नई दिल्ली। भारत के 68वें गणतंत्र की पूर्व संध्या पर देश के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था की स्थिति के साथ देश में अमन और शांति की बातें की। इसके अलावा उन्होंने ध्यान दिलाया कि एक स्वस्थ्य लोकतंत्र, सहनशीलता, धैर्य और दूसरों के प्रति सम्मान के मूल्यों की पुष्टि करता है। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को मौजूदा संकटों के प्रति आगाह भी कराया। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था इस समय दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। दुनिया भर में जिस तरह की आर्थिक चुनौतियां बढ़ी हैं, उसमें हमारी अर्थव्यवस्था अच्छा कर रही है। उन्होंने ये भी कहा कि देश में गरीबी को मिटाने के लिए अभी भी लंबे समय तक 10 फ़ीसदी से ज्यादा के विकास दर की ज़रूरत है।
कहा कि काले धन पर अंकुश और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिेए नोटबंदी लागू की गई लेकिन इससे तात्कालिक तौर पर आर्थिक मंदी आई है। लेकिन जैसे जैसे देश में कैशलेस लेन-देन बढ़ने लगेगा, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। उन्होंने कहा कि हम एक शोर शराबे वाले लोकतंत्र में रह रहे हैं, लेकिन हमें लोकतंत्र से कम कुछ भी नहीं चाहिए। हमारे संसद की कार्यवाही बाधित हो रही है, जबकि उन्हें अहम मुद्दों पर बहस करना चाहिए। सामूहिक तौर पर कोशिश करके हमें डिबेट और बहस पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है। मौजूदा समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक और तकनीकी मानव संसाधन वाला देश है। हमारी सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना है। जबकि आण्विक शक्ति में हम दुनिया में छठे नंबर के देश हैं। कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने की जरूरत है। हमें नई पहल और तकनीक के जरिए युवाओं को तैयार करना होगा ताकि वे उम्र भर कुछ सीखते रहें। लोकतंत्र के तौर पर भारत में स्थिरता है, जबकि आस पड़ोस का क्षेत्र अस्थिरता से भरा है। लोकतंत्र हम सबको कई अधिकार देता है, लेकिन इसके लिए हम पर कई जिम्मेदारियां भी होती है। गांधी जी कहते थे, आज़ादी का सबसे बड़ा स्तर, सबसे बड़े अनुशासन की मांग भी करता है।
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