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संपूर्ण सृष्टि के सारांश को समेटे शांति व समरसता का संवाहक बनेगा धरा धाम

पूर्वी उप्र की सोंधी माटी वाले गोरखपुर जिले के गांव भस्मा में चल रही है विश्वस्तरीय सर्वधर्म समभाव का संदेश देने वाला अद्वितीय परिसर 
गोरखपुर। दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां के लोग नक्सलवाद, कट्टरवाद, आतंकवाद, जातिवाद व धर्मवाद की धधकती आग में खुद को न जला रहे हों। पर, अफसोस कि समाज में जड़ें जमा चुकी इस असाध्य बीमारी का जितनी भी इलाज करने की कोशिश चल रही है, वह उतना ही बढ़ रहा है। मतलब ये कि पूरे मनोयोग से इन समस्याओं के निदान के लिए काम नहीं किया जा रहा है। स्वाभाविक है, इसकी जड़ें गहराती जाएंगी और मानव जीवन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद करता रहेगा। यानी जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य को सिर्फ संघर्ष में ही अपना जीवन बिताना होगा। भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर स्थित गांव भस्मा में परिसर के निर्माण की तैयारी में शिद्दत से जुटे इसके प्रमुख सौरभ पाण्डेय कहते हैं कि धरा धाम में संपूर्ण सृष्टि का सारांश दिखेगा, जो दुनिया भर में शांति, सद्भाव, समरसता और स्वतंत्रता की खुश्बू बिखेरेगा। सौरभ को यह विश्वास है कि धरा धाम शायद दुनिया में अद्वीतीय होगा। दरअसल, इसे सभी धर्मापलम्बियों के लिए इस कदर बनाना है कि चाहें कोई भी हो, यहां आने पर सभी आत्मिक शांति मिलेगी और जीवन जीने की कला को देखकर मानव जाति अभिभूत हो जाएगी, यह भी सौरभ का मानना है कि धरा धाम की प्राथमिकता मानव धर्म को जीवंत रखना और पूरी दुनिया में उसके सिद्धांतों को प्रतिपादित करना है। भस्मा में निर्माणाधीन धरा धाम के प्रमुख और मुख्य कर्ताधर्ता सौरभ पाण्डेय ने www.newsforall.in के साथ खास बातचीत में अपनी भावनाओं को शेयर किया। सबसे पहले उन्होंने धरा धाम के चार अक्षरों ‘ध, रा, धा, म’ को संक्षेप परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि ‘ध’ यानी धनेश (धन का स्वामी) और धर्मार्थ (धार्मिक कार्यों के लिए), ‘रा’ का मतलब रावचाव (अनुराग, प्रेम, प्रेमपूर्ण व्यवहार) और राजी (प्रसन्न, संतुष्ट), ‘धा’ यानी धारण (संभालना) व धाप (संतोष) और ‘म’ का तात्पर्य मनीषी (ज्ञानी, विद्वान), मनोज्ञ (प्रिय) व महत् (सर्वश्रेष्ठ) होता है। बकौल सौरभ पाण्डेय, 22 अप्रैल को हर साल दुनिया भर में अर्थ डे यानी धरा/पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। 191 देशों के लोग अपने-अपने स्तर पर इस दिन को विभिन्न तरीकों से मनाते हैं। इस दरम्यान धरती यानी धरा को बेहतर, सुरक्षित और हरी-भरी बनाने के बारे में संकल्प लेते हैं। इस ’अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग’ की सालाना परंपरा से धरती को क्या हासिल होता है? कहा नहीं जा सकता। हां, इतना जरूर है कि मनुष्यों के क्रियाकलापों से धरती मां बेहद दुखी हैं। आप समझ सकते हैं कि मां को दुख देने का परिणाम क्या होता है? सौरभ पाण्डेय के अनुसार, उनके सारे क्रियाकलाप अध्यात्म पर आधारित है और रहेगा। आध्यात्मिक काज और आवाज के लिए हम कृतसंकल्प हैं। इससे हम डिगने वाले नहीं हैं। बताते हैं कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के आध्यात्मिक सापेक्षवाद के सिद्धांत पर खोज जारी है परंतु अब तक कोई स्पष्ट विचार सामने नहीं आया। दरअसल, अध्यात्म विज्ञान एक मूल विज्ञान है और आधुनिक विज्ञान इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप है। अध्यात्म विज्ञान पूर्ण ज्ञान है जबकि आधुनिक विज्ञान अधूरा ज्ञान है, क्योंकि जब तक किसी कार्य या ज्ञान के माध्यम से हम ईश्वर तक न पहुंचें तब तक ज्ञान अधूरा रहता है तथा अधूरा ज्ञान हमेशा घातक होता है। अधूरे ज्ञान के परिणाम को दुनिया बड़े ही निराले अंदाज में देख और समझ रही है। उन्होंने कहा कि समाज का समरस होना ही चाहिए। समाज को समरस करने के लिए अनेक संगठन, संस्थाएं, सन्त-महात्मा हजारों वर्षों से प्रयत्नशील हैं। भविष्य में इस कार्य को यशस्वी करने की दरकार है। समरसता का अर्थ भी ध्यान में रखना आवश्यक है। लगभग पांच सौ वर्षों से सिख आन्दोलन यह कार्य कर रहा है और इस आन्दोलन ने संगत व पंगत एक करके समाज में समरसता के निर्माण में पर्याप्त सफलता पाई है। किन्तु सब कुछ समान होते हुए भी सिख व मजहबी सिख के बीच अन्तर अब भी कायम है। यूं कहें कि अब भी अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिल सकी है। एक अहम मुद्दे की चर्चा करते हुए सौरभ पाण्डेय ने कहा कि पद्म पुराण में विष्णु फलक से कहते हैं- "दान के लिए तीन समय होते हैं - नित्या (दैनिक) किया गया दान, नैमित्तिक दान (कुछ प्रायोजन के लिए किया गया दान) और काम्या दान (किसी इच्छा के पूरी होने के लिए किया गया दान)। इसके अलावा चौथी बार दान प्रायिक दान होता है जो मृत्यु से संबंधित है। दान वस्तुतः प्राप्ति का ही दूसरा नाम है बशर्ते कि देने की कला आती हो। आप जो देते हैं वही अपका है, शेष कुछ भी आपका नहीं। भौतिक जगत में भी यही होता है। दुनिया का नियम है कि इस हाथ से दे और उस हाथ से ले। यह प्रतिध्वनि बार-बार लौट कर आती है। उन्होंने कहा कि दान के प्रति हम सभी जागरूक, संयमित और संवेदनशील रहना चाहिए। यह सबके लिए जरूरी है। 21वीं सदी के 15वें वर्ष में धरा धाम के अवतरण के औचित्य के बाबत पूछे गए एक सवाल पर सौरभ पाण्डेय का कहना है कि इसे विधाता/प्रकृति की अनुकम्पा ही कहेंगे कि इस धरती पर जब-जब अन्याय का सूत्रपात हुआ है, तब--तब किसी ना किसी मनीषी का अवतार हुआ है और वह मानव धर्म की अवधारणा को प्रतिपादित करते हुए भूत, भविष्य और वर्तमान को इस कदर आलोकित किया है कि दुनिया चाहकर भी उसे भुला नहीं पाती। चूंकि प्रश्न धरा धाम से संबंधित है, इसलिए विषयांतर होने से पहले यह बताना जरूरी है कि दुनिया भर में पैर पसार चुके भय, भुख और भ्रष्टाचार से लड़ने का एकमात्र रास्ता अब केवल धरा धाम ही बचा है। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशन में दुनिया भर के तमाम देश भय, भुख और भ्रष्टाचार से दो-दो हाथ कर रहे हैं, पर यह बीमारी इस कदर असाध्य हो गई है कि खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। गौरतलब है कि ग्राम भस्मा स्थित धरा धाम की परिकल्पना को साकार करने के लिए भारत देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद निवासी सौरभ पाण्डेय ही वह मनीषी हैं, जिन्होंने भय, भुख और भ्रष्टाचार मुक्त समाज के निर्माण के लिए पूरी दुनिया में अलख जगाने का बीड़ा उठाया है। भय, भुख और भ्रष्टाचार रूपी राक्षसों/दानवों के आगे पूरी दुनिया मानों जैसे नतमस्तक हो चुकी है। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इसका उन्मूलन हो तो कैसे। हर वक्त सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज रहने वाले सौरभ पाण्डेय ही वह पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया को यह बताने का संकल्प लिया है कि इस धरा पर सिर्फ एक धर्म है। और वह है- ‘मानव धर्म’। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में इसे विडंम्बना ही कहेंगे कि सौरभ के शब्द कोष में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इत्यादि किसी भी धर्म का नाम अंकित नहीं है। वह सिर्फ ‘मानव धर्म’ को जानते हैं। मनुष्य चाहे किसी भी जाति, धर्म व समुदाय का क्यों ना हो, उसकी सुख-समृद्धि की अवधारणा को शिखरस्थ करना ही सौरभ का सपना है। भय, भुख और भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए अर्जुन की भांति लक्ष्य पर निशाना साधने वाले सौरभ के सारथी के रूप में धरा धाम ही उनके मनोबल को परवाज दे रहा है। यह वही धरा धाम है, जहां से निकलने वाली सर्व धर्म समभाव की खुश्बू से पूरा ब्रह्मांड गमकेगा। धनुर्धारी अर्जुन रूपी सौरभ के सारथी की भांति मार्गदर्शन करने वाले इस धरा धाम के निर्माण की प्रक्रिया शीघ्रतातिशीघ्र आरंभ होने वाली है। फिर देर किस बात बात की, आइए और आप भी मानव धर्म के उत्थान के लिए होने वाले इस महायज्ञ में आहूति डालिए, आध्यात्मिक चिंतन से नैसर्गिक सुख प्राप्त कीजिए और धरती के इस अनूठे अभियान में भागीदार बनिए। जिस तरह टोनी समारा ह्युमेनीटेरियम अलाइंस पूरे संसार में आध्यात्मिक प्रयोग से मानव चेतना के विकास के लिए काम कर रहा है, ठीक उसी तरह सौरभ पाण्डेय धरा धाम के सहारे अध्यात्मिक सूरज की सुनहरी किरणों से दुनिया को आलोकित करने की योजना बना रहा है। टोनी समारा ह्युमेनीटेरियम अलाइंस की भांति सौरभ पाण्डेय व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति करने से परे और कुछ देखते हैं। कुछ और हासिल करने के लिए अपनी आध्यात्मिक अपेक्षाओं के साथ समन्वय में वास्तविकता का निर्माण करने को प्रयासरत हैं। धरा धाम के प्रणेता सौरभ पाण्डेय दुनिया भर के उन लोगों को आमंत्रित करते हैं, जो अध्यात्म की राह पर चलकर नया पदचिन्ह बनाना चाहते हैं। परंपरागत और पुरानी प्रणाली को हेय दृष्टि से देखने वाले सौरभ वैचारिक सकारात्मकता की नई परिभाषा लिखने को व्याकुल है। सीधे शब्दों में कहें तो उसके मायने स्पष्ट होकर यही बोलेंगे कि 21वीं सदी के 15वे हर ऊर्जावान मानव (महिला पुरुष, छात्र, छात्राएं) जो नई विचारधारा को पुष्पित-पल्लवित करते हैं, वे धरा धाम से जुड़कर अपने सपने को साकार कर सकते हैं।                                                                                          (प्रस्तुतिः राजीव रंजन तिवारी)
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