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उम्र और दोस्ती का रिश्ता बेहद अजीब होता है

उम्र और दोस्ती का रिश्ता बेहद अजीब होता है। उम्र ढल जाती है, लेकिन दोस्ती ताउम्र जवां रहती है। इक लंबे वक्त के बाद दोस्तो से मिलने पर कल कुछ ऐसा ही अहसास हुआ। चेहरे जरूर बदले हुए थे, लेकिन आंखों में चमक और दिल में खुशी उतनी ही थी, जो मैने 25 साल पहले महसूस की थी। जब आंखों का एक-दूसरे से मिलना हुआ तो एक पल के लिए वो भी खुशी से भर आयी फिर अगले ही पल होठों पे मुस्कान और फिर देखते ही देखते शरारतो का दौर भी शुरू हो गया, ऐसा लगा मानो बीते हुए दिन वापिस लौट आयें हो। जब बातों का पुलिंदा खुला तो लगा मानो ये वक्त को अपने आगोश में समेट लेगा। देश-दुनिया की चिंता से परे हम अपनी छोटी सी दुनिया में ही खो गए। ऐसा लगा मानों कि हम किसी ध्यान में चले गए हों, जहां आनंद ही आनंद हो। कल का वो वक्त भले ही गुजर चला हो, लेकिन उस वक्त की यादें अभी ताजा हैं। शायद कुछ ऐसा ही महसूस होता है, जब दोस्त, इक लंबे वक्त के बाद इक-दूजे से मिलते हैं। ये सच है कि जिंदगी की कश्मकश में जूझते हुए इक आम आदमी के लिए रोजाना वक्त निकालना मुमकिन नही, फिर भी मन में एक बात खटकी कि आखिर इतनी देर क्यूं लगा दी। कल मैने तय किया कि हम मिलने के सिलसिले को अब थमने नही देंगे। इस मुलाकात ने मुझे एक और सीख दी, जो मै आपके साथ साझा करना चाहता हूं, शायद आपके कुछ काम आ सके। जब भी मै अपने आसपास देखता हूं तो तकरीबन 75 प्रतिशत लोगो को तनावग्रस्त पाता हूं और देखता हूं कि वो इससे मुक्त होने के लिए हैप्पीनेस थैरेपी एवं अन्य महंगे इलाज का सहारा लेते हैं। जबकि इलाज उनके पास ही है, लेकिन वो इसे तलाश नहीं पाए हैं। दरअसल, दोस्ती ही ये इलाज है। वो दोस्ती जिसे हमने अपने बिजी शेडूयल के चलते अपनी डिक्शनरी से बाहर निकाल फेका है। यकीन मनाईए जब आप दोस्तों के साथ अपना समय बिताना शुरू कर देंगे तो फिर आपको किसी थैरेपी की जरुरत नहीं पड़ेगी क्यूंकि जितना सुकून सच्ची यारियों में है वो महंगे इलाज या फिर किसी थैरेपी में नहीं। -अतुल मलिकराम
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