नई दिल्ली। राज्यसभा में बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर देश में नई परोक्ष कर प्रणाली के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया गया। इससे पहले सरकार ने कांग्रेस के एक प्रतिशत के अतिरिक्त कर को वापस लेने की मांग को मान लिया तथा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आश्वासन दिया कि जीएसटी के तहत कर दर को यथासंभव नीचे रखा जाएगा। जेटली ने आज संविधान (122वां संशोधन) विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि मार्गदर्शक सिद्धान्त होगा कि जीएसटी दर को यथासंभव नीचे रखा जाए। निश्चित तौर पर यह आज की दर से नीचे होगा। वित्त मंत्री के जवाब के बाद सदन ने शून्य के मुकाबले 203 मतों से विधेयक को पारित कर दिया। साथ ही इस विधेयक पर लाए गए विपक्ष के संशोधनों को खारिज कर दिया गया। यह विधेयक लोकसभा में पहले पारित हो चुका है। किन्तु चूंकि सरकार की ओर से इसमें संशोधन लाए गए हैं, इसलिए अब संशोधित विधेयक को लोकसभा की मंजूरी के लिए फिर भेजा जाएगा। राज्यसभा में विधेयक पर मतदान से पहले सरकार के जवाब से असंतोष जताते हुए अन्नाद्रमुक ने सदन से वाकआउट किया।
कांग्रेस ने इस विधेयक को लेकर अपने विरोध को तब त्यागा जब सरकार ने एक प्रतिशत के विनिर्माण कर को हटा लेने की उसकी मांग को मान लिया। साथ ही इसमें इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की पांच साल तक की भरपाई की जाएगी। इस संशोधित विधेयक के जरिये एकसमान वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली के लागू होने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। इसके माध्यम से केन्द्रीय उत्पाद कर तथा राज्य वैट : बिक्री कर सहित सभी परोक्ष कर इसी में शामिल हो जाएंगे। संशोधित प्रावधानों के अनुसार जीएसटी परिषद को केन्द्र एवं राज्यों अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच आपस में होने वाले विवाद के निस्तारण के लिए एक प्रणाली स्थापित करनी होगी। जीएसटी दर की सीमा को संविधान में रखने की मांग पर जेटली ने कहा कि इसका निर्णय जीएसटी परिषद करेगी जिसमें केन्द्र एवं राज्यों का प्रतिनिधित्व होगा।
इससे पहले विधेयक पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे ऐतिहासिक कर सुधार बताते हुए कहा कि जीएसटी का विचार वर्ष 2003 में केलकर कार्य बल की रिपोर्ट में सामने आया था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2005 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आम बजट में जीएसटी के विचार को सार्वजनिक तौर पर सामने रखा था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 में जीएसटी के बारे में एक विमर्श पत्र रखा गया। बाद में सरकार ने राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक अधिकार संपन्न समिति बनाई थी। वर्ष 2014 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने इससे संबंधित विधेयक तैयार किया था किन्तु लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के कारण वह विधेयक निरस्त हो गया। जेटली ने कहा कि मौजूदा सरकार इसे लोकसभा में लेकर आई और इसे स्थायी समिति में भेजा गया। बाद में यह राज्यसभा में आया और इसे प्रवर समिति के पास भेजा गया। जेटली ने कहा कि इस विधेयक को लेकर राज्य के वित्त मंत्रियों की बैठक में व्यापक स्तर पर सहमति तैयार करने की कोशिश की गई। आज अधिकतर राज्य सरकारें और विभिन्न राजनीतिक दल इसका समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जीएसटी का मकसद भारत को एक बाजार के रूप में समन्वित करना और कराधान में एकरूपता लाना है। उन्होंने कहा कि जीएसटी से पीने वाले अल्कोहल को बाहर रखा गया है तथा पेट्रोलियम उत्पादों के बारे में जीएसटी परिषद तय करेगी।
वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद के फैसलों में दो तिहाई मत राज्यों का और एक तिहाई मत केंद्र का होगा। उन्होंने कहा कि जीएसटी से केंद्र और राज्यों का राजस्व बढ़ेगा, साथ ही करवंचना कम होगी। उन्होंने कहा कि विवाद होने की स्थिति में जीएसटी परिषद ही विवादों का निस्तारण करेगी। यदि परिषद में विवादों का समाधान नहीं हो पाता है तो उसके समाधान के लिए परिषद ही कोई तंत्र तय करेगी। कांग्रेस द्वारा वित्त मंत्री से जीएसटी के संबंध में सीएसटी और आईसीएसटी के सन्दर्भ में लाए जाने वाले विधेयकों के धन विधेयक नहीं होने का आश्वासन मांगे जाने पर जेटली ने कहा कि वह इस संबंध में कोई भी आश्वासन देने की स्थिति में नहीं हैं। जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद ने अभी तक विधेयक का मसौदा तैयार नहीं किया है। इस मुद्दे पर परिषद में कोई विचार विमर्श भी नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों की सिफारिशों का पूर्वानुमान लगाकर वह कैसे कोई आश्वासन दे सकते हैं। हालांकि जेटली ने कहा कि वह इस बात का आश्वासन दे सकते हैं कि इस संबंध में लाए जाने वाले विधेयक संविधान और परम्पराओं के अनुरूप होंगे। उन्होंने कहा कि इस बारे में राजनीतिक दलों से विचार विमर्श किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि अब सरकार केन्द्र द्वारा लागू किए जाने वाले जीएसटी के लिए सीएसटी विधेयक तथा विभिन्न राज्यों के बीच लगाए जाने वाले कर के लिए आईएसटी विधेयक भी सरकार लाएगी। साथ ही जीएसटी से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक के लिए 50 प्रतिशत राज्य विधायिकाओं से मंजूरी ली जानी है। कांग्रेस सदस्यों ने इस बात पर विशेष आपत्ति जतायी कि सरकार अगले सत्र में जो दो विधेयक लाएगी, वे धन विधेयक नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को इस बात का आश्वासन देना चाहिए।
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