दिल्ली (वात्सल्य राय, बीबीसी संवाददाता)। भारत के कानूनी इतिहास में यह पहला मामला है जब ओरल सेक्स को बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है और किसी को सज़ा सुनाई गई है। दिल्ली की एक अदालत ने फ़िल्म 'पीपली लाइव' के सह-निर्देशक और इतिहासकार महमूद फ़ारूक़ी को बलात्कार के केस में सात साल की जेल की सज़ा सुनाई है। फ़ैसला आने के बाद बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय ने वृंदा ग्रोवर से बात की जिन्होंने इस फैसले से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया। ये मेरे हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण फ़ैसला है। इसका महत्व बताने के मैं दो-तीन बातें रेखांकित करती हूं।
सबसे पहले तो 2013 में जब क़ानून में संशोधन किया गया, उसमें इस बात पर क़ानूनमें संशोधन हुआ कि महिला का जो शरीर है, महिला का जो अस्तित्व है, उसपर केवल महिला की मर्ज़ी होनी चाहिए। उस पर किसी भी तरह के हमले को बलात्कार माना जाएगा। हमारे देश के क़ानून में पहले 'पीनो वेजाइनल रेप' को बलात्कार मानते थे। अब ये जो केस है, इसमें अमरीकन स्कॉलर यहां रिसर्च करने आई थी उन्होंने इल्ज़ाम लगाया था कि उनके साथ फ़ारूक़ी ने फोर्स्ड ओरल सेक्स किया है और अब क़ानून ने उसको बलात्कार माना है और उसी श्रेणी में रखा है जिसमें पीनो वेजाइनल रेप को रखा गया है। इस केस में महिला की बात को सही और सत्य मानते हुए अदालत ने फ़ारूक़ी पर सात साल की सज़ा और 50 हज़ार ज़ुर्माना लगाया है। साथ में लीगल सर्विस अथॉरिटी को निर्देश दिया है कि वो भी उस महिला को मुआवजा देंगे। मेरी जानकारी में ये ऐसा पहला मामला है। मेरे हिसाब से ये बात दर्शाती है हमें कि इस तरह का क्राइम हो रहा था समाज में। मगर हमारे पास परिभाषा ही नहीं थी इसकी और हम इसको एक हल्का क्राइम मानते थे। संशोधन में इसको बलात्कार की श्रेणी में डाला गया। इसलिए उसकी सही सज़ा मिल पाई। महिलाओं की ज़िंदगी और महिलाओं पर किस तरह की हिंसा हुई है उसके आधार पर क़ानून में संशोधन किया गया था। सज़ा कितनी होगी ये जज तय करते हैं और इसमें सज़ा जो न्यूनतम है वो अपने आप में बहुत गंभीर है। सात साल की सज़ा एक गंभीर सज़ा होती है।
क़ानून का मक़सद क्या होता है? मक़सद ये होता है कि लोग जानें कि ये गलत है। अपराध है। और अगर आप ऐसा करेंगे तो आप कोई भी हों समाज में, क़ानून आपके ऊपर कठोरता से पेश आएगा। इस मामले से समाज में संदेश जाता है कि किसी भी प्रकार की हिंसा महिला के ऊपर, महिला के शरीर के ऊपर गंवारा नहीं है। अभियुक्त कोई भी हो, उसको सज़ा दी जाएगी।
जेल में काटने होंगे सात साल
दिल्ली की एक विशेष फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने 'पीपली लाइव' फ़िल्म के सह-निर्देशक, इतिहासकार और दास्तानगो महमूद फ़ारूक़ी को बलात्कार के मामले में सात साल की सज़ा सुनाई है। जज संजीव जैन ने महमूद फ़ारूक़ी को धारा 376 के तहत दोषी पाया था जिसमें उन्हें न्यूनतम सात साल जेल की सज़ा सुनाई। महमूद फ़ारूक़ी को पिछले साल दिल्ली के सुखदेव विहार में उनके घर पर एक अमरीकी महिला से बलात्कार का दोषी पाया गया है। दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को फ़ारूक़ी के लिए आजीवन कारावास की सज़ा की मांग की थी। पुलिस ने दलील दी थी कि उन्होंने अमरीकी रिसर्च स्कॉलर महिला से बलात्कार कर देश को बदनाम किया है. पुलिस ने ये भी कहा था कि फ़ारूक़ी समाज में एक उच्च स्थान रखते हैं इसलिए सही व्यवहार करने की उनकी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। महिला ने फ़ारूक़ी पर आरोप लगाया था कि वो अपने शोध के सिलसिले में उनसे मिलने गई थी तब फ़ारूकी ने उनके साथ बलात्कार किया। महिला ने अदालत को बताया था कि बलात्कार के बाद फ़ारूक़ी ने कई ई-मेल लिखकर उनसे माफ़ी मांगी थी। ईमेल और फ़ोन-कॉल डिटेल को मुकदमे में सबूत के तौर पर पेश किए गए थे। महमूद फ़ारूक़ी की पत्नी अनुषा रिज़वी 2010 में बनी 'पीपली लाइव' की निर्देशक थीं और फ़ारूक़ी इस फ़िल्म के लेखक और सह निर्देशक थे।
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।