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ओडिशा का आदिवासी समाज और साहित्य विषयक दो दिवसीय नेशनल सेमीनार कीस में आरंभ

भुवनेश्वर। भुवनेश्वर स्थित विश्व के सबसे बड़े आदिवासी आवासीय विद्यालय कलिंग इंस्टीट्यूट आफ सोसलसाइंसेज (कीस) में ओडिशा का आदिवासी समाज और साहित्य विषयक दो दिवसीय नेशनल सेमीनार आरंभ हुआ। कीस और केन्द्रीय साहित्य अकादमी के सौजन्य आयोजित संगोष्ठी का विधिवत उद्घाटन के श्रीनिवास राव (सचिव, केन्द्रीय साहित्य अकादमी) ने किया। इस मौके पर कीस डीम्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरेकृष्ण सतपथी, ओडिशा की प्रख्यात लेखिका ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित डा प्रतिभा राय, ओडिया लेखक गोपाल बल्लव दास, संगोष्ठी के संयोजक विजयानंद सिंह और कीस के सीइओ डा पी के राउतराय आदि मंचासीन थे। उद्घाटक के श्रीनिवास राव ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय साहित्य सभी साहित्यों का पुंज है जिसमें आदिवासी साहित्य आदि का अद्वितीय समावेश है। हमारी कला, संस्कृति, परम्परा, प्राचीन सभ्यता आदि हमारी धरोहर हैं। उनके अनुसार ओडिया साहित्य का विकास उड्र आदिवासी संस्कृति से हुआ है। दोनों में सामाजिक और सांस्कृतिक समरुपता है। डा प्रतिभा राय ने कहा कि मानव प्रकृति का अभिन्न अंग है इसीलिए मानवस्वभाव बहुत ही नेचुरल है। हमसब एक ही आदिवासी समुदाय के हैं-मानव आदिवासी समुदाय के जिसकी चर्चा वैदिक काल में हुई है। उनके अनुसार आदिवासी संस्कृति के बिना महाभारत और रामायण भी पूरा नहीं होता। गोपाल वल्लव दास ने कहा कि ओडिया संस्कृति का विकास आदिवासी संस्कृति से ही हुआ है जिसकी चर्चा ओडिया लेखक गोपीनाथ महंती आदि ने की है। आज आदिवासी संस्कृति और परम्परा आदि धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। उन्हें बचाने की आवश्यकता है।अपने की-नोट संबोधन में प्रो हरेकृष्ण सतपथी ने बताया कि ओडिया संस्कृति में आदिवासी संस्कृति और परम्परा आदि के अनेक दृष्टांत हैं। विजयानंद सिंह और डा पी के राउतराय आदि ने भी उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। आमंत्रित सभी विशिष्ट अतिथि वक्ताओं का सम्मान कीट-कीस परिपाटी के तहत अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ और स्मृति-चिह्न आदि भेंटकर किया गया। आयोजित दो दिवसीय नेशनल सेमीनार में पूरे भारत से सैकड़ों प्रतिनिधिगण हिस्सा ले रहे हैं। उद्घाटन सत्र के अंतिम चरण में आभार प्रकट कीस के सीइओ डा पीके राउतराय ने किया। प्रस्तुति : अशोक पाण्डेय
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