अहमदाबाद। गुजरात दंगों (2002) के पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाली सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद की मुश्किलें शायद दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। विदेशों से आए धन के दुरुपयोग से लेकर धोखाधड़ी के आरोपों के कारण गुजरात पुलिस और सीबीआई जाँच कर रही है। गिरफ़्तारी से बचने के लिए ये दोनों अदालत का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं और फ़िलहाल उन्हें राहत भी मिल गई है। मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन दोनों को अग्रिम ज़मानत दे दी। तीस्ता सीतलवाड़ के ख़िलाफ़ आरोपों की शुरुआत लगभग दो साल पहले एक ख़त से हुई।
साल 2013 में अहमदाबाद स्थित गुलबर्ग सोसाइटी के 12 निवासियों ने पुलिस आयुक्त को ख़त लिखकर तीस्ता के ख़िलाफ़ जांच की अपील की थी। 2002 में गुलबर्ग सोसाइटी में हुए दंगों में 69 लोग मारे गए थे जिनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री भी थे। गुलबर्ग सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोगों का आरोप है कि तीस्ता ने गुलबर्ग सोसाइटी में एक म्यूज़ियम बनाने के लिए विदेशों से लगभग डेढ़ करोड़ रुपए जमा किए लेकिन वे पैसे उन तक कभी नहीं पहुंचे। जनवरी 2014 में तीस्ता ,उनके पति जावेद आनंद, एहसान जाफ़री के पुत्र तनवीर जाफ़री और दो अन्य के ख़िलाफ़ अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में एफ़आईआर दर्ज की गई। जांच के बाद पुलिस ने दावा किया कि तीस्ता और जावेद ने उन पैसों से अपने क्रेडिट कार्ड के बिल चुकाए. पुलिस के अनुसार क्रेडिट कार्ड से उन्होंने गहने और शराब ख़रीदी थी।
अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के प्रमुख उस समय एके शर्मा थे जो 2015 में सीबीआई के संयुक्त निदेशक बनाए गए हैं। अब सीबीआई ने उन दोनों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर उनके ज़रिए चलाए जा रहे दो एनजीओ 'सबरंग ट्रस्ट' और 'सिटीजन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस' के दफ़्तरों पर छापे मारे हैं। लेकिन सीबीआई का केस भी उसी एक आरोप पर आधारित है कि उन्होंने म्यूज़ियम बनाने के लिए पैसे लिए और उनका ग़लत इस्तेमाल किया। इसी साल मार्च में गुजरात सरकार ने केंद्रीय गृहमंत्री को एक ख़त लिखकर तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद के एनजीओ की जांच करने की अपील की थी। गुजरात सरकार का आरोप है कि अमरीका स्थित फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से तीस्ता ने अपने एनजीओ के लिए जो पैसे लिए उनका इस्तेमाल उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और विदेशों में भारत की छवि ख़राब करने के लिए किया। गुजरात सरकार के ख़त के केवल एक सप्ताह बाद गृह मंत्रालय ने फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन को निगरानी सूची में डाल दिया। बाद में इस केस को सीबीआई के हवाले कर दिया गया।
सीबीआई ने जुलाई में तीस्ता, जावेद आनंद और उनके एक सहयोगी ग़ुलाम मोहम्मद के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की। सीबीआई ने उनके दफ़्तर और घर की तलाशी भी ली। इस बीच, अहमदाबाद पुलिस ने भी उनको गिरफ़्तार करने की कोशिश की लेकिन तीस्ता और जावेद को अब तक अदालत से राहत मिलती रही है। तीस्ता और जावेद आनंद ने एक बयान जारी कर सभी आरोपों को ख़ारिज किया है। बयान में कहा गया है, ''हम लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है जो कि हमारी राय में द्वेषपूर्ण और प्रायोजित हैं। एफ़आईआर में कहा गया है कि हमने गुलबर्ग मेमोरियल के लिए पैसे जमा किए थे। चार लाख 60 हज़ार की ये रक़म अब भी रखी है, क्योंकि इस प्रोजेक्ट को हम पूरा नहीं कर सके।" बयान में आगे लिखा है, "आज तक 24 हज़ार पन्नों के सबूत देने के बावजूद हमारे ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाख़िल नहीं किए गए हैं। गुजरात सरकार केवल इस बात में इच्छुक दिखती है कि वो हमें किस तरह से लोगों के बीच अपमानित करे और हिरासत में लेकर पूछताछ करे।" दोनों का आरोप है कि सीबीआई और गुजरात पुलिस के केस केवल उन्हें क़ानूनी पचड़ों में फंसाए रखने के लिए हैं ताकि इस सरकार की विचारधारा को चुनौती देने के हमारे प्रयासों को नुक़सान पहुंचाया जा सके।
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