लंदन (रेनेटा मौरा), बीबीसी न्यूज ब्राजील। 27 साल की लौरा टेक्सीरिया हर महीने माहवारी के दौरान निकलने वाले खून को इकट्ठा करके वह अपने चेहरे पर लगाती हैं. इसके बाद बचे हुए खून को पानी में मिलाकर अपने पेड़ों में डालती हैं. 'सीडिंग द मून' नाम की ये प्रथा कई पुरानी मान्यताओं से प्रेरित है, जिनमें माहवारी के खून को उर्वरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था.
इस प्रथा को मानने वाली महिलाएं अपने पीरियड को अपने ही अंदाज में जीती हैं. लौरा बीबीसी को बताती हैं, "जब मैं अपने पेड़ों में पानी डालती हूं तो मैं एक मंत्र का जाप करती हूँ, जिसका मतलब है- मुझे माफ करना, मैं आपसे प्यार करती हूं और आपकी आभारी हूँ." लौरा कहती हैं कि जब वह अपने खून को अपने चेहरे और शरीर पर लगाती हैं तो वह सिर्फ़ आँखें बंद करती हैं और शुक्रगुजार महसूस करती हैं, और अपने अंदर शक्ति का संचार होते हुए महसूस करती हैं. लौरा के लिए ये प्रथा महिलाओं को सशक्त बनाने से भी जुड़ी हुई है.
वह कहती हैं, "समाज में सबसे बड़ा भेदभाव मासिक धर्म से जुड़ा हुआ है. समाज इसे खराब मानता है. सबसे बड़ा शर्म का विषय भी यही है क्योंकि महिलाएं अपने पीरियड के दौरान सबसे ज्यादा शर्मसार महसूस करती हैं." साल 2018 में 'वर्ल्ड सीड योर मून डे' इवेंट को शुरू करने वालीं बॉडी-साइकोथेरेपिस्ट, डांसर और लेखक मोरेना काडोर्सो कहती हैं, "महिलाओं के लिए सीडिंग द मून एक बहुत ही सरल और उनके मन को शक्ति देने वाला तरीका है." बीते साल इस इवेंट के दौरान दो हजार लोगों ने अपनी माहवारी के दौरान निकले खून को पेड़ों में डाला था. मोरेना कहती हैं, "इस कार्यक्रम के आयोजन का मकसद ये था कि लोग ये समझें कि माहवारी के दौरान निकलने वाला खून शर्म का विषय नहीं है बल्कि ये सम्मान और ताकत का प्रतीक है."
मोरेना के मुताबिक, उत्तरी अमरीका (मेक्सिको समेत) और पेरू में जमीन पर माहवारी के दौरान निकलने वाले खून को जमीन पर फैलाया गया ताकि उसे उर्वर बनाया जा सके. ब्राजील की यूनीकैंप यूनिवर्सिटी में 20 साल से इस मुद्दे पर शोध कर रहीं मानवविज्ञानी डानियेला टोनेली मनिका बताती हैं कि दूसरे समाजों में पीरियड के दौरान निकलने वाले खून को लेकर एक बहुत ही नकारात्मक रुख है.
वह बताती हैं, "माहवारी को बेकार का खून बहना माना जाता है और इसे मल और मूत्र की श्रेणी में रखा जाता है जिसे लोगों की नजरों से दूर बाथरूम में बहाना होता है." 1960 में महिलावादी आंदोलनों ने इस सोच को बदलने की कोशिश की थी और महिलाओं को उनके शरीर के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. इसके बाद कई कलाकारों ने माहवारी से निकले खून के प्रतीक का इस्तेमाल अपने राजनीतिक, पर्यावरणीय, सेक्शुअल और लैंगिक विचारों को सामने रखने में किया. इंटरनेट पर इस प्रथा के बारे में जानकारी पाने वालीं रेनेटा रिबेरियो कहती हैं, "सीडिंग माई मून प्रथा ने मुझे पृथ्वी को एक बड़े गर्भाशय के रूप में देखने में मदद की. इस विशाल योनि में भी अंकुरण होता है जिस तरह हमारे गर्भाशय में होता है." दुनिया भर में 14 से 24 साल के बीच की उम्र वाली 1500 महिलाओं पर किए गए सर्वेक्षणों में सामने आया है कि कई समाजों में आज भी ये विषय वर्जनाओं में शामिल है. जॉन्सन एंड जॉन्सन ने ब्राजील, भारत, दक्षिण अफ्रÞीका, अर्जेंटीना और फिलीपींस में ये अध्ययन किया. इस अध्ययन में सामने आया कि महिलाएं सेनिटरी नैपकिन खरीदने में शर्म महसूस करती हैं. इसके साथ ही पीरियड के दौरान महिलाएं अपनी सीट से उठने में भी शर्म महसूस करती हैं. फेडरल यूनिवर्सिटी आॅफ बहिया से जुड़ीं 71 साल की समाज मानव विज्ञानी सेसिला सार्डेनबर्ग बताती हैं कि उन्हें अपना पहला पीरियड उस दौर में हुआ था जब लोग मुश्किल से ही इस बारे में बात करते थे.
वह कहती हैं कि इस विषय से जुड़ी शर्म को दूर करने के लिए जरूरी है कि महिलाएं इस बारे में बात करें और आजकल की महिलाएं अपनी माहवारी को लेकर शर्मसार नहीं दिखती हैं. लौरा बताती हैं कि इस प्रथा के लिए सभी लोग तैयार नहीं हैं.
अपने अनुभव को साझा करते हुए वह कहती हैं, "इंस्टाग्राम पर सिर्फ 300 लोग मुझे फॉलो करते थे. मैंने इस प्रथा का अनुसरण करने के बाद एक तस्वीर पोस्ट की." ब्राजील के एक विवादित कॉमेडियन डेनिलो जेन्टिलि ने इस तस्वीर को अपने 16 मिलियन फॉलोअर्स के साथ साझा किया. लेकिन उन्होंने लिखा, "पीरियड के दौरान निकलने वाला खून सामान्य है लेकिन उसे अपने चेहरे पर लगाना असामान्य है." लेकिन इस पोस्ट पर 2300 से ज्यादा कमेंट्स आए जिनमें से ज्यादातर नकारात्मक थे. लौरा कहती हैं कि ये किस्सा सिर्फ बताता है कि ये विषय आज भी कितना वर्जित है. वह कहती हैं, "लोग सोचते हैं कि अगर कोई चीज उनके लिए सामान्य नहीं है तो वह चीज जरूर ही एक गलत होगी. वह सोचते हैं कि वह अपने मोबाइल फोनों के पीछे छिपकर किसी को गालियां दे सकते हैं." "ये मेरे शरीर से निकला तरल पदार्थ है और ये मैं तय करूंगी कि कौन सी चीज असामान्य है और कौन सी चीज नहीं. मैं किसी अन्य व्यक्ति की जिÞंदगी में हस्तक्षेप नहीं कर रही हूं." लोगों को भद्दी गालियां दिया जाना असामान्य होना चाहिए. मैं उस दिन ये करना बंद करूंगी जब लोग पीरियड के दौरान निकले खून को प्राकृतिक चीज की तरह देखना शुरू कर दें.
साभार बीबीसी हिन्दी
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