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भाजपा पर रीता का असर होगा, लेकिन क्या?

सुनिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह, प्रचार समिति के प्रमुख व सांसद डा.संजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर की जुबानी
राजीव रंजन तिवारी 
ज्यों-ज्यों मौसमी पारा लुढ़क रहा है त्यों-त्यों देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। हर रोज कुछ नया। कभी सपा परिवार का घमासान तो कभी बसपा के भीतर अंतर्विरोध। कभी कांग्रेसी नाराज तो कभी भाजपा में भीतरघात की चर्चा। ये तमाम मसले रोज जोर पकड़ रहे हैं। हो भी क्यों नहीं। अगले वर्ष के आरंभ में यहां विधानसभा चुनाव जो होने हैं। कमोबेश सारे दल अभी से अपनी सियासी सेना मुस्तैद करने में जुट गए हैं। साथ ही यह आकलन भी शुरू हो गया है कि कौन नेता किस दल में कितना असरकारक होगा। सबसे पहले ताजा घटनाक्रम की चर्चा करें तो डा.रीता बहुगुणा जोशी का नाम सामने आता है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने पिछले दिनों दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मौजदूगी में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। यूपी विधानसभा की सदस्य 67 वर्षीय रीता जोशी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी और उत्तराखंड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा की बहन है। बहुगुणा परिवार की रीता पहली ऐसी सदस्य नहीं है जिन्होंने कांग्रेस से बगावत की है। उनसे पहले भी उनके पिता दो बार कांग्रेस छोड़ चुके थे। वहीं इसी साल कुछ महीने पहले उनके भाई विजय बहुगुणा भी बीजेपी में शामिल हो गए थे। अब सवाल यह उठता है कि आखिर डा.रीता जोशी के भाजपा में जाने से कांग्रेस का क्या नुकसान होगा और भाजपा कितना फलेगी-फुलेगी। राजनीति के जानकार इस सवाल जवाब नकारात्मक अंदाज में दे रहे हैं। चूंकि यूपी में कांग्रेस के पास बहुत कुछ खोने के लिए नहीं है। महत्वकांक्षाएं और अपेक्षाएं भी नहीं। जबकि मौजूदा हालात में भाजपा की महत्वकांक्षाएं और अपेक्षाएं शिखरस्थ हैं, जो रीता जोशी की वजह से धराशायी हो सकती हैं। संकेत ये हैं कि यदि भाजपा रीता जोशी को सीएम का प्रत्याशी बनाती है तो पहले से सीएम उम्मीदवार बनने का सपना देखने वाले आधे दर्जन से अधिक भाजपा के दिग्गज भीतरघाती कदम उठा सकते हैं, जिसे रोकना किसी के वश की बात नहीं है। फिलहाल, रीता जोशी के बीजेपी में शामिल होने की पृष्ठभूमि पर चर्चा करें तो पता चलेगा कि यह सियासी पाला बदलने का एक बेहद दुखद उदाहरण है। दरअसल, मेरा आशय रीता बहुगुणा जोशी के उस व्यक्तित्व से है, जिसे उन्होंने कांग्रेस में रहकर निखारा था। किसी को भान भी नहीं होगा कि रीता जोशी कभी कांग्रेस पार्टी छोड़ सकती हैं। वजह स्पष्ट है, करीब 25 वर्षों तक कांग्रेस की सेवा करने वाली रीता जोशी ने गैर कांग्रेसी नेताओं व दलों (भाजपा और मोदी समेत) पर जितने हमले किए थे, शायद कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने भी उतने नहीं किए होंगे। फिर सवाल यह है कि जिस भाजपा को उन्होंने पिछले कुछ दिनों पहले तक कोसा हो, जिस नरेन्द्र मोदी को दंगाई तक बताया हो, वैसी पार्टी में वे खुद को किस तरह से सहज महसूस कर सकती हैं। खैर, यह उनका व्यक्तिगत मामला है, इसे वे खुद जानें। पर इतना जरूर है कि वे भाजपा नेताओं से नजरें मिलाकर बात तो नहीं ही कर सकती हैं। यदि नेताओं के रंग बदलने की बात करें तो कल तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तारीफ और मोदी-शाह के विरुद्ध बयानबाजी करने वाली रीता जोशी ने भाजपा में शामिल होते ही सर्जिकल स्ट्राइक का सारा श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को दिया। इसके अलावा उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ठेके पर उठा दी गई है। उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। रीता ने अमित शाह को खुले दिमाग वाला इंसान बताते हुए कहा कि बीजेपी विकास की राजनीति कर रही है। ये देखा आपने। किस तरह सियासत में रंग बदला जाता है, उसी का उदाहरण है। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने रीता जोशी को जितना मान-सम्मान दिया, शायद ही उन्हें कहीं और मिलेगा। राष्ट्रीय महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकीं रीता ने अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की कमान भी संभाली। वह 2007 से 2012 के बीच यूपी कांग्रेस अध्यक्ष रहीं और इसी दौरान बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 2012 में उन्होंने लखनऊ कैंट से विधानसभा चुनाव जीता। 2014 में उन्होंने लखनऊ सीट से लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाया लेकिन एक बार फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा स्वतंत्रता सेनानी रहे रीता जोशी के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा को 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी कैबिनेट में शामिल किया। इसके दो वर्षों के बाद ही वह देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के सीएम बने। कहा जाता है कि 1975 में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मतभेद होने के चलते उन्हें यूपी के सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। जब 1977 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई तो उन्होंने कांग्रेस से बगावत की। बहुगुणा ने पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' पार्टी बनाई। उस चुनाव में इस दल को 28 सीटें मिली जिसका बाद में जनता दल में विलय हो गया। इसी पार्टी के बैनर तले बहुगुणा ने पहाड़ की चार लोक सभा सीटें जीती। इसके अलावा रीता जोशी के भाई व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी कुछ माह पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे। 2012 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की वापसी हुई तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि लोकसभा चुनाव 2014 से पहले उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा और उनकी जगह हरीश रावत ने ली। कहा जाता है कि हरीश रावत के सीएम बनने से बहुगुणा नाराज थे। खैर, ये राजनीति है, यहां सबकुछ चलता है। फिलहाल रीता जोशी को लेकर यूपी का माहौल गर्म है। हर कोई यह जानना चाहता है कि रीता जोशी भाजपा और कांग्रेस पर क्या असर होगा। आपको बता दें कि तमाम मंथन और आकलन उपरांत इस मुकाम तक पहुंचा गया है कि रीता जोशी भाजपा को कुछ खास लाभ नहीं दिला पाएंगी। यदि चर्चाओं पर विश्वास करें तो भाजपा रीता जोशी को कांग्रेस की शीला दीक्षित के मुकाबले सीएम कैंडिडेट के रूप में पेश करने की तैयारी में है। सूत्रों का कहना है कि रीता जोशी के कांग्रेस छोड़ने का एक कारण यह भी है कि वह खुद सीएम कैंडिडेट बनना चाहती थीं, लेकिन पार्टी ने शीला दीक्षित को बना दिया। कहा जा रहा है कि यदि भाजपा रीता जोशी को सीएम कैंडिडेट बनाती है तो उसे भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। क्योंकि पहले से सीएम कैंडिडेट बनने की आस लगाए आधा दर्जान से अधिक भाजपा के दिग्गज नेता पार्टी में भीतरघाती हमले को तेज कर देंगे। जिसे रोक पाना भाजपा के वश की बात नहीं है। और, यदि भाजपा पार्टी के भीतर संतुलन बनाए रखने की कोशिश में रीता को सीएम प्रत्याशी नहीं बनाती है तो निश्चित रूप से रीता जोशी को भी आत्मग्लानि होगी और वह पार्टी के लिए पूरे दिलोदिमाग से काम नहीं कर पाएंगी। इसके अलावा इसमें कोई शक नहीं कि रीता जोशी के भाजपा में जाने से कांग्रेस पर कुछ असर नहीं होगा। क्योंकि कांग्रेस को यूपी में खोने के लिए कुछ भी नहीं है। यदि अपने बलबूते और रणनीतिक कौशल से कांग्रेस कुछ हासिल करती है तो उसके लिए बड़ी कामयाबी मानी जाएगी, जबकि भाजपा में सत्ता पाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ होने की वजह भाजपा की महत्वकांक्षाएं आसमान पर है। इस संदर्भ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह, सांसद डा.संजय सिंह और प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर का बयान उल्लेखनीय है। इन नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि रीता जोशी के पार्टी छोड़ने का असर कांग्रेस पर बिल्कुल नहीं होगा। यूं कहें कि रीता के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल की रणनीति बना ली है, जिसका श्रेय रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके को भी जाता है। बहरहाल, अब देखना है कि रीता जोशी कांग्रेस को कितना नुकसान और भाजपा को कितना लाभ दिला पाती हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित स्तंभकार हैं। इनसे फोन नं.- 08922002003 पर संपर्क किया जा सकता है।)
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3 comments:

  1. नाइस लेख कांग्रेस का यूजलेस पुराना कबाड़ थी रीता जिसने यूपी में कॉग्रेस का भट्ट बैठाया अब भाजपा का बैठाए गी ।कांग्रेस जो उसे पहले ही किनारे कर चुकी थी दम ख़म न रहने पर ।रही बात वोटबैंक की कॉंग्रेस का वोटबैंक जो है वह गांधी परिवार का है किसी नेता का नहीं ।सारे भी भाग जाएं वह कहीं नहीं जायेगा ।

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  2. एक बात जरूर कहूँगी सारे नेता अखिलेश और राहुल गांधी से सीखे वें किसी भी पार्टी के हों ये दोनों कभी भी किसी के लिए असुर रावण जैसे शब्द इस्तेमाल नही न करते ।फालतू में बेइज्जती नहीं करते राजनीति अपनी जगह ऐसी कोई टिप्पणी न करें जिससे आँख मिलाने में शर्म आये जैसे अब रीता को आएगी ।

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  3. एक बात जरूर कहूँगी सारे नेता अखिलेश और राहुल गांधी से सीखे वें किसी भी पार्टी के हों ये दोनों कभी भी किसी के लिए असुर रावण जैसे शब्द इस्तेमाल नही न करते ।फालतू में बेइज्जती नहीं करते राजनीति अपनी जगह ऐसी कोई टिप्पणी न करें जिससे आँख मिलाने में शर्म आये जैसे अब रीता को आएगी ।

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