भुवनेश्वर। उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय में 07 सितंबर को सायंकाल खड़ा बोली हिन्दी के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चंद के साहित्यिक योगदानों पर आधारित एक संगोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता हिन्दी के जानेमाने विद्वान, लेखक और अनुवादक डा शंकरलाल पुरोहित ने की। भारतेन्दु हरिश्चन्द की तस्वीर पर पुष्प निवेदितकर हिन्दी माह:2019 के उपलक्ष्य में संगोष्ठी का आरंभ सीमा अग्रवाल द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। पुस्तकालय के संगठन सचिव अशोक पाण्डेय ने बताया कि एक समय ऐसा था जब सितंबर माह में केवल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता था लेकिन आज सच्चाई यह है कि सितंबर को सभी सरकारी और अर्द्ध सरकारी संस्थानों, स्कूलों और कालेजों में हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ी और हिन्दी माह के रुप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि खड़ी बोली हिन्दी के जन्म दाता भारतेन्दु हरिश्चन्द का जन्म 09 सितंबर, 1850 को बनारस में हुआ था। जब वे पांच साल के थे तो उनकी माताजी पार्वती देवी का निधन हो गया और जब वे 10 साल के हुए तभी उनके पिता गोपाल दास उपनाम गिरधर दास चल बसे। उन्होंने निज भाषा उन्नत को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया। उन्होंने कुल 68 रचनाएं की जिनमें कुल 17 नाटक भी उन्होंने लिखा। सत्य हरिश्चंद उनका काफी लोकप्रिय नाटक है। वे परदुख कातर व्यक्ति थे जिनका निधन 06जनवरी 1885 में हुआ। प्राध्यापिका डा वेदुला रामालक्ष्मी ने हिन्दी की यात्रा वीरगाथा काल से लेकर भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल तक का सुंदर और स्पष्ट विवेचन प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में स्वरचित कवितावाचन करनेवालों में नारायण दास मावतवाल, सुप्रिया नाग, अनुप अग्रवाल, ऋतु महिपाल, मंजुला अस्थाना महंती, अंजना भुरा, सीमा अग्रवाल, नियाजुद्दीन और हास्य-विनोद कवि भाई किशन खण्डेलवाल आदि शामिल थे। संगोष्ठी के अध्यक्ष डा शंकरलाल पुरोहित ने बताया कि खड़ी बोली हिन्दी के जन्मदाता की यादें बनारस में आज भी सुरक्षित है और आज हमसब को खड़ी बोली के साथ-साथ सभी भाषाओं को प्रोत्साहन देना चाहिए जिससे कि महात्मागांधी का सपना साकार हो सके और सभी हिन्दुस्तानी हिन्दी को बोलचाल से लेकर साहित्य सृजन आदि में उन्मुक्त रुप से प्रयोग कर सकें। उन्होंने कवियों को नित्य नई-नई कविता लेखने हेतु भी अनुप्रेरित किया। आभार प्रदर्शन सुभाष भुरा पुस्तकालय के मुख्य संरक्षक ने किया। प्रस्तुति : अशोक पाण्डेय
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