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बीएचयू प्रकरणः अगर राष्ट्रप्रेम यही है तो ईश्वर ही इस देश का मालिक है

यह भी पढ़ेंः पीएम मोदी ने बीएचयू बवाल को बताया गंभीर, पूर्व छात्रा की आपबीती, हमने भी झेला हस्तमैथुन, छेड़छाड़   
बनारस (काशीनाथ सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार)। मैं 32 सालों तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय में नौकरी कर चुका हूं और 64 सालों से इस यूनिवर्सिटी को देख रहा हूं. इसके पहले जो भी आंदोलन हुए हैं या तो छात्र संघ ने किए हैं या छात्रों ने किए हैं. यह पहला आंदोलन रहा है जिसमें अगुवाई लड़कियों ने की और सैकड़ों की तादाद में लड़कियां आगे बढ़कर आईं. वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर धरना दे रही थीं. वे धरने पर इसलिए बैठी थीं कि उस रास्ते से प्रधानमंत्री जाने वाले थे जो इस क्षेत्र के सांसद भी हैं. लड़कियों का ये हक़ बनता था कि वे अपनी बातें उनसे कहें. इसके बाद प्रधानमंत्री ने तो अपना रास्ता ही बदल लिया और चुपके से वे दूसरे रास्ते से चले गए. लड़कियों की समस्या ये थी कि उनकी शिकायतें न तो वाइस चांसलर सुन रहे थे और न ही प्रशासन. वे 'बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ' का नारा देने वाले देश के प्रधानमंत्री से अपनी बात कहना चाहती थीं. बहरहाल ये हो नहीं सका. लड़कियों ने वाइस चांसलर के आवास पर धरना दिया. पुलिस ने सिंह द्वार पर भी लाठी चार्ज किया और वीसी आवास पर भी किया. इसमें सबसे शर्मनाक बात ये है कि लाठी चार्ज करने में महिलाएं पुलिसकर्मी नहीं थीं. लाठी बरसाने वाली पुरुष पुलिस थी. उन्होंने लड़कियों की बेमुरव्वत पिटाई की और यहां तक कि छात्रावास में घुसकर पुलिस ने लाठी चार्ज किया. ये बनारस के इतिहास में पहली ऐसी घटना हुई थी जबकि काशी हिंदू विश्वविद्यालय को देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी माना जाता है. पूर्वांचल पिछड़ा हुआ इलाका है और ये लड़कियां इसी पिछड़े इलाके से आती हैं. उन्होंने आगे बढ़कर पूरे राज्य को और पूरे देश को ये संदेश दिया. ये बनारस के लिए बड़ी बात थी. सबसे बड़ी समस्या यही थी. छेड़खानी तो एक बहाना था. बहुत दिनों से गुबार उनके दिल के भीतर भरा हुआ था. लड़कियों ने ख़ुद अपने बयान में कहा था कि महिला छात्रावासों को जेल की तरह बनाया जा रहा है और वॉर्डनों का बर्ताव जेलर की तरह है. यानी वे क्या पहनें-ओढ़ें, क्या खाएं-पीएं, कब बाहर निकलें, कब अंदर आएं, ये निर्णय वे करती हैं. लड़के और लड़कियों के बीच भेद-भाव किया जाता है, खान-पान से लेकर हर चीज़ में. बीएचयू में ज़माने से एक मध्ययुगीन वातावरण बना हुआ है और ये चल रहा है. कभी इसे कस दिया जाता है तो कभी इसमें ढील दे दी जाती है. इसलिए लड़कियों की सारी बौखलाहट इस आंदोलन के रूप में सामने आई. छेड़खानी तो हुई थी, लेकिन इतनी लड़कियां केवल छेड़खानी के कारण इकट्ठा नहीं हुई थीं. छेड़खानी उनके साथ भी होती रही होगी, लेकिन कहीं न कहीं उनके जीवन पर जो अंकुश लगाया गया है, उसे लेकर पहली बार उन्होंने अपनी अस्मिता और अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आवाज़ उठाई. 'लड़कियों को दायरे में रहना चाहिए' जैसी सोच वाले लोग हमेशा रहे हैं. ये ब्राह्मणवादी और सामंतवादी सोच है. इस बदले हुए ज़माने में बहुत से लोग ये चाहते हैं कि लड़कियां जींस न पहनें. जबकि लड़कियां जींस पहनना चाहती हैं. वे उन्मुक्त वातावरण चाहती हैं. अपनी अस्मिता चाहती हैं. वो लड़कों जैसी बराबरी चाहती हैं. उन्हें ये आज़ादी नहीं देने वालों में उनके अभिभावक भी हैं और लड़कियां उनसे भी कहीं न कहीं असंतुष्ट हैं. एक तरफ़ तो ऐसी सोच रखने वाले लोग हैं और दूसरी तरफ़ इस समय सत्ता में जो राजनीतिक पार्टी है उसकी सोच भी पुरानी मान्यताओं वाली है. दुख की बात यही है. अभिभावकों की सोच तो बदली जा सकती है. जिनकी बेटियां पढ़ रही हैं, वे समय के साथ बदल जाएंगे, लेकिन ऊपर की सोच का जो दबाव बना हुआ है, उसे कैसे बदला जाए. आवाज़ें बराबर उठती रही हैं, लेकिन वे बेअसर होती रही हैं. बताया जाता है कि वाइस चांसलर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जु़ड़े रहे हैं. उनकी वहां से ट्रेनिंग हुई है. वे इसी सोच के हैं. इसी कारण से आंदोलन कर रही लड़कियों को राष्ट्रदोही कहा जा रहा था. ये एक ऐसा आरोप है जो किसी पर भी चस्पा किया जा सकता है. अगर राष्ट्र के प्रति प्रेम यही है तो ईश्वर ही इस देश का मालिक है. उन्होंने तो सीधे ही प्रतिरोध मार्च निकाला था. ये मार्च रविवार को निकाला गया था. बनारस के बुद्धिजीवी इस सोच के ख़िलाफ़ हैं. वे चाहते हैं कि लड़के और लड़कियों को बराबरी का हक़ मिले. आप सोचिए कि जो लोग लवजिहाद के विरोधी हैं, जो लड़के-लड़कियों को साथ तक नहीं देखना चाहते, वैलेटाइंस डे को निकलते हैं और घूरते रहते हैं कि कहां उन्हें इस तरह के दो दोस्त दिख जाएं और वे उनके साथ दुर्व्यवहार कर सकें. उन्हें मारने-पीटने का अवसर मिले, ऐसे लोगों के बारे में क्या कहा जा सकता है. प्रधानमंत्री ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. कई ऐसे मसले होते हैं जिनपर वे चुप्पी साध लेते हैं. जहां तक विश्वविद्यालय प्रशासन का सवाल है, वहां तो कोई एंटी-रोमियो स्क्वॉड नहीं है. ये कहा जा रहा है कि छेड़खानी करने वाले तत्व बाहरी लोग हैं और यही नहीं आंदोलन करने वाली लड़कियों को भी बाहर की राजनीति से जोड़ा जा रहा है. महानगरों की स्थिति से तुलना करके बनारस को देखा जा सकता है. हमारा मानना है कि बनारस की लड़कियों में इतना विवेक है कि वे ये तय कर सकती हैं कि उन्हें कहां और कब बाहर जाना है, किसके साथ जाना है और कब लौट आना है. वे स्वयं ये तय कर सकती हैं और उनपर विश्वास किया जाना चाहिए. गड़बड़ी तब होती है जब उन पर भरोसा नहीं किया जाता है. (बीबीसी हिंदी के रेडियो संपादक राजेश जोशी से बातचीत पर आधारित) साभार बीबीसी  
पीएम मोदी ने बीएचयू बवाल को बताया गंभीर 
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में छात्रा के साथ छेड़खानी और छात्रों पर लाठीचार्ज के मामले में पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की है। सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी ने इस घटना को गंभीर बताया। उधर, राज्य सरकार ने कहा है कि पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी गई है और जल्द ही कार्रवाई होगी। यूपी के राज्यपाल राम नाइक ने भी बताया कि मुख्य सचिव राजीव कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। यह समिति इस बात की भी जांच करेगी कि पुलिस ने किस तरह का बर्ताव किया और अन्य पहलुओं की भी जांच करेगी। राज्यपाल ने इस घटना को दुखद करार दिया। इस बीच वाराणसी के डीएम योगेश्वर राम मिश्रा ने आदेश दिया है कि बीएचयू के सुरक्षा गार्ड अब खाकी वर्दी नहीं पहनेंगे। उधर, इस मामले में राजनीति जारी है। सोमवार को समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर वाइस चांसलर गिरिश चंद्र त्रिपाठी को हटाने की मांग की। इस बीच शनिवार की रात हुए भारी बवाल और पुलिस लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर गाज गिरनी शुरू हो गई है। देर रात स्टेशन ऑफिसर लंका (SO), सीओ भेलपुर और एक अडिशनल सिटी मैजिस्ट्रेट को हटा दिया गया। सीओ को अकाउंट सेक्शन में भेज दिया गया है। वहीं पुलिस ने 1000 अज्ञात स्टूडेंट्स पर केस दर्ज किया है। बीएचयू परिसर में अभी भी माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। हॉस्टल नहीं खाली कराने के आदेश के बाद स्टूडेंट्स ने राहत की सांस ली है। बीएचयू प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि 25 से 27 सितंबर तक पूर्व निर्धारित परीक्षाएं अपने कार्यक्रम के अनुसार होंगी। साभार एनबीटी
पूर्व छात्रा की आपबीती, हमने भी झेला हस्तमैथुन, छेड़छाड़ 
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की छात्राएं अपनी सुरक्षा की मांग करते हुए यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन कर रही हैं। प्रदर्शन कर रही इन छात्राओं पर शनिवार को पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। जिसके बाद छात्राओं में और ज्यादा आक्रोश फैल गया। ये छात्राएं वीसी से मिलने की मांग कर रही थीं। लेकिन वीसी ने प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं से मुलाकात नहीं की। ऐसे मौके पर बीएचयू की एक पूर्व छात्रा ने यूनिवर्सिटी का अपना अनुभव साझा किया है। medium.com नाम की वेबसाइट पर लिखे एक लेख में जयंतिका सोनी नाम की बीएचयू की पूर्व छात्रा ने लिखा है कि चार साल हमने भी ये घटनाएं झेली हैं, आज के माहौल को देखकर मेरा भी खून खोल गया कि अभी भी वहां कुछ नहीं बदला है। पहले साल के अनुभव के बारे में सोनी ने लिखा है, ‘बीएचयू में फर्स्ट ईयर के दौरान मुझे निर्देश दिए गए कि हॉस्टल में 7 बजे से पहले पहुंचा जाना है। इसका खुद की सुरक्षा के लिए पालन करना है। एक दिन गर्मी की दोपहर में 3 बजे मैं मेरी एक दोस्त के साथ सेमी सर्केुलर रोड नंबर 5 के रास्ते स्विमिंग पुल से गांधी स्मृति महिला छात्रावास आ रही थी। तभी एक लड़का सफेद स्कूटर से आया और बिल्कुल हमारे सामने रुका। उसके बाद उसने हमारे सामने हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया। 17 साल की उम्र में यह मेरे लिए पहले मौका था कि मुझे यूनिवर्सिटी के अंदर यह सब कुछ देखने को मिला। मैं और मेरी दोस्त डर गए और वहां से भागने लगे। इसी साल मेरी एक दोस्त को विश्वकर्मा हॉस्टल के पास शाम को 5 बजे मोटरसाइकिल सवार दो लड़कों ने उसके साथ छेड़छाड़ की। वे लोग महिला की छाती को छूकर हंस रहे थे और यह उनकी मर्दानगी थी। पहले साल ने यह सिखा दिया कि हमें सेमी सर्कुलर रोड़ नंबर-5 का इस्तेमाल नहीं करना है।’ साथ ही उन्होंने लिखा कि सैकेंड ईयर की छात्रों को हॉस्टल में 8 बजे से पहले पहुंचना था। हमने एक्स्ट्रा केरीकुलर एक्टिविटीज के लिए एक घंटा ज्यादा मांगा था, लेकिन हमें नहीं दिया गया, हमें बताया गया कि महिला महाविद्यालय में हॉस्टल 6 बजे से पहले पहुंचना होता है। तीसरे साल के बारे में उन्होंने लिखा, ‘मैं एक दिन सुबह करीब 6-7 बजे सुबह की वॉक पर आईटीबीएचयू रोड़ पर निकली। वहां पर मेरी विश्वनाथ मंदिर से धनराजगिरी हॉस्टल तक एक स्कूटर से लड़के ने मेरा पीछा किया। मैं एक जूस की दुकान पर रुक गई, ताकि वह आगे निकल जाए। लेकिन उसने मेरा जीएसएमसी तक पीछा किया। मैंने उसके स्कूटर का नंबर नोट कर लिया था। जब मैंने इसके बारे में वार्डन और गार्ड से शिकायत की तो उन्होंने कहा कि वह किसी यूनिवर्सिटी स्टाफ का रिश्तेदार है। इसके बाद मैं मेरे एक पुरुष दोस्त के साथ सुबह की वॉक पर जाने लगीं।’ बीएचयू के चौथे साल के अनुभव के बारे में सोनी ने लिखा, ‘मेरे हिसाब से यह सितंबर या अक्टूबर का महीना रहा होगा, जब एक दोस्त का साइकिल रिक्शा से अपहरण करने की कोशिश की गई। यह घटना जीएसएमसी हॉस्टल और विश्वेश्वरा के कोने पर हुई। प्रॉक्टर घटनास्थल से करीब 200 मीटर दूर ही होंगे, तब भी इन बदमाशों ने अपहरण करने की हिम्मत की। लेकिन उस लड़की के साथ बैठी उसकी एक दोस्त ने उसे कसकर पकड़ लिया। जिसके बाद बदमाश वहां से भाग गए। इसके बाद जीएसएमसी की छात्रों ने प्रदर्शन कर सुरक्षा बढ़ाने की मांग की। एक सप्ताह के प्रदर्शन के बाद हॉस्टल के सामने लाइटें लगाई गईं और ब्लॉक की एंट्री पर गश्ती शुरू की गई। हालांकि, वे लोग केवल साथ घूम रहे लड़के और लड़कियों को ही ढूंढ़ते थे। उनका बदमाशों पर कोई नियंत्रण नहीं था। यह पेट्रोलिंग भी दो सप्ताह बाद बंद हो गई। इसके बाद हमने फैसला किया कि अब हम लोग साइकिल रिक्शा की जगह ऑटो रिक्शा का इस्तेमाल करेंगे।’ आखिर में जयंतिका सोनी ने लिखा है कि यूनिवर्सिटी में कुछ नहीं बदला है। वहां आज भी वैसे ही हालात हैं, जैसे 10 साल पहले थे। आज भी वहां पर लड़कियां असुरक्षित हैं। साभार जनसत्ता
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