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नई दिल्ली (धर्मेन्द्र कुमार सिंह, राजनीतिक और चुनाव विश्लेषक)। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सवा साल पूरा करने वाले हैं और समीक्षा हो रही है कि मोदी के कामकाज से देशवासी खुश हैं या नाराज हैं। मोदी के कामकाज समझने से पहले ये जान लेने की जरूरत है कि 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को देश के कुल मतदाता के 20 फीसदी वोट मिले था, जो मतदान हुआ उसमें 31.34 फीसदी वोट मिले थे और एनडीए को करीब 38 फीसदी वोट मिले। लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी का चुनावी नारा था अच्छे दिन आने वाले हैं। अबकी बार मोदी सरकार। इस नारे के सहारे मोदी दिल्ली की गद्दी तक पहुंच गये लेकिन देश में अच्छे दिन आए हैं या नहीं इस पर बहस जारी है। एबीपी न्यूज-नीलसन के सर्वे को देखें तो अच्छे दिन नहीं आए हैं लेकिन अगर चुनाव होता है तो फिर मोदी की ही सरकार बनने की संभावना है। अगर चुनाव होते हैं तो 52 फीसदी लोग एनडीए को वोट देंगे जबकि 17 फीसदी लोग यूपीए को वोट देने का इरादा जाहिर किया है। ऐसा क्या हुआ और क्यों हुआ कि कांग्रेस के वोट बढ़ नहीं रहें हैं तो बीजेपी के वोट घट नहीं रहें हैं।
दरअसल, कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार पर हमला करने के लिए तो सीख गई है लेकिन उनके पास कोई पॉलिसी,नीति और खाका का अभाव दिख रहा है। संसद के बाहर और भीतर मोदी पर हमला करके पार्टी खुश दिख रही है जबकि जमीनी स्तर पर कोई खास काम नहीं हो रहा है। बिहार में चुनाव होने वाले हैं, पार्टी लालू और नीतीश के वैशाखी पर ही चुनाव लड़ना चाहती है। उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में पार्टी को मजबूत करने की रणनीति का अभाव दिख रहा है। लोगों का लगता है कि भले मोदी राज में अच्छे दिन नहीं आए हैं लेकिन मोदी से बेहतर विकल्प भी नहीं दिख रहा है। लगता है कि मोदी की दुश्मन पार्टी अभी तक लोकसभा की हार से नहीं निकल नहीं पाई है। मोदी ने जो वादा किया था कमोबेश सभी चीजों पर काम शुरू हो गया है, हो सकता है कि इसका असर आनेवाले साल में दिखे। नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं तो लोगों की जिंदगी में क्या बदलाव हुआ है। 41 फीसदी लोगों ने माना है कि उनकी जिंदगी में बदलाव हुआ है, 15 फीसदी ने कहा है कि उनकी जिंदगी बदतर हो गई है जबकि 42 फीसदी लोगों की राय है कि मोदी राज में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
नरेन्द्र मोदी चुनाव के दौरान देश से भ्रष्ट्राचार खत्म करने का वादा किया था। जब वोटरों से सवाल किया गया कि क्या नरेन्द्र मोदी ने अपना वादा पूरा किया तो 37 फीसदी लोगों का कहना है कि नरेन्द्र मोदी ने वादा पूरा किया जबकि इसके विपरीत 59 फीसदी लोगों की राय है कि उन्होंने भ्रष्ट्राचार खत्म करने का वादा पूरा नहीं किया. भ्रष्ट्राचार ही नहीं बल्कि महंगाई कम नहीं होने से जनता परेशान है। मोदी ने चुनाव के दौरान वादा किया था कि वो जरूरत चीजों की कीमत को काबू करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 31 फीसदी लोगों की राय है कि मोदी सरकार ने महंगाई कम करने में सफल हुए जबकि लगभग दोगुना लोग यानि 67 फीसदी लोगों की राय है मोदी सरकार महंगाई कम करने में फेल हो गये। ये ध्यान देने की बात है बीजेपी को जीतने वोट 2014 के लोकसभा चुनाव में वोट मिले थे। खराब परिस्थिति में भी मोदी के समर्थन में उतने लोग दिख रहें हैं। नरेन्द्र मोदी की सरकार माने या न माने। लोकसभा में कांग्रेस पर भारी पड़े और या सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे को अभयदान दे दे लेकिन इसका असर जरूर मोदी सरकार पर पड़ा है। सरकार लोकसभा में बहुमत के आधार पर कांग्रेस की आवाज को दबाने में सफल हो गई है लेकिन जनता की आवाज को कैसे दबाएंगे. भले इसका असर फिलहाल नहीं दिखे लेकिन आनेवाले समय मे क्य होगा कहना मुश्किल है। जब वोटरों से ये सवाल किया गया कि भष्ट्राचार को खत्म करने की मोदी की मुहिम कमजोर हो गई क्योंकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफा नहीं मांगा गया। 43 फीसदी लोगों की राय है भ्रष्ट्राचार पर मोदी की मुहिम कमजोर हुई है जबकि 40 फीसदी लोगों की राय है कि उनकी मुहिम कमजोर नहीं हुई है। यहां पर मोदी के समर्थन में जितने लोग हैं वो बीजेपी और एनडीए को मिले वोट से ज्यादा है। मोदी सरकार के लिए चिंता की बात ये है कि उनके वोट गिर रहें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में 58 फीसदी एनडीए को मिले थे जो घटकर 52 फीसदी हो गये। एक साल में इतने वोट की गिरावट हो सकती है तो पांच साल में क्या होगा। ये मोदी सरकार के लिए सोचने और समझने की जरूरत है। (साभार एबीपी)
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