नई दिल्ली (विराग गुप्ता)। राजनीतिक गतिरोध के शिकार उत्तराखंड के जंगल भयानक आगजनी के शिकार हैं और अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसफ के ट्रांसफर से शहरी मीडिया में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया है। जस्टिस जोसफ की खंडपीठ ने ही 21 अप्रैल को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला देकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। मीडिया रिपोर्ट्स में जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर को राष्ट्रपति शासन में दिए गए उस बोल्ड फैसले से जोड़ा जा रहा है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन ही स्टे कर दिया था। पर ऐसे अनुमान तथ्य और कानून की कसौटी पर शायद ही खरे उतरें।
बेदाग करियर वाले जस्टिस जोसफ अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं और उनके पिता केके मैथ्यू भी सुप्रीम कोर्ट के जज थे। उत्तराखंड के चीफ जस्टिस बनने से पहले जस्टिस जोसफ केरल हाईकोर्ट के जज थे और अब केरल के पड़ोसी राज्य में ट्रांसफर उनके लिए दंडात्मक तो नहीं हो सकता। हैदराबाद हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में तेलंगाना तथा आंध्रप्रदेश, दो राज्य हैं जहां जस्टिस जोसफ का ट्रांसफर उनकी पदोन्नति ही माना जायेगा। एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल रद्द किया था जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाला कोलेजियम ही हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर करता है। हाईकोर्ट में जजों की 450 से अधिक वेकेंसी हैं जिनके लिए कोलेजियम द्वारा नियुक्ति अनुशंसा के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा जजों की नियुक्ति को समयबद्ध मंजूरी नहीं दी जा रही जिस पर चीफ जस्टिस ठाकुर ने क्षोभ भी व्यक्त किया था। जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर के साथ तीन अन्य जजों को सुप्रीम कोर्ट जज हेतु नियुक्त करने की चर्चा है और एक सीनियर एडवोकेट को सीधे सुप्रीम कोर्ट जज बनाया जा रहा है। जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर होने के बाद उनकी जगह किसी नए चीफ जस्टिस की नियुक्ति नहीं हुई, जिस वजह से अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के सीनियर-मोस्ट जज ही कार्यवाहक चीफ जस्टिस की जिम्मेदारी निभाएंगे।
इसके पहले फरवरी 2016 में कई हाईकोर्ट जजों का ट्रांसफर हुआ था। मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस कर्णन का कोलकाता ट्रांसफर उनकी न्यायिक अनुशासनहीनता के लिए दंड माना गया था। परंतु जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर पर मीडिया द्वारा किसी भी प्रकार का विवाद गलत और अनैतिक होगा। जस्टिस जोसफ ने राष्ट्रपति शासन के मामले पर अपना फैसला दे दिया है और अब उनके ट्रांसफर से सरकार को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिल सकेगा। इसके अलावा कोलेजियम प्रणाली के तहत यह ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने किए है जिनकी साख पर कोई सवाल खड़ा नहीं हो सकता। पर इतना तो तय है कि जजों के ट्रांसफर पर विवाद से बचने के लिए ट्रांसफर नीति को सुस्पष्ट और पारदर्शी बनाना होगा जिससे भविष्य में ऐसे कयास रोक कर न्यायपालिका की साख पर आंच को रोका जा सके...।
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