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तीन तलाक बिल लोकसभा में तीसरी बार पास, पक्ष में 303 तो विपक्ष में पड़े 82 वोट

नई दिल्ली। तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) को दंडनीय अपराध की श्रेणी में लाने वाला मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल लोकसभा में बृहस्पतिवार को कई घंटे की चर्चा के बाद तीसरी बार ध्वनिमत से पारित हो गया। बिल में संशोधन के लिए लाए गए विपक्षी सांसदों के प्रस्ताव गिर गए और यह बिल 82 के मुकाबले 303 मतों से पारित हो गया। वहीं, कांग्रेस, बसपा, तृणमूल और एनडीए की सहयोगी जदयू ने भी बिल के मौजूदा स्वरूप का विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया। विरोध में माकपा, द्रमुक और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां भी रहीं। वहीं बीजद ने तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने का विरोध करते हुए समर्थन दिया है। नरेंद्र मोदी सरकार के समक्ष इस बिल को अब राज्यसभा में पास कराना बड़ी चुनौती होगी, जहां एनडीए के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है। यह विधेयक तीन अध्यादेश के बाद लोकसभा में तीसरी बार पेश किया गया था। फिलहाल अब सरकार की कोशिश इसे इसी सत्र में राज्यसभा में पास कराने की होगी। मौजूदा सत्र को भी बढ़ा दिया गया है जो अब 7 अगस्त तक चलेगा। इससे पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक को निचले सदन में पेश करते हुए कहा, यह विधेयक नारी सम्मान और लैंगिक समानता से जुड़ा है। इस संबंध में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला दीवार पर टांगने के लिए नहीं है। उन्होंने कहा, एक साथ तीन तलाक पर रोक और सजा के लिए कानून जरूरी है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान सहित 20 प्रमुख इस्लामी देशों ने भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस पर कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि राम और रहीम को अगर आप एक मानेंगे तो देश में कानून पारित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि इसे आपराधिक बनाने पर ही हमारा विरोध है, हमारी सलाह के बाद आपने 3 संशोधन किए हैं, लेकिन आप अपनी बात घुमा फिराकर बिल में लेकर आए हैं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस सांसद सुदीप बंधोपाध्याय ने कहा कि हमारी शंकाओं को दूर नहीं किया गया है और न ही सरकार की ओर से जवाब दिया गया, विरोध स्वरूप हम सदन से वॉक आउट करते हैं। लोकसभा में कानून मंत्री ने कहा कि पीड़ित महिलाएं जब पुलिस में जाती थीं तो पुलिस के पास कार्रवाई का हक नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं को क्या सड़क पर छोड़ दें। प्रसाद ने कहा कि मैं नरेंद्र मोदी सरकार का मंत्री हूं, राजीव गांधी सरकार का नहीं। उन्होंने कहा कि अगर 1986 में यह काम हो गया होता तो हमारे लिए नहीं छोड़ा गया होता। उन्होंने कहा कि समझौते का विकल्प खुला है और हमने हिंदुओं के खिलाफ कानून को आपराधिक बनाया है तो किसी को दिक्कत क्यों नहीं हुई। उन्होंने कहा कि दहेज और घरेलू हिंसा के लिए भी कानून है।
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