे 1974 एवं 1977 में जयप्रकाश बाबू के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में शामिल रहे थे, एवं उस समय के महान समाजसेवी एवं राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे। वे पहली बार बिहार विधानसभा के लिए 1975 में चुने गये थे। 1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष बने। 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया और उसी वर्ष वे नौंवी लोकसभा के सदस्य भी चुने गये थे। 1990 में वे पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में बतौर कृषि राज्यमंत्री शामिल हुए। 1991 में वे एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गए और उन्हे इस बार जनता दल का राष्ट्रीय सचिव चुना गया तथा संसद में वे जनता दल के उपनेता भी बने। 1989 और 2000 में उन्होंने बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1998 -1999 में कुछ समय के लिए वे केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे और अगस्त 1999 में गैसाल में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्रीपद से अपना इस्तीफा दे दिया।
सन् 2000 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें सिर्फ सात दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा। उसी साल वे फिर से केन्द्रीय मंत्रीमंडल में कृषि मंत्री बने। मई 2001 से 2004 तक वे वाजपेयी सरकार में केन्द्रीय रेलमंत्री रहे। 2004 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने बाढ एवं नालंदा से अपना पर्चा दाखिल किया, लेकिन वे बाढ की सीट हार गए। नवंबर 205 , में राष्ट्रीय जनता दल की बिहार में पंद्रह साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेकने में सफल हुए और मुख्यमंत्री के रूप में उनकी ताजपोशी हुई। सन् 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में अपनी सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों के आधार पर वे भारी बहुमत से अपने गठबंधन को जीत दिलाने में सफल रहे और पुन: मुख्यमंत्री बने। 2014 में उन्होनें अपनी पार्टी की संसदीय चुनाव में खराब प्रदर्शन के कारण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। परंतु श्री मांझी की भाजपा से बढ़ती नजदीकी देश श्री कुमार ने उनसे मुख्यमंत्री पद छीन लिया और फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। भाजपा ने उनके इस कदम को दलित विरोधी करार दिया और दलित वोटरों को साधने के लिए उसने श्री मांझी को अपने पाले में शामिल कर लिया। इसके अलावा भाजपा ने श्री कुमार के आधार वोट कुशवाहा-कुर्मी में सेंधमारी करने के लिए उपेंद्र कुशवाहा के रालोसपा को भी शामिल कर लिया।
बहरहाल, वर्ष 2015 के चुनाव में जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके डीएनए तक को दूषित कहा तो अन्य भाजपा नेताओं ने मर्यादा की सीमायें भी लांघी। परंतु कुमार धीर और गंभीर बने रहे। इसका फायदा उनके विकास पुरूष की छवि को मिला और लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय ने सत्ता की वापसी का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जाहिर है अपनी गंभीरता और मति की धीरता के चलते नीतीश कुमार न केवल कांग्रेसियों बल्किह संघ नेताओं के तारीफ पा चुके हैं। यही नहीं खबरें तो यहां तक भी रही कि बीजेपी अध्ययक्ष अमित शाह जब नागपुर पार्टी की हार की सफाई देने पहुंचे तो संघ प्रमुख मोहन भागवत् ने भी उनके विकास कार्यों, जनता तक अपने संदेश को ठीक से पहुंचाने और उनके गंभीर रूप की तारीफ की। इधर, इस बात में कोई दो राय नहीं की नीतीश कुमार में एक बदलाव साफतौर पर दिखाई दे रहा है, उसकी बानगी या झलक चुनाव परिणाम आने के बाद उनकी पहली प्रेस कांफ्रेंस में अपने विरोधियों का भी सम्माकन करने बात में दिखाई दी थी। बहरहाल, नीतीश कुमार के इस इस नये और बदले हुए रूप के सभी कायल हो रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं इस बदलाव के पीछे नीतीश के पीएम बनने की महत्वीकांक्षा साफ दिखाई देती है। (साभार आईबीएन)
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