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राष्ट्रपति की नसीहत, लुभावनी अराजकता सुशासन नहीं होती

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को सरकारों को सचेत किया कि देश की जनता भ्रष्टाचार को लेकर गुस्से में है और अगर इसे खत्म नहीं किया गया तो मतदाता उन्हें हटा देंगे। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार ऐसा कैंसर है, जो लोकतंत्र को कमजोर करता है तथा राज्य की जड़ों को खोखला करता है। यदि भारत की जनता गुस्से में है तो इसका कारण है कि उन्हें भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी दिखाई दे रही है। अगर सरकारें इन खामियों को दूर नहीं करतीं तो मतदाता उन्हें हटा देंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में पाखंड का बढ़ना भी खतरनाक है। चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते हैं। जो लोग मतदाताओं का भरोसा चाहते हैं उन्हें केवल वही वादा करना चाहिए जिन्हें पूरा करना संभव है। उन्होंने कहा कि सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोक-लुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। झूठे वादों की परिणति मोहभंग में होती है जिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है सत्ताधारी वर्ग। उन्होंने कहा कि यह क्रोध केवल तभी शांत होगा जब सरकारें वह परिणाम देंगी जिनके लिए उन्हें चुना गया था अर्थात सामाजिक और आर्थिक प्रगति और कछुए की चाल से नहीं, बल्कि घुडदौड़ के घोड़े की गति से। महत्वाकांक्षी भारतीय युवा उसके भविष्य से विश्वासघात को क्षमा नहीं करेंगे। जो लोग सत्ता में हैं उन्हें अपने और लोगों के बीच भरोसे में कमी को दूर करना होगा। जो लोग राजनीति में हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि हर एक चुनाव के साथ एक चेतावनी जुड़ी होती है कि परिणाम दो अथवा बाहर हो जाओ। मुखर्जी ने कहा कि मैं निराशावादी नहीं हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि लोकतंत्र में खुद में सुधार करने की विलक्षण योग्यता है। यह ऐसा चिकित्सक है, जो खुद के घावों को भर सकता है और पिछले कुछ वर्षों की खंडित तथा विवादास्पद राजनीति के बाद 2014 को घावों के भरने का वर्ष होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में भारत विश्व की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ती एक अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। देश की अर्थव्यवस्था में पिछले 2 वर्षों में आई मंदी कुछ चिंता की बात हो सकती है, परंतु निराशा की बिलकुल नहीं। फिर सुधार की हरी कोंपलें दिखाई देने लगी हैं। इस वर्ष की पहली छमाही में कृषि विकास की दर बढ़कर 3.6 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था उत्साहजनक है। राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 2014 हमारे इतिहास का चुनौतीपूर्ण समय है। हमें राष्ट्रीय उद्देश्य तथा देशभक्ति के उस जज्बे को फिर से जगाने की जरूरत है, जो देश को अवनति से उठाकर उसे वापस समृद्धि के मार्ग पर ले जाए। युवाओं को रोजगार दें। वे गांवों एवं शहरों को 21वीं सदी के स्तर पर ले आएंगे। उन्हें एक मौका दें और आप उस भारत को देखकर दंग रह जाएंगे जिसका निर्माण करने में वे सक्षम हैं। मुखर्जी ने कहा कि यदि भारत को स्थिर सरकार नहीं मिलती तो यह मौका नहीं आ पाएगा। इस वर्ष हम अपनी लोकसभा के 16वें आम चुनावों को देखेंगे। मुखर्जी ने कहा कि इससे पहले कि मैं हमारे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आपको फिर से संबोधित करूं, नई सरकार बन चुकी होगी। आने वाले चुनाव को कौन जीतता है यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह बात कि चाहे जो जीते उसमें स्थायित्व, ईमानदारी तथा भारत के विकास के प्रति अटूट प्रतिबद्धता होनी चाहिए। हमारी समस्याएं रातोंरात समाप्त नहीं होंगी। उन्होंने कहा कि हम उथल-पुथल से प्रभावित विश्व के एक ऐसे हिस्से में रहते हैं, जहां पिछले कुछ समय के दौरान अस्थिरता पैदा करने वाले कारकों में बढ़ोतरी हुई है। सांप्रदायिक शक्तियां तथा आतंकवादी अब भी हमारी जनता के सौहार्द तथा हमारे राज्य की अखंडता को अस्थिर करना चाहेंगे, परंतु वे कभी कामयाब नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि हमारे सुरक्षा तथा सशस्त्र बलों ने मजबूत जनसमर्थन की ताकत से यह साबित कर दिया है कि वे उसी कुशलता से आंतरिक दुश्मन को भी कुचल सकते हैं जिससे वे हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश सदैव खुद से तर्क-वितर्क करता है। यह स्वागतयोग्य है, क्योंकि हम विचार-विमर्श और सहमति से समस्याएं हल करते हैं, बल प्रयोग से नहीं। परंतु विचारों के ये स्वस्थ मतभेद हमारी शासन व्यवस्था के अंदर अस्वस्थ टकराव में नहीं बदलने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सवाल जायज है कि क्या हमें राज्य के सभी हिस्सों तक समतापूर्ण विकास पहुंचाने के लिए छोटे-छोटे राज्य बनाने चाहिए। बहस वाजिब है, परंतु इसे लोकतांत्रिक मानदंडों के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'फूट डालो और राज करो' की राजनीति हमारे उपमहाद्वीप से भारी कीमत वसूल चुकी है। यदि हम एकजुट होकर कार्य नहीं करेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी समस्याओं के समाधान खुद ढूंढने होंगे। देशवासियों को हर तरह के ज्ञान का स्वागत करना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो यह देश को गहरे दलदल के बीच फंसने के लिए छोड़ने के समान होगा। उन्होंने कहा कि लेकिन लोगों को अविवेकपूर्ण नकल का आसान विकल्प नहीं अपनाना चाहिए, क्योंकि यह भटकाव में डाल सकता है। भारत के पास सुनहरे भविष्य का निर्माण करने के लिए बौद्धिक कौशल, मानव संसाधन तथा वित्तीय पूंजी है। (साभार)
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