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नीतीश कुमार का साथ छोड़ने के बावजूद बिहार में 'मजबूत' हैं लालू

पटना। एनडीए के सहयोग के नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार की सत्ता पर काबिज हो गए हैं. लेकिन इस बदले सियासी समीकरण में अब ये भी चर्चाएं शुरू हो गई है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और मजबूत होकर उभरे हैं। ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम और यादव वोटरों की बदौतल ही लालू प्रसाद ने बिहार की राजनीति पर करीब 17 सालों तक राज किया. नीतीश के बीजेपी के साथ जाने के बाद एक बार 'माई' वोटर्स एक बार फिर गोलबंद हो सकते हैं। ऐसे में किसी भी गठबंधन को बिहार में लालू को हराना आसान नहीं होगा। ये भी कहा जाता है कि महागठबंधन के पहले बीजेपी के साथ होने के बावजूद नीतीश की साफ सुथरी और सुशासन चेहरे को देखते हुए इन दोनों समुदायों के वोट मिलते रहते है लेकिन अब स्थिति बदलती हुई दिख रही है। करप्शन को लेकर बीजेपी नेता सुशील मोदी ने लालू प्रसाद और उनके परिवार पर लगातार हमले किए। जानकार मानते हैं कि बीजेपी की रणनीति से लालू के वोटर्स (मुस्लिम-यादव) लालू प्रसाद के पक्ष में गोलबंद हुए हैं। बीजेपी का एक धड़ा इस बात को बखूबी मानता भी है. लालू परिवार पर हमले से इन वोटरों में संदेश गया है कि लालू प्रसाद को फंसाया जा रहा है। लालू परिवार के करप्शन के मुद्दे कोर्ट के जरिए उठाने से बीजेपी को ज्यादा फायदा हो सकता था। नीतीश कुमार के इस्तीफे और बतौर मुख्यमंत्री दोबारा शपथ लेने के बाद के बाद बिहार में नया राजनीतिक उभर सकता है। रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा और हम पार्टी के जीतन राम मांझी दोनों नीतीश कुमार से पीड़ित रहे हैं। ऐसे भी दोनों एनडीए का हिस्सा कब तक रहते हैं। यह देखने वाली बात होगी। बसपा सुप्रीमो मायावती को राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद लालू प्रसाद ने मास्टरस्ट्रोक खेलते हुए उन्हें फिर से राज्यसभा भेजने का ऑफर दिया है। राजनीति के मंझे खिलाड़ी लालू प्रसाद समझते हैं कि मुस्लिम और यादव के साथ अगर दलित वोट उनके साथ जुड़ जाता है तो बिहार की राजनीति में वो और मजबूत होकर उभर सकते हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बिहार की राजनीति में लालू से ज्यादा नीतीश को तव्वजो देते रहे हैं लेकिन अब बदले समीकरण में राजद-कांग्रेस का गठजोड़ और मजबूत हो गया है। कांग्रेस के साथ गठबंधन की स्थिति में मुस्लिम और यादव के साथ सवर्ण भी उनके पक्ष में आ सकते हैं। आपको बता दें कि बीजेपी ने बिहार में अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए बैकवर्ड पॉलटिक्स पर ज्यादा फोकस कर रही है और इसी रणनीति के तहत नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष, सुशील मोदी को विधानमंडल दल और प्रेम कुमार को विधानसभा में विपक्ष के पद पर बैठाया है। बीजेपी के इन तीनों महत्वपूर्ण पदों पर एक भी सर्वण नहीं हैं।
नीतीश-मोदी की दोस्ती से जेडीयू में बवाल 
बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के साथ बने महागठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिलाया, फिर आनन-फानन में मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। नीतीश के साथ पुराने साथी बीजेपी विधानमंडल दल के नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम बन गए। लेकिन, इस फैसले से जेडीयू के भीतर की नाराजगी भी खुलकर सामने आ गई है। जेडीयू के राज्यसभा सांसद अली अनवर ने फिर से बीजेपी के साथ जाने के अपनी पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल खड़ा कर दिया है। अली अनवर का कहना है कि नीतीश कुमार ने अंतरात्मा की आवाज पर भले ही बीजेपी के साथ जाने का फैसला कर लिया। लेकिन, मेरे जमीर को यह बात गवारा नहीं है। अली अनवर का कहना है कि बीजेपी आज भी उसी उग्र रास्ते पर जा रही है जिस रास्ते से हमें परहेज था। अली अनवर का बयान जेडीयू के भीतर सुलग रहे बगावती तेवर को सामने ला रहा है। जिस मोदी के विरोध के नाम पर नीतीश ने बीजेपी का साथ छोड़कर अपनी अलग राह अपना ली थी। उसी मोदी के साथ एक बार फिर से नीतीश की गलबहियां जेडीयू के मुस्लिम सांसद अली अनवर को रास नहीं आ रहा है। अली अनवर के अलावा जेडीयू के दूसरे राज्यसभा सांसद और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी नाराज बताए जा रहे हैं। शरद यादव ने अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया है। उनके घर के भीतर मीडिया की इंट्री बंद हो चुकी है। लेकिन, अपने भीतर के उद्गार को ट्वीट कर सामने ला रहे हैं। शरद ने अपने ट्वीट में भले ही बिहार के सियासी हालात पर कुछ नहीं बोला। नीतीश के दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ अपने हमले जारी रखे। शरद यादव ने अपने ट्वीट में कहा है कि फसल बीमा योजना भी सरकार की एक और नाकाम स्कीम है। शरद यादव और अली अनवर की नाराजगी जेडीयू के भीतर की हलचल को सतह पर ला रही है। इसके पहले भी जेडीयू के भीतर उन विधायकों की नाराजगी की बात कही जा रही थी जो बीजेपी के विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की बात कह रहे थे। इसमें जेडीयू के मुस्लिम और यादव विधायक हैं जो महागठबंधन तोड़े जाने के नीतीश के फैसले के खिलाफ बताए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक जेडीयू के 71 में से करीब 15 से 20 ऐसे मुस्लिम-यादव विधायक हैं, जो इस फैसले से नाराज हैं। लेकिन, अबतक कोई विधायक इस फैसले के खिलाफ सामने नहीं आया है। नीतीश कुमार को इस बात का डर सता रहा था कि बीजेपी के साथ जाने की सूरत में उनकी पार्टी के मुस्लिम-यादव विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश आरजेडी की तरफ से हो सकती है। इस बात का संकेत उस वक्त भी मिल गया जब आरजेडी विधायक दल के नेता तेजस्वी यादव की तरफ से इस तरह के संकेत भी दिए थे। आरजेडी नेता बार-बार दावा कर रहे हैं कि जेडीयू के आधा से ज्यादा विधायक नीतीश के फैसले के खिलाफ हैं। लिहाजा आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन, नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद आधी रात को ही बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। उनकी तरफ से जल्दबाजी में उठाए गए इस कदम से भी कई सवाल खड़े हुए। आखिर नीतीश कुमार ने इतनी जल्दबाजी क्यों की? आधी रात को ही सरकार बनाने का दावा पेश करने की क्या जरूरत थी? दिलचस्प है कि पहले नीतीश कुमार के शपथग्रहण का वक्त शाम पांच बजे के लिए तय हो रहा था। लेकिन, आखिर में उसे सुबह दस बजे ही कर दिया। आरजेडी की तरफ से आरोप लगाए जा रहे हैं कि गवर्नर ने जब उन्हें सुबह 11 बजे मिलने का वक्त दिया था तो उसके पहले ही शपथ ग्रहण क्यों करा दिया गया। आरजेडी की तरफ से बयानबाजी हो रही है। आरोप-प्रत्यारोप भी खूब लगाए जा रहे हैं। लेकिन, अब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री और सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं। सीएम और डिप्टी सीएम की यह पुरानी जोड़ी फिर से एक बार बिहार की सत्ता पर काबिज हो गई है। लेकिन, अबतक इन्हीं दोनों का शपथ ग्रहण हुआ है। शुक्रवार को विश्वास मत हासिल करने के बाद नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। लेकिन, इसके पहले चुनौती होगी पूरी पार्टी को एकजुट रखने की। हालांकि, किसी विधायक ने अबतक अपने अध्यक्ष नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल खड़ा नहीं किया है। यह उनके लिए राहत की बात है। उधर, बिहार में गठबंधन की सहयोगी रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी और जीतनराम मांझी की पार्टी हम ने भी नीतीश को समर्थन के बीजेपी के फैसले पर अपनी हामी भर दी है। लिहाजा विश्वासमत हासिल करना आसान हो गया है। 131 विधायकों का दावा करने वाले नीतीश के लिए अब सबको एकजुट रखने के साथ-साथ शरद यादव और अली अनवर को साधने की चुनौती होगी।
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