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भाई, ये पुरवाई के संग-संग कैसी अंगड़ाई है...?

सियासी दलों की बेचैनी यह बता रही है कि कहीं ‘गेम चेंजर’ न बन जाए ग्राम भस्मा का ‘धरा धाम’ 
नई दिल्ली/लखनऊ। यह सबको पता है सूर्य की किरणें पूरब से निकलती हैं। बदलाव की आहट भी अक्सर पूरब से ही सुनाई पड़ती रही है। क्या फिर से पूरब में कोई ज्वाला धधक रही है, जो बदलाव की परिचायक बनने को व्यग्र है। जी हां, यह आहट दिल्ली और लखनऊ के सियासी गलियारों में सुनाई दे रही है। यूं कहें कि पुरवाई के संग-संग ‘गेम चेंजर’ विचार अंगड़ाई ले रहा है। गोरखपुर के गांव भस्मा से धरा धाम नाम का विश्वस्तरीय आंदोलन जन्म ले चुका है। इस आंदोलन को कोई और समझे या नहीं, नेता तो समझ गए हैं। यही वजह है कि धरा धाम के प्रमुख कर्ता-धर्ता सौरभ पाण्डेय से निरंतर संपर्क कर इनके हां में हां मिलाने की होड़ मची हुई है। दिल्ली/लखनऊ के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि धरा धाम न सिर्फ यूपी विधानसभा चुनाव 2017 बल्कि लोकसभा चुनाव 2019 का गेम चेंजर साबित हो सकता है। दरअसल, सर्वधर्म समभाव की मशाल लेकर पूरी दुनिया की दौड़ लगाने की मंशा रखने वाले सौरभ पाण्डेय ने उन सियासतदां को बेचैन कर दिया है, जिनकी डिक्शनरी में सिर्फ अलग-अलग जाति-धर्म यानी सवर्ण-दलित और हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई हैं। सौरभ कहते हैं-‘उनका लक्ष्य पूरी दुनिया में एक जाति को स्थापित करना है। चाहे इसमें जितना वक्त लग जाए।’ सौरभ पाण्डेय के अनुसार, धरती पर रहने वाले हर मानव की जाति-धर्म सिर्फ ‘मानव जाति और मानवता धर्म’ होना चाहिए, न कि अलग-अलग जाति और धर्म। जानकार कहते हैं कि राजनीतिक दलों की बेचैनी का आलम ये है कि यदि धरा धाम के प्रमुख सौरभ के आंदोलन ने मूर्त रूप ले लिया तो जाति-धर्म के नाम पर दुकानें चलाने वाले नेताओं की दुकानदारी बंद हो जाएगी। यही वजह है कि सौरभ से संपर्क कर उन्हें अपने-अपने हिसाब से लोगों द्वारा मोड़ने की कोशिश की जा रही है। टेलीफोन पर सौरभ पाण्डेय ने बताया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह सर्वधर्म समभाव वाली अपनी नीति से रती भर भी डिगने वाले नहीं है।
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