सीवान से राजीव रंजन तिवारी का विश्लेषण
एमएलसी चुनाव में दलीय ढांचे से इतर मजबूत हुई व्यक्ति वाद की जड़ें, पूर्व सांसद डा.मोहम्मद शहाबुद्दीन का जलवा अब भी कायम, अपनी संदिग्ध व्यूह रचना व दिग्भ्रमित शैली के कारण पराजित हुए राजद प्रत्याशी विनोद जायसवाल, भाजपा की भीतरी खींचतान व तमाम अवरोधों के बावजूद चुनावी बाजी जीतकर पार्टी में नए शक्तिकेन्द्र के रूप में उभरे एमएलसी टुन्नाजी पाण्डेय, व्यक्तिगत विवेक व मधुर शैली से टुन्नाजी पाण्डेय ने खींची सियासत की लंबी लकीर
जैसा कि आरंभ से ही www.newsforall.in (एनएफए) यह संकेत देता रहा है कि इस चुनाव में जो भी दलीय वोटों पर आश्रित होगा, उसकी लूटिया डूबनी तय है। क्योंकि इस चुनाव का मिजाज अन्य आम चुनावों से भिन्न होता है। विश्वस्त सूत्र दावा करते हैं सीटिंग एमएलसी होने के बावजूद टुन्नाजी पाण्डेय को दुबारा टिकट पाने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वजह स्पष्ट है, भाजपा का एक मजबूत खेमा किसी और को टिकट दिलाने के मूड में था। यद्यपि वह खेमा खुद को टुन्नाजी पाण्डेय का सबसे बड़ा हितैषी बताता है। उस खेमे की नीति रही है कि जिस थाली में खाओ, उसी में छेद कर दो। कहा तो यहां तक जा रहा है कि आखिरकार जब टुन्नाजी पाण्डेय का टिकट फाइनल हुआ तो भाजपा का वह खेमा उनके साथ इस प्रकार काम करने लगा ताकि उनके मन में उस खेमे के प्रति अविश्वास पैदा न हो। चूंकि टुन्नाजी पाण्डेय व्यक्तिगत रूप से बेहद मृदुभाषी, हंसमुख, विलक्षण व सहज स्वभाव वाले व्यक्ति हैं, इसलिए उन्हें चुनाव के दो दिन पूर्व तक यह आभास नहीं हो सका कि उनके आस्तीन में सांप है। यूं कहें कि टुन्नाजी पाण्डेय के खर्चे पर विनोद जायसवाल का प्रचार करने वाले भाजपा के कुछ नेताओं के बारे में संकेत मिला तो www.newsforall.in (एनएफए) ने ही सबसे पहले इस बात को उजागर किया, जिसकी चर्चा जोरों पर छिड़ी। इस संबंध में साफ-साफ कह दिया गया था टुन्नाजी पाण्डेय के अपने ही कुछ लोग जो खुद को भाजपा के बड़े कर्णधार मानते हैं, जिस थाली में खा रहे थे, उसी में छेद करने की कोशिश में थे। www.newsforall.in (एनएफए) ने जब इस बात को बगैर किसी का नाम छापे उजागर किया तो संबंधित पत्रकार को कुछ भाजपा नेताओं ने तल्ख लहजे में धमकी देने की भी कोशिश की। जब उन नेताओं से यह कहा गया कि ज्यादा नाटकबाजी करने पर नाम का खुलासा भी किया जा सकता है, तब जाकर उनकी हेकड़ी ठंडी पड़ी। खैर, अंततः टुन्नाजी पाण्डेय चुनाव जीत गए। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इस जीत का सेहरा भाजपा संगठन के माथे बांधा जाए। यह जीत शत प्रतिशत टुन्नाजी पाण्डेय की हुई है, भाजपा की नहीं।
अब चलते है राजद-जदयू-कांग्रेस (जनता परिवार) के प्रत्याशी विनोद जायसवाल के खेमे की ओर। चुनाव परिणाम आने के बाद राजद में भी हार की समीक्षा हुई है। यदि सूत्रों की माने तो समीक्षा के दौरान इस पराजय के लिए पूरी तरह से राजद के जिला संगठन व प्रत्याशी विनोद जायसवाल की गलत कार्यशैली व उनके बाहरी होने को जिम्मेदार माना गया है। बताया गया कि राजद का सांगठनिक स्वरूप मौजूदा हालात में उतना बेहतर नहीं है जो अपने प्रत्याशी को पार्टी के नाम पर जीता सके। जबकि विनोद जायसवाल को समझाने वाले ने यह बता दिया था कि पूरी पार्टी शिद्दत से उन्हें चुनाव जीताने में लगी हुई है। अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि इस चुनाव में धनबल का बोलबाला रहता है, लेकिन धनबली होने के बावजूद विनोद जायसवाल ने राजद संगठन के बल पर चुनाव जीतने का सपना देख लिया। हां, एक काम जरूर हुआ, जिस बात ने विनोद जायसवाल के हौसले और मनोबल को बढ़ाया, वह था टुन्नाजी पाण्डेय खेमे के उनके कुछ विश्वस्त लोगों की विभीषणगिरी। टुन्नाजी पाण्डेय के लोगों द्वारा की जाने वाली विभीषणगिरी के कारण विनोद जायसवाल बिना चुनाव जीते ही हवा में उड़ने लगे। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि बेशक टुन्नाजी पाण्डेय और विनोद जायसवाल दोनों तरफ से आर्थिक लाभ लेकर टुन्नाजी के कुछ खास लोगों ने विनोद जायसवाल को सौ-डेढ़ सौ वोट दिलवाए भी हैं। दोनों खेमे से बातचीत करने के उपरांत यह बात सामने आई है कि मतदान से एक-दो दिन पूर्व जीत का सपना देखने वाले विनोद जायसवाल को जीताने के लिए टुन्नाजी पाण्डेय के अपने ही कुछ लोगों ने रफ्तार तेज कर दी थी। इस स्थिति से हताश होने के बजाय टुन्नाजी पाण्डेय ने यह मान लिया कि अब उन्हें अकेले ही चुनाव लड़ना है। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि मतदान से एक दिन पूर्व टुन्नाजी पाण्डेय ने खुद अपने चुनाव की कमान संभाली और शालीनतापूर्वक अपने लोगों पर नजर रखनी शुरू कर दी। नतीजा यह रहा कि दिग्भ्रमित विनोद जायसवाल को हारनी पड़ी और टुन्नाजी पाण्डेय ने अपने बलबूते जीत कर भाजपा को भी यह संकेत दे दिया कि भले संगठन प्रत्याशी से बड़ा हो, लेकिन जीत तो प्रत्य़ाशी की सूझबूझ पर ही निर्भर करती है।
अंत में अतिमहत्वपूर्ण चर्चा इसलिए करनी पड़ रही है इस एमएलसी चुनाव परिणाम ने जो संकेत दिए हैं वह यह है कि जेल में रहने के बावजूद पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन का जलवा अब भी कायम है। विनोद जायसवाल को जो भी वोट मिले हैं, उसका सबसे अधिक श्रेय मोहम्मद शहाबुद्दीन को ही जाता है, चाहे कोई कुछ भी कहे। यदि संगठन ने थोड़ा सा भी ज्यादा जोर लगाया होता तो शायद विनोद चुनाव जीत जाते।
बहरहाल, इस चुनाव के बाद भाजपा के भीतर एक बड़े शक्ति केन्द्र के रूप में टुन्नाजी पाण्डेय उभरे हैं। हालांकि टुन्नाजी पाण्डेय की इस सफलता को भाजपा के ही कई लोग पचा नहीं पा रहे है। इसलिए फिर से यह कहना पड़ रहा है कि इस चुनाव में टुन्नाजी पाण्डेय की जीत हुई है, भाजपा की नहीं। जहां तक पराजय का सवाल है तो वह राजद संगठन और प्रत्याशी विनोद जायसवाल के सिर ही मढ़ा जा सकता है। अब यदि इसे सियासी चश्मे से देखें तो यह साफ दिख जाएगा कि इस चुनाव में ना शहाबुद्दीन की ‘हार’ हुई है और ना ही भाजपा की ‘जीत’।
(लेखक चर्चित स्तंभकार व विदेश मामलों के ज्ञाता हैं। उनसे फोन नं.-08922002003, 07759954349 पर संपर्क किया जा सकता है)
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