भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे हों या भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा अथवा अमर सिंह, ये लोग जब भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता की तारीफ करते थे तो लगता था कि शायद मजाक कर रहे हैं। भाजपा ने पिछले चार वर्षों में राहुल गांधी की छवि को इतने खराब ढंग से गढ़ रखा था कि वह एक मिथक-सा बन गया था और टुटने का नाम ही नहीं ले रहा था। लेकिन इस बार हुए गुजरात चुनाव में भले कांग्रेस हारी हो, भाजपा जीती हो, पर सर्वाधिक लाभ राहुल गांधी को हुआ है। राहुल गांधी के बारे में भाजपा द्वारा बनाई गई ‘अक्षम नेता’ वाली छवि की मिथक टूट गई है। गुजरात चुनाव में राहुल गांधी द्वारा की गई कड़ी मेहनत और उनकी रणनीतिक कौशल ने यह सिद्ध किया है कि वो किसी से कम नहीं है। कांग्रेस किसी चुनाव में फाइट न कर सके इसलिए माऊथ पब्लिसिटी के द्वारा भाजपा व उससे जुड़े नेताओं ने राहुल गांधी को कथित रूप से एक ‘अक्षम नेता’की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया था। जबकि उनकी सोच, समझ, व्यक्तित्व भाजपा के बड़े से बड़े नेताओं से भी बड़ा है, जिसे उन्होंने गुजरात चुनाव में सिद्ध किया है। आप खुद सोचिए जहां केन्द्र की पूरी कैबिनेट, पीएम नरेन्द्र मोदी जैसा मुख वक्ता, करीब सभी भाजपा के मुख्यमंत्री गुजरात में डेरा डाले हुए थे। उनका सबका जवाब अकेले राहुल गांधी को देना था। इसलिए यह कह सकते हैं कि गैर कांग्रेसी नेताओं द्वारा की जाने वाली राहुल गांधी की तारीफ सही साबित हुई है।
आपको बता दें वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व ही भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी को ‘पप्पू’ (अबोध, भोला-भाला, कम बुद्धि वाला बालक) कहना शुरू कर दिया था। राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि गढ़ने के लिए भाजपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। हालात यहां तक पहुंच गए थे कि भाजपा और संघ के नेता अपनी सभाओं में केवल ‘पप्पू’ कह देते थे तो लोग उसका आशय राहुल गांधी से लगा लिया करते थे। भाजपा नेताओं के हिसाब से राहुल गांधी ‘पप्पू’ शब्द के पर्याय बन चुके थे। दिलचस्प यह है कि अपनी बिगड़ती छवि के बावजूद राहुल गांधी ने एकबार भी भाजपा के ‘पप्पू’ रूपी हमले का जवाब नहीं दिया। बल्कि वे यही कहते रहे कि आपको (भाजपा नेताओं को) जो कहना है कहो, हम न रुकेगे, न थकेंगे, सिर्फ अपना काम करेंगे और जनता को सच्चाई बताएंगे। आखिरकार वह दिन आ ही गया जब राहुल गांधी स्वतः ‘पप्पू’ वाली अपनी छवि से बाहर आ गए। गुजरात चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देकर कांग्रेस का मामूली अंतर से हार जाना कांग्रेस और राहुल गांधी के पक्ष में शानदार संदेश है। दिलचस्प है कि गैर भाजपाई अन्य दलों में भी राहुल गांधी की स्वीकार्यता बढ़ी है। गैर भाजपाई दलों को यह कमी दिखाई दे रही थी कि आखिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वे किस नेता की छतरी के नीचे एकजुट होंगे ताकि भाजपा को शिकस्त दिया जा सके। गुजरात चुनाव की कड़ी टक्कर ने राहुल गांधी के रूप में वह नेता दे दिया है, जिसकी विपक्षी दलों को तलाश थी।
गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि वह माने या न माने पर बीजेपी को जबरदस्त झटका लगा है। कांग्रेस के लिए अच्छा रिजल्ट रहा है। राहुल ने कहा है कि ये नतीजे पीएम मोदी और बीजेपी के लिए संदेश हैं। कांग्रेस पार्टी बीजेपी से लड़ेगी। पीएम मोदी हमारे कैंपेन का जवाब नहीं दे पाए। पीएम मोदी विकास की बात कर रहे हैं लेकिन उसका जवाब नहीं दे पाए। गुजरात चुनाव में वह अपने बारे में बोल रहे थे और कांग्रेस पार्टी के बारे में बोल रहे थे। उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। हमने तीन चार महीने काम किया है और रिजल्ट आपने देखा है। हमें वहां पता लगा जो गुजरात का मॉडल है उसे वहां के लोग मानते ही नहीं है, वह खोखला है। जातिवाद और जीएसटी के सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि मोदी जी कहते हैं कि विकास की जीत है लेकिन चुनाव में न विकास की बात हो रही थी न नोटबंदी की न जीएसटी की। मोदी जी ने भ्रष्टाुचार के मामले में नॉनस्टॉीप बात की लेकिन राफेल या जय शाह के विषय में क्योंी बात नहीं करते। गौरतलब है कि नतीजों में बीजेपी ने गुजरात में सरकार बना ली है और कांग्रेस बीजेपी से कुछ सीट पीछे रह गई है। खास बात यह है कि बावजूद इसके राहुल गांधी का हौसला कम नहीं हुआ है। राहुल गांधी पूरे जोश में हैं। उन्हें लगता है कि खुद को अजेय साबित करने की कोशिश करने वाले नरेन्द्र मोदी को हरा पाना बहुत मुश्किल नहीं है। क्योंकि मोदी ने जनता से जितने भी वादे किए थे, अधिकतर में वे फेल साबित हुए हैं।
इस गुजरात चुनाव की खासियत क्या है? 22 साल बाद साल 2022 तक गुजरात में बीजेपी काबिज़। ये सच है लेकिन ज़्यादा क़ाबिले ग़ौर बात है राहुल गांधी का क़दम जमाना। अभी तक 'पप्पू' कहलाने वाले राहुल गांधी से बीजेपी इतना घबरा गई कि पूरी केंद्र सरकार गुजरात का किला संभालने में लग गई। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपने गढ़ में 34 रैलियाँ करनी पड़ीं। गुजरात चुनाव सिर्फ़ बीजेपी के जीत के लिए नहीं बल्कि राहुल गांधी के राजनीति में धमक के साथ आने के लिए याद किया जाएगा। ये तो कांग्रेस को भी मालूम था कि वो गुजरात के चुनाव में जीत हासिल नहीं करेगी लेकिन बीजेपी को इतनी कड़ी टक्कर देगी ये किसी ने नहीं सोचा था। गुजरात में दशकों से सबसे मज़बूत नेता मोदी को अदने से राहुल गांधी ने इतनी कड़ी टक्कर दी जिसके लिए बीजेपी तैयार नहीं थी। 1995 के बाद पहली बार कांग्रेस ने बीजेपी को इतना कड़ा मुकाबला दिया है। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की पूरी सेना के सामने राहुल गांधी काफी हद तक अकेले ही डटे रहे। इस बार न उनका साथ देने के लिए उनकी माँ सोनिया गांधी आईं और न ही उनकी बहन प्रियंका गांधी गुजरात में दिखीं। कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता बाद में चुनाव प्रचार में दिखे। हालांकि, उनकी भूमिका भी अतिथियों जैसी थी। इस चुनाव में राहुल गांधी की ख़ास बात जो दिखी वो थी उनकी रणनीति और दूसरा उनका व्यक्तित्व। गुजरात के चुनाव में राहुल गांधी एक नए अंदाज़ में दिखे।
गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने अपनी भाषा पर संयम रखा। इस चुनाव में हर तरफ से विवादित बयान बरस रहे थे लेकिन राहुल गांधी इस ट्रैप में नहीं फँसे। राहुल गांधी ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मोदी या किसी भी बड़े नेता पर व्यक्तिगत हमला नहीं बोला। हालांकि, बीजेपी नेता और ख़ुद पीएम मोदी राहुल पर निशाना साधने से पीछे नहीं हटे। पीएम मोदी को 'नीच आदमी' कहने वाले कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के विवादित बयान पर राहुल गांधी ने बिना समय खोए कार्रवाई की। उन्होंने फ़ौरन निंदा की साथ ही अय्यर को पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। राहुल गांधी ने एक तरफ़ अनुशासन का नया उदाहरण पेश किया, वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस में सबको संकेत भी दिया कि उन्हें हल्के में न लिया जाए। मज़ेदार बात ये भी थी कि बीजेपी ने अभी तक विवादित बयान देने पर किसी नेता के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की है। इस कार्रवाई से राहुल गांधी को वोट मिले या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन उनके इस काम ने नई मिसाल ज़रूर पेश की। सबके बावजूद यह सवाल लोगों के दिमाग से निकल नहीं रहा है कि राहुल के इतना मेहनत के बावजूद भाजपा गुजरात में कैसे जीत गई। इस बाबत अपने फेसबुक पोस्ट के सहारे वरिष्ठ पत्रकार व लम्बे समय तक बड़े मीडिया हाऊस में सम्पादक रहे देवप्रिय अवस्थी कहते हैं कि भाजपा की जीत का एकमात्र कारण चुनाव कार्यक्रम और आचार संहिता लागू होने के बाद जीएसटी दरों में रियायत की घोषणा है। इस घोषणा ने सूरत, अहमदाबाद, वडोदरा और राजकोट जैसे बड़े शहरों के व्यापारियों व दूसरे वोटरों की भाजपा के प्रति नाराजगी घटा दी। अवस्थी लिखते हैं कि चुनावी घोषणा के बाद जीएसटी दरों में रियायत नहीं मिलती तो भाजपा सत्ता में नही आती।
यूपी में बड़े दलित नेता की पहचान रखने वाले प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष व पूर्व मंत्री दीपक कुमार कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में अदम्य साहस और ऊर्जा है, जो अन्य नेताओं में कम देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि तमाम अवरोधों व गुजरात में हार के बाद भी कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में बड़ी कामयाबी हासिल की है। यदि इसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जिस ऊर्जा, लगन और मेहनत से राहुल गांधी काम कर रहे हैं वह सिद्ध करता है कि 2019 का चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। बकौल दीपक कुमार, भाजपा और संघ के नेताओं ने राहुल गांधी की छवि को खराब करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे (राहुल जी) विरोधियों की गतिविधियों से विचलित होने के बजाय शिद्दत से अपने काम में लग रहे। जनसेवा को मिशन मानकर सांगठनिक सुदृढ़ता राहुल गांधी का लक्ष्य रहा। आज राहुल गांधी कामयाबी की राह पर दौड़ रहे हैं। भाजपा के आला नेताओं की बकवासबाजी देश की जनता समझने लगी है। निश्चित रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव मतदाता भाजपा को सबक सिखाएंगे।
यूपी में बड़े दलित नेता की पहचान रखने वाले प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष व पूर्व मंत्री दीपक कुमार कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में अदम्य साहस और ऊर्जा है, जो अन्य नेताओं में कम देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि तमाम अवरोधों व गुजरात में हार के बाद भी कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में बड़ी कामयाबी हासिल की है। यदि इसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जिस ऊर्जा, लगन और मेहनत से राहुल गांधी काम कर रहे हैं वह सिद्ध करता है कि 2019 का चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। बकौल दीपक कुमार, भाजपा और संघ के नेताओं ने राहुल गांधी की छवि को खराब करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे (राहुल जी) विरोधियों की गतिविधियों से विचलित होने के बजाय शिद्दत से अपने काम में लग रहे। जनसेवा को मिशन मानकर सांगठनिक सुदृढ़ता राहुल गांधी का लक्ष्य रहा। आज राहुल गांधी कामयाबी की राह पर दौड़ रहे हैं। भाजपा के आला नेताओं की बकवासबाजी देश की जनता समझने लगी है। निश्चित रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव मतदाता भाजपा को सबक सिखाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार हैं)
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