भ्रष्टाचार समाप्त होगा की नहीं, नहीं मालूम। जन लोकपाल बनेगा की नहीं नहीं पता। आगे का तो पता नहीं, क्या होगा, लेकिन कांग्रेस का सफाया हो गया। इस अभियान की शुरुआत आप ने ही तो की थी। केजरीवाल किरन बेदी बाप बेटा वकील जब जंतर मंतर पर बैठे थे। तब साथ में भाजपा विद्यार्थी परिषद् के लोगों का साथ था। उसी समय कांग्रेस का ग्राफ नीचे गिर गया था। उसमे रामदेव घुसे, फिर सब अलग हुए और लड़ते रहे अलग-अलग ही सही कांग्रेस ही सब के निशाने पर रही। भ्रष्टाचार रहा और इसी में से एक शब्द निकला कुशासन। राजनीति में घुस गए अरविन्द। अन्ना हजारे ने प्रवृति और निवृति का खेल खेलते हुए। माहौल को ज़िंदा रखा संघ के वैचारिक तंत्र ने। बड़ी योजना से संसाधन जुटाए और नरेंद्र मोदी को आगे करके गुजरात माडल का जो बीन बजाया कि देश की त्रस्त जनता झूम पड़ी। परिणाम सामने है। कांग्रेस के पतन के ताबूत की पहली कील तो आप ने ही ठोंकी थी। याद है न जेल के भीतर का धरना। अब कभी फिर करना। आप को बधाई। इस चुनाव में सबसे बड़ा उथल पथल यह हुआ कि पहली बार देश की संसद में कोई विपक्षी पार्टी नहीं होगी। कोई विपक्ष का नेता नहीं होगा। भाजपा के अतिरिक्त सभी को 55 से कम सीटें मिलीं हैं। कोई एक भी पार्टी 55 सीट नहीं पा सकी। संविधान के मुताबिक बिपक्षी दल की मान्यता के लिए कम से कम 55 सीटें होना जरूरी है। जब विपक्षी पार्टी की मान्यता ही किसी दल को नहीं होगि तप बिपक्ष का नेता कैसे होगा। इसके लिए भी हजारे को बधाई। लोकतंत्र के लिए जन लोक पाल चाहिए था। विपक्ष ही ख़तम। देश की जनता को भी बधाई।खुला खेल फरुक्ख्हा वादी। कहावत है...गए थे पुत्र के लिए वरदान मांगने, सुहाग ही उफ्फर पडा। अब घुमो अन्ना हजारे। (श्री सरोज मिश्र जी के फेसबुक वाल से साभार)
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