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यूपी फतह के लिए कांग्रेस तैयार, भाजपा-सपा बेकरार, बसपा भी देगी प्रचार को धार

कांग्रेस को नवजीवन देने के लिए प्रशांत किशोर की रणनीति के आगे सब फ्लाप, केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा और यूपी में सत्तासीन सपा में दिख रही सर्वाधिक बेचैनी, कई दिग्गजों के पार्टी छोड़ने के बाद अब नए सिरे से तैयारी में जुट गई है बसपा 
राजीव रंजन तिवारी 
नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनाव की तैयारियों को अमली जामा पहनाने की जोड़-तोड़ मची हुई है। वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तैयारियों के मामले कांग्रेस के हालात बेहद रोचक और रोमांचक दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अभियान की कमान जबसे संभाली है तबसे जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ी कांग्रेस में जान आ गई है। हालात ये है कि प्रशांत किशोर की कुटनीतिक रणनीति के आगे सारी पार्टियां बौनी दिख रही हैं। बताते हैं कि तेजी से बढ़ रहे कांग्रेस के ग्राफ को देख सबसे ज्यादा बेचैनी केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा और सूबे में सत्तासीन सपा में दिख रही है जबकि कई नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद बसपा भी नए सिरे से अपने चुनाव अभियान की तैयारी में जुट गई है। कहा जाता है कि केन्द्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। ये बात कुछ हद तक सही भी है। क्योंकि देश का सबसे बड़ा राज्य होने के नाते यूपी में ही लोकसभा की सर्वाधिक सीटें होती हैं। यही वजह है कि सारी पार्टियां अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के बहाने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में भी जुटी हुई हैं। वैसे सबका टारगेट वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना है। उसके बाद ही तय होगा कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में किस पार्टी की क्या दशा-दिशा होगी। खैर, यदि देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की चर्चा करें तो पता चलेगा कि वह यूपी की सत्ता से दो दशक से भी ज्यादा समय से बाहर है। फलस्वरूप यूपी में कांग्रेस की सांगठनिक दशा भी धीरे-धीरे बिगड़ती चली गई है। इस स्थिति में यूपी में मृतप्राय कांग्रेस में जान फूंकने का जिम्मा प्रशांत किशोर ने उठा रखी है। जानकार बताते हैं कि जबसे प्रशांत किशोर ने यूपी में कांग्रेस को नवजीवन देने का बीड़ा उठाया है तबसे लगातार पार्टी की दशा सुधरती हुई दिख रही है। जिस तरह तेजी से यूपी में कांग्रेस नवजीवन पा रही है, उसे देख यदि यह कहा जाए कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस उभरोगी, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हालांकि विरोधी भाजपा व अन्य दलों के नेता तथा समर्थक इसे कांग्रेस का दिवास्वप्न बता रहे हैं, लेकिन यह सत्य है यूपी में कांग्रेस मजबूत हो रही है। कहा जा रहा है कि समय से पहले चुनाव की तैयारी में जुट जाने की वजह से कांग्रेस लगातार बढ़त बनाते हुए दिख रही है। इसका जीता-जागता उदाहरण सोशल मीडिया है। फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्स एप्प पर तेजी से कांग्रेस के पक्ष में हवा बनती हुई दिख रही है। कोई माने या ना माने, पर इसे प्रशांत किशोर की कुशल रणनीति ही कहेंगे कि उन्होंने चुनाव से आठ-दस माह पहले ही कांग्रेस को मुख्य धारा में लाकर खड़ा कर दिया है। यूं कहें कि जिस तरह तेजी से कांग्रेस बढ़ रही है यदि इसी गति से वह बढ़ती रही तो बेशक यूपी की सत्ता पर काबिज भी हो सकती है। वैसे प्रशांत किशोर अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, पर बता दें कि यह वही प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के लिए काम किया था। मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने में प्रशांत किशोर की भूमिका को कभी भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उसके बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीतिक कौशल का परिचय देते हुए नीतीश कुमार को पुनः सत्तासीन कराया। जबकि बिहार चुनाव जीतने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत दो दर्जन से अधिक उनके मंत्री जीजान से लगे हुए थे, लेकिन प्रशांत किशोर की रणनीति के आगे सब फेल हो गए। अब प्रशांत किशोर के कंधे पर यूपी में कांग्रेस का भार है। निश्चित रूप से वे यहां भी सफल होंगे। अब चर्चा केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा और यूपी में सत्तासीन सपा की। इन दोनों दलों में कांग्रेस की बढ़त की वजह से बेचैनी दिख रही है। सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियों द्वारा लगातार प्रशांत किशोर की काट खोजी जा रही है, लेकिन प्रशांत किशोर की अभेद्य रणनीतिक कौशल को कोई भी चुनौती देने को तैयार नहीं है। हाल ही में केन्द्र में हुए मंत्रिमंडल के विस्तार में भी यूपी चुनाव के मद्देनजर कई मंत्री बनाए गए, बावजूद इसके भाजपा का गिरता ग्राफ थमने का नाम नहीं ले रहा है। दिलचस्प यह है कि यूपी में ज्वलंत मुद्दे की तलाश में जुटी भाजपा अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दिशा-निर्देशन में तेजी से हाथ-पांव मार रही है, लेकिन उसका कुछ खास असर अभी नहीं दिख रहा है। बाद में क्या होगा, इसका आकलन फिलहाल नहीं किया जा सकता। कमोबेश यही स्थिति सपा की भी है। यहां भी चुनाव के मद्देनजर नित नई घोषणाएं की जा रही हैं, चुनावी रणनीतियां बन रही हैं, पर वह कुछ खास कारगर नहीं दिख रहा है। सपा द्वारा भी तमाम उलटफेर करते हुए जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश चल रही है, लेकिन विभिन्न कारणों से हताश-निराश सपाइयों में जोश नहीं आ रहा है। रहा सवाल बसपा का तो उस खेमे में फिलहाल शांति का आलम है। जानकार बताते हैं कि बसपा के कुछ दिग्गजों के हाल ही पार्टी छोड़ने की वजह से बिगड़े हालात को सुधारने के लिए मायावती नए सिरे से रणनीति बनाने में जुट गई हैं। कहा जा रहा है कि बसपा की रणनीतियां बहुत जल्द धरातल पर दिखने लगेंगी। सबके बावजूद यूपी में बसपा की स्थिति भाजपा व सपा से बेहतर बताई जा रही है। बहरहाल, देखना यह है कि यूपी विधानसभा चुनाव के बाद किस पार्टी की क्या स्थिति रहती है। फिलहाल, कांग्रेस बढ़त बनाए हुए है, इसमें कोई शक नहीं है।  
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, उनसे 8922002003 पर संपर्क किया जा सकता है)
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