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राजीव रंजन तिवारी
मई 2014 से पहले की कांग्रेस और दिसम्बर 2016 की कांग्रेस में बहुत फर्क है। इस फर्क को आसानी से देश महसूस कर रहा है, आप भी महसूस कर रहे होंगे। लोग मानने लगे हैं कि कांग्रेस की सेहत तेजी से सुधर रही है। बेशक, कांग्रेस की सेहत में सुधार केन्द्र की लोकप्रिय नरेन्द्र मोदी सरकार और सत्ताधारी दल भाजपा के लिए बेचैनी का सबब भी है। इधर, डेढ़ माह में जिस तरह से कांग्रेस ने खुद को बदलने का प्रयत्न किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। हालांकि सत्तारूढ़ भाजपा ने भी अपनी रणनीतियों के अंतर्गत कांग्रेस की राह में तमाम रोड़े अटकाने की कोशिश की है, लेकिन भाजपा इसमें सफल नहीं हो पाई है और कांग्रेसी नेता भाजपा की कारस्तानी को पब्लिक तक पहुंचाने में सफल रहे हैं, यह प्रतीत हो रहा है। दरअसल, भाजपा हो या कांग्रेस अथवा अन्य कोई भी पार्टी सबके सब यूपी-पंजाब समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी रणनीतियों को अंजाम दे रहे हैं। इन रणनीतियों की वजह से ही पार्टियों के ग्राफ में उतार-चढ़ाव यानी काऊंटडाऊन लगातार महसूस किया जा रहा है। फिलहाल, जो हालात हैं वो केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बेहतर संकेत नहीं हैं। यदि कोई करिश्मा नहीं हुआ तो आगामी चुनावों में भाजपा की चमक फीकी पड़ सकती है। अब लोग यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर वह कौन सियासी डाक्टर है, जो मृतप्राय कांग्रेस की सर्जरी कर उसकी सेहत सुधार रहा है और जनता के बीच कांग्रेस को चर्चाओं के केन्द्र में ला रहा है। आपको बता दें कि यूपी में कांग्रेस के प्रचार-प्रसार का जिम्मा राज्य सभा सांसद और अमेठीनरेश महाराजा डा.संजय सिंह पर है। स्वाभाविक है, यूपी में पार्टी की सेहत में सुधार का श्रेय भी उन्हें ही मिलना चाहिए। वैसे प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, उपाध्यक्ष व दलित नेता दीपक कुमार सरीखे अनेक लोग पूरी तरह से तालमेल बिठाकर पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, जो कांग्रेस के हित में है।
पंजाब में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। यूपी और उत्तराखंड में चुनावी प्रक्रिया आरंभ करने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। यानी किसी भी दिन चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है। पंजाब में भाजपा अपनी सहयोगी आकाली दल के भरोसे है। यानी आकाली दल की वहां जो दशा होगी, कमोबेश वही भाजपा की भी होगी। आकाली दल पंजाब चुनाव में यदि बेहतर प्रदर्शन करती है तो दिल्ली में बैठी मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपाने से पीछे नहीं हटेगी। मोदी सरकार से जुड़े लोग यह ढिंढोरा पिटेंगे कि केन्द्र की कार्यशैली से खुश होकर पंजाब की जनता ने आकाली-भाजपा गठबंधन को वोट दिया है। वहीं यदि परिणाम इसके उलट यानी खराब आते हैं तो भाजपा के लोग पूरी तरह से खराब प्रदर्शन का ठीकरा आकाली दल के सिर पर यह कहते हुए फोड़ देंगे कि पंजाब में आकाली दल की सरकार ने जनहित में कार्य नहीं किए, इसीलिए गठबंधन को हारना पड़ा। मतलब ये कि भाजपा अपने दोनों ही हाथों में लड्डू लेकर चलना चाहती है। उसकी तमन्ना है कि अच्छे परिणाम का श्रेय उसे मिले और बुरे परिणाम का ठीकरा घटक के दूसरे दल के सिर पर फोड़ दिया जाए। दिलचस्प यह है भाजपा की इस शैली को पंजाब में आकाली दल के नेता भी काफी सलाहियत से समझ रहे हैं। इसीलिए वे भी फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं और भाजपा नेताओं को समय-समय बता भी रहे हैं।
उधर, कांग्रेस ने पंजाब में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। और तो और सूत्र तो यहां तक कह रहे हैं कि देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में कांग्रेस की छवि सुधारने के लिए सफल कोशिश करने वाले राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भी पार्टी ने पंजाब पर ही ध्यान केन्द्रीत करने को कह दिया है। जबकि फिलहाल यूपी में प्रशांत किशोर की जगह शाशांक शुक्ला काम देख रहे हैं। इसके अलावा पंजाब में भाजपा-आकाली की नाक में नकेल डालने के लिए कांग्रेस ने पूर्व भाजपा नेता नवजोत सिंह सिद्धू को भी साध लिया है। मतलब ये कि पंजाब में कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने के लिए सिद्धू भी पूरी जोर लगाएंगे। आपको बता दें सिद्धू की पत्नी और पूर्व मंत्री नवजोत कौर पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं। पंजाब में तीसरा और प्रमुख घटक आम आदमी पार्टी यानी आप है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यूं कहें कि आप भाजपा-आकाली गठबंधन और कांग्रेस दोनों की राह में बड़ा रोड़ा अटका रहा है। हालांकि पंजाब में आप की लोकप्रियता जितनी तेजी से बढ़ी है उतनी ही तेजी से उसके भीतर विद्रोह भी हुए हैं। शायद आप का भीतरी विद्रोह ही उसे बड़ा नुकसान पहुंचा दे। इस आशंका से भाजपा-आकाली तथा कांग्रेस के खेमे में खुशी दिख रही है।
चूंकि चर्चा कांग्रेस की सुधरती सेहत की हो रही है, इसलिए यह बताना जरूरी है कि कांग्रेस का एक और साल भूलभुलैया में बीत गया लेकिन हो सकता है कि पार्टी अपने भावी नेता द्वारा दिखाई जा रही नई ऊर्जा से थोड़ी संतुष्ट हो। राहुल गांधी के लिए ये साल काफी व्यस्त रहा। वो प्रधानमंत्री पर हमला करने में अपने पार्टी के नेतृत्व करने में लगे रहे। राजधानी दिल्ली के राजनीतिक रंगमंच पर अपनी जगह बनाने की कोशिश करने के अलावा राहुल ने उत्तर प्रदेश में भी काफी समय दिया। राहुल इस साल लगातार सुर्खियों में रहे। खासकर साल के आखिरी महीनों में। राहुल द्वारा लगातार नरेंद्र मोदी पर हमला करने से भले ही वो मीडिया की सुर्खियों में आने में सफल हो जाएं लेकिन कांग्रेस को इस वक्त खबरों में रहने से ज्यादा जरूरत अपना जनाधार बढ़ाना है, जिस काम को कांग्रेसी बखूबी निभा रहे हैं। हो सकता है कि इस वजह से भाजपा को यूपी में नुकसान भी झेलना पड़े। राहुल की अतिसक्रियता से कांग्रेस की कई खामियां लगातार छुप भी रही है, जिसे लोग महसूस कर रहे हैं। राहुल कांग्रेस पार्टी के सांगठनिक ढांचे में सुधार लाने की कोशिश में हैं। हो सकता है बहुत जल्द पार्टी का राष्ट्रीय स्वरूप बदला-बदला नजर आए। राहुल कांग्रेस के अंदर के दो धड़ों के बीच चलने वाली रस्साकशी को दूर करने में भी लगभग सफल रहे हैं, इससे पार्टी में नई जान पड़ती दिख रही है।
आपको बता दें कि यूपी सभी पार्टियों के लिए विशेष अहम है। यूपी में कांग्रेस को भी बेहतर प्रदर्शन का भरोसा है। यहां पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, प्रभारी गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी, शीला दीक्षित, उपाध्यक्ष व पूर्व मंत्री दीपक कुमार तो अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर ही रहे हैं, साथ ही राज्य में पार्टी के प्रचार प्रमुख डा.संजय सिंह अपनी खास रणनीतियों की वजह से पार्टी को जन-जन के बीच चर्चा में बनाए हुए हैं। डा.संजय सिंह के नजदीक रहने वाले लोग बताते हैं कि पूरे-पूरे दिन लोगों से मीटिंग करना और कार्यकर्ताओं को प्रचार के लिए टास्क देकर क्षेत्र में दौड़ाने की उनकी कला का कोई जवाब नहीं है। पूरे प्रदेश में डा.संजय सिंह अपनी रणनीति को अमल में ला रहे हैं, जिसका पार्टी की सेहत पर सकारात्मक असर पड़ रहा है और भाजपाई परेशान हैं। हालांकि राज्य में अभी तमाम सियासी उलटफेर हो रहे हैं, सबके बावजूद यह कहा जा रहा है कि यदि कांग्रेस अकेले भी चुनाव लड़ती है तो उसका काफी बेहतर प्रदर्शन होगा।
जानकार मानते हैं कि राहुल गांधी के अंदर की वैचारिक अवधारणा इधर कुछ महीनों में स्पष्ट हुई है। इसी वजह से वो एक सतत संदेश देने में सफल रहे हैं कि किस तरह केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार जनहित को नजरंदाज कर केवल बड़े लोगों के हित में काम कर रही है। राहुल सांगठनिक एंकर और वैचारिक प्रकाशस्तम्भ के रूप में लगातार अपनी छवि बनाने में सफल होते दिख रहे हैं। ऐसे में मोदी-विरोध का प्रतीक बनने में राहुल रहस्यमयी किन्तु सफल होते दिख रहे हैं। राहुल की अक्रामकता की वजह से कांग्रेसी आत्मविश्वास से लबरेज होते दिख रहे हैं। दरअसल, किसी भी राजनीतिक दल में नेतृत्व, संगठन, कार्यकर्ता और समान विचार वालों का नेटवर्क महत्वपूर्ण होते हैं। इन सभी क्षेत्रों में हर दल को अपनी उपस्थिति मौजूद करानी होती है। पिछले ढाई साल में कांग्रेस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में इनमें से ज्यादातर मोर्चों पर लगभग सफल रही है। राहुल गांधी यह भलिभांति समझ गए हैं कि किसी नेता का रिपोर्ट कार्ड बेहतर होने से जरूरी नहीं है कि उसकी पार्टी का प्रदर्शन सुधरेगा। शायद यही वजह है कि इन मुद्दों को पूरी तरह गंभीरता से ध्यान में रखकर ही वे अपनी नीतियों को अंजाम दे रहे हैं।
दिचलस्प तो यह है कि वर्ष 2014 से पूर्व सोशल मीडिया पर फिसड्डी रहने वाली कांग्रेस लगातार भाजपा और अन्य दलों को पीछे छोड़ती जा रही है। दिल्ली कांग्रेस आईटी सेल के संयोजक विशाल कुन्द्रा कहते हैं कि पूरे देश में कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम अक्रामक तौर पर काम कर रही है। इससे भाजपा नेताओं में हताशा है। इतना ही नहीं पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत ने नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस पार्टी और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) से कुछ खास दस्तावेज की मांग संबंधी भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की अर्जी खारिज कर दी। स्वामी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी एवं अन्य के खिलाफ यह मामला दर्ज किया था। इससे भी भाजपाइयों का मनोबल डाऊन हुआ और कांग्रेस की सेहत में सुधार दिखा। खैर, लबोलुआब यह है कि लगातार सुधरती कांग्रेस की सेहत ने भाजपा खेमे में बेचैनी बढ़ा दी है। भाजपा के कार्यकर्ताओं को यह डर है कि यदि इसी तरह कांग्रेस की छवि सुधरती रही तो आगामी यूपी चुनाव में भी पार्टी को नुकसान झेलना पड़ सकता है। बहरहाल, देखना क्या होता है?
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और चर्चित स्तम्भकार हैं, उनसे फोन नं.- 08922002003 पर संपर्क किया जा सकता है)
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