गुजरात में अपने खिलाफ फैले असंतोष से परेशान बीजेपी फिर से साम्प्रदायिक तरीकों के इस्तेमाल में जुट गई है। विश्लेषकों का मानना है कि एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने की उतावलेपन में भगवा पार्टी साम्प्रदायिक आधार पर मतदाताओं के विभाजन की साजिश कर रही है। कथित तौर पर गुजरात में आरएसएस की स्थानीय इकाई ने एक पोस्टर जारी किया है जो वाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घूम रही है। इसमें मतदाताओं से ‘राम’ और ‘हज’ में किसी एक को चुनने के लिए कहा गया है। इस पोस्टर में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर है जिनके नामों के एक-एक अक्षर मिलाकर ‘राम’ बनाया गया है। जबकि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी के नामों के एक-एक अक्षर को मिलाकर ‘हज’ लिखा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि आरएसएस की अमरायबादी नगर शाखा ने यह पोस्टर जारी किया है।
‘पसंगी तमारी’ (पसंद तुम्हारी) से शीर्षक से जारी इस पोस्टर में बीजेपी और कांग्रेस का चुनाव चिन्ह भी दिया गया है। इसके अलावा हिन्दू देवता राम की तस्वीर बीजेपी के नेताओं की तरफ है और निचले हिस्से में इस्लामिक धार्मिक स्थल मक्का की तस्वीर है। संदर्भ साफ है। कांग्रेस मुसलमानों और बीजेपी के तीनों विरोधियों के साथ है। अहमदाबाद के एक पत्रकार ने नवजीवन को बताया कि बीजेपी आने वाले चुनाव में दो-तरफा लड़ाई में उलझी हुई है। नाम नहीं लेने की शर्त पर उन्होंने कहा, “राजनीतिक रूप से, बीजेपी तेजी से उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में उभरती कांग्रेस का सामना कर रही है और सामाजिक मोर्चे पर उसका मुकाबला दलितों और पाटीदारों से है।” उन्होंने आगे कहा, “बीजेपी के पास उन दोनों से मुकाबला करने के लिए सिर्फ एक हथियार है और वह है ‘धर्म’।” उन्होंने स्वीकार किया कि एक तरह से बीजेपी ने मान लिया है कि विकास का मुद्दा अब चल नहीं पा रहा है, जिसकी वजह से अब वे धर्म को बड़े पैमाने पर आजमाने की कोशिश कर रहे हैं। चुनाव के वक्त दलित नेता जिग्नेश मेवानी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस के साथ दिखने के बाद विकास धूल खाने लगा है। अल्पेश ठाकोर औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, जबकि जिग्नेश और हार्दिक ने अभी भी पार्टी के लिए खुलकर समर्थन का ऐलान नहीं किया है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि पाटीदार अनामत आंदोलन समिति कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।
चुनाव विश्लेषक कह रहे हैं कि दलित, पाटीदार और ओबीसी समुदायों के साथ आने से गुजरात के 182 में से 120 सीटों पर असर पड़ सकता है। पिछली जनगणना के अनुसार, गुजरात में दलितों की आबादी 7 फीसदी है, जबकि पाटीदार 13 फीसदी हैं। ऐसा होने से गुजरात के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। अनुमान के मुताबिक, ओबीसी का लगभग आधा हिस्सा ठाकोरों का है जो ज्यादातर राज्य के उत्तरी हिस्से से आते हैं। उस इलाके में अल्पेश ठाकोर की लोकप्रियता कांग्रेस को निश्चित तौर पर फायदा पहुंचाएगी। अहमदाबाद के उन पत्रकार को यह भी लगता है कि दलित और ओबीसी तबके में अपने खिलाफ दिख रहे अंसतोष की वजह से ही बीजेपी राज्य के पूर्वी हिस्से में रहने वाले आदिवासियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, “आदिवासी मतदाता पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट देते हैं। बीजेपी उन्हें इसलिए लुभा रही है क्योंकि उसे डर है दलित और ओबीसी चुनाव के परिणामों को पूरी तरह उसके खिलाफ न मोड़ दें।” राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस नेता अहमद पटेल पर मुख्यमंत्री विजय रूपानी के आरोपों को राज्य के उभरते राजनीतिक ट्रेंड से अलग कर नहीं देखना चाहिए। रूपानी ने अहमद पटेल पर ‘आतंकवादियों की मदद’ और उन्हें एक अस्पताल में नौकरी दिलाने का आरोप लगाया था, जहां वरिष्ठ नेता पटेल ट्रस्टी हुआ करते थे। हालांकि कांग्रेस ने इस वाकयुद्ध में शामिल होने से इंकार किया है, लेकिन उसने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा है कि वह पार्टी के नेताओं पर निराधार आरोप लगा रही है। साभार नवजीवन
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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