नई दिल्ली। बीजेपी नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है। राज्यसभा के सभापति ने सिद्धू का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। उनके आम आदमी पार्टी में जाने की चर्चा है। इस मुद्दे पर अटकलों का बाजार गर्म रहने के बीच आम आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ में कहा कि यदि सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होते हैं, तो वह बाहें फैलाकर उनका स्वागत करेगी। इस्तीफे पर संक्षिप्त बयान में सिद्धू ने अपनी भावी योजना के बारे में ज्यादा खुलासा नहीं किया, लेकिन संकेत हैं कि वह अपनी पार्टी में राज्य में चल रही चीजों से नाखुश थे। सिद्धू ने अपने बयान में कहा, 'सम्मानीय प्रधानमंत्री के कहने पर मैंने पंजाब के कल्याण के लिए राज्यसभा का मनोयन स्वीकार कर लिया था।' उन्होंने कहा, 'पंजाब के लिए हर खिड़की बंद होने के साथ उद्देश्य धराशायी हो गया। अब यह महज बोझ रह गया। मैंने इसे नहीं ढोना सही समझा।' उन्होंने कहा, 'सही और गलत की लड़ाई में आप आत्मकेंद्रित होने के बजाय तटस्थ नहीं रह सकते। पंजाब का हित सर्वोपरि है।' सिद्धू की पत्नी ने भी बीजेपी छोड़ दिया है।
नवजोत सिंह सिद्धू ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर लोकसभा सीट अरुण जेटली के लिए छोड़ी थी, तब से वह पार्टी से नाखुश थे। सिद्धू पार्टी से काफी दिनों से नाराज चल रहे थे, लेकिन मीडिया के सामने उन्होंने कभी भी खुलकर यह नहीं कहा था। वहीं, भगवंत मान का कहना है, ‘सिद्धू अक्सर बोलते रहते हैं कि मैं अकालियों के साथ नहीं जा सकता। अगर बीजेपी और अकाली ने पंजाब में हाथ मिलाया तो मैं बोलूंगा कि लोग आम आदमी पार्टी को वोट दें।’ फिलहाल राज्य में सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं। ऐसे में उनके आम आदमी पार्टी में जाने की चर्चा जोरों पर है। बताया जा रहा है कि सिद्धू अपनी पत्नी नवजोत कौर के साथ चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी में शामिल होंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह बात काफी समय से चल रही थी लेकिन कोई सहमति नहीं हो पाई थी। सिद्धू का क्रिकेट करियर 1983 में शुरू हुआ था, लेकिन उनको पहचान 1987 वर्ल्ड कप से मिली। इसी वर्ल्ड कप में सिद्धू ने वनडे में डेब्यू किया और पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 73 रन की पारी खेली थी। खास बात यह रही कि इस टूर्नामेंट के पहले पांच मैचों में से उन्होंने चार में फिफ्टी बनाई थीं। उनका करियर 1999 तक चला। टीम इंडिया की ओर से सिद्धू ने 51 टेस्ट मैच खेले और 42.13 के औसत से 3202 रन बनाए, वहीं 136 वनडे में उनके बल्ले से 37.08 के औसत से 4413 रन निकले। वनडे में उनके नाम 6 और टेस्ट में 9 शतक हैं। सिद्धू अपने छक्कों के लिए जितने मशहूर रहे, उससे कहीं ज्यादा इन दिनों अपने जुमलों के लिए मशहूर हैं। वे जो जुमले उछालते, हैं वे अधिकतर सोशल मीडिया पर छा जाते हैं। उनके कुछ मशहूर जुमले हैं- 'अगर मेरी चाची की मूंछे होतीं तो मैं उसे चाचा न कहता', 'बिना अंडे फोड़े आप ऑमलेट नहीं बना सकते', 'ठोको ताली'।
बोले सिद्धू, और नहीं ढो सकता था 'बोझ'
बीजेपी सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा देने के बाद सिद्धू ने कहा कि मैंने पीएम के कहने पर पंजाब के विकास के लिए राज्यसभा का नामांकन स्वीकार किया था। पंजाब के विकास के सारे रास्ते बंद होने के बाद ये मेरे लिए अब बोझ बन गया था जिसके बाद मैंने इस बोझ को नहीं ढोने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने कहा कि सही और गलत की जंग में आप तटस्थ नहीं हो सकते। मेरे लिए पंजाब का हित सर्वोपरि है। सूत्रों के मुताबिक इस्तीफा देने के बाद अपनी नवजोत सिहं सिद्धू अपनी विधायक पत्नी के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इस बात की भी अटकलें लगाई जा रही है कि कि आम आदमी पार्टी उन्हें पंजाब में सीएम उम्मीदवार का चेहरा बना सकती है। खबर है कि जल्द पार्टी में चर्चा कर इसका ऐलान कर दिया जाएगा। हालांकि आम आदमी पार्टी के नेता खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन इशारों इशारों में इस बात के संकेत दे रहे है कि अब सिद्धू आप के हो गए हैं। पार्टी के बड़े नेता संजय सिंह ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू ने बीजेपी की राज्य सभा सदस्यता से इस्तीफा देकर साहसिक कदम उठाया है,उनके फैसले का स्वागत करता हूं। तो वहीं सिद्धू ने बीजेपी का साथ छोड़ा तो कांग्रेस को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया है। बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई पर कांग्रेस अब चुटकी ले रही है। क्रिकेटर से राजनीति में आए सिद्धू पंजाब में बीजेपी का बड़ा चेहरा हैं और हाल ही में बीजेपी ने उन्हें राज्सभा में नॉमिनेट किया था। चंद महीने बाद ही नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा के सदस्य से इस्तीफा दे दिया है। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू के इस कदम को बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू पिछले काफी दिनों से पार्टी में अनदेखी से नाराज चल रहे थे साथ ही इस बार के पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल से गठबंधन तोड़ कर अकेले ही चुनाव लड़ने के पक्ष में थे लेकिन अपनी मांग को तवज्जो नहीं मिलता देख उन्होंने अलग राह चुन ली है।
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