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वसंत-गीतः मेरे दिल के अरमानों ने, सतरंगी छटा बनाई रे

डा. नागेन्द्र पति त्रिपाठी
डा.नागेन्द्र पति त्रिपाठी 
सरसों फूली कोयल कूकी, अधरों पर लाली छाई रे 
मेरे दिल के अरमानों ने, सतरंगी छटा बनाई रे।

सपने पगले होने लगे, आँखों से नींद पराई रे 
बिन तेरे कहाँ शहनाई बजी, यह टीस बड़ी उलझाई रे। 

हवा भी अब हो गई नशीली, बैरन ने प्रीत जगाई रे 
मन्मथ अब और सताने लगा, न सहा जाए तन्हाई रे। 

दशों दिशाएं सुरभित हो गईं, फूलों ने बारात सजाई रे
बड़ा बेदर्दी तू है छलिया, क्या मेरी याद न आई रे। 

बिन तेरे जमाना बैरी लगे, यह नेह बड़ा हरजाई रे 
आजा साजन फागुन में तू, बोल रही तरुणाई रे।

(62ए/2, मुनीरिका गाँव, नई दिल्ली)
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