ऋषिकेश। जीवन में कितना भी धन ऐश्वर्य की सम्पन्नता हो लेकिन यद मन में शान्ति नहीं है तो वह व्यक्ति कभी भी सुख नहीं रह सकता। वहीं जिसके नरा ध्न की कमी भ्रले ही हो सख सुविधाओं की कमी हो परन्तु उसका मन यदि शान्त है तो वह व्यक्ति वास्तव में परम सुखी है। वह हमेशा मानकि असंतुलन से दूर रहेगा।
श्री सुदामा चरित्र प्रसंग पर विस्तार से चर्चा करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि श्री सुदामा जी के जवन में धन की कमी थी, निर्धनता थी लेकिन वह स्वयं शान्त ही नहीं परम शान्त थे। इसलिये सुदामा जी हमेशा सुखी जीवन जी रहे थे। क्योकि उनके पास ब्रह्म रूपी धन था। धन की तो उनके जीवन में न्यूनता थी। परन्तु भाव की पूर्णता थी। हमेशा भाव से ओत-प्रोत होकर प्रभु नाम में लीन रहते थे। उनके घर में वस्त्र आभूषण तो दूर अन्न का एक कण भी नही था। जिसे लेकर वो प्रभु की द्वारिका धीश के पास जा सके। परन्तु सुदामा जी की धर्म पत्नी सुशीला के मन में इच्छा थी, मन में बहुत बड़ी भावना थी कि हमारे प्रति भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के पास खाली हाथ न जाय। सुशीला जी चार घर गई और चार मुठ्ठी चावल मांगकर लायी और वही चार मुठ्ठी चावल मांग कर लायी और वही चार चार मुठ्ठी चावल लेकर श्री सुदामा जी प्रभु श्री द्वारिका धीश जी के पास गये और प्रभु ने उन चावलों का भोग बडे ही भाव के साथ लगाया। उन भाव भावित चावलों का भोग लगााकर प्रभु ने यही कहा कि हमार भक्त हमें भाव से पत्र, पुष्प फल अथवा जल ही अर्पण करता है तो मै उस बड़े ही आदर के साथ ग्रहण करता हूँ। प्रभु ने चवल ग्रहण कर कर श्री सुदामा जी को अपार सम्पत्ति प्रदान कर दी।
परमार्थ गंगातट पर पिछले गुरुवार से चल रही श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन वृन्दावन के प्रख्यात भागवत कथा वाचक आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कहा कि इस पावन सुदामा प्रसंग पर सार तत्व बताते हुए समझाया कि व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति हैं। तो वह हमेशा कार्य शील बना रहेगा क्योकि बड़प्पन अमीरी से नही इमान दारी और सजन्नता से प्राप्त होता है। श्रीमद् भागवत कथा के अतिम दिन होली महोत्सव धूम धाम से मनायी गयी। जिसमें आचार्य श्री द्वारा होली खेल रहे बाके बिहारी, बांके विहारी की देख छटा मेरो मन है गयो लरा न्यरा आदि भजनों को बड़े ही भाव के साथ गुन-गुनाया गया। जिससे हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने फूल की होली का आनन्द प्राप्त किया। श्रीमद् भागवत कथा के अतिम दिन परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदा नन्द सरस्वती जी व महामन्डलेश्वर अंसगानंद जी ने फूल की होली का आनन्द प्राप्त किया।
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