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क्या उत्तर प्रदेश में पीके यानी प्रशांत किशोर को मिलेगा प्रियंका गांधी का साथ?

लखनऊ (अतुल चंद्रा@catchnews)। अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव के तहत कांग्रेस ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपने प्रचार अभियान के साथ पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की भी जिम्मेदारी दी है. कांग्रेस में स्थानीय स्तर पर हो रही गुटबाजी और कमजोर संगठन को देखते हुए प्रशांत किशोर को उत्तर प्रदेश में एक वैसे व्यक्ति की जरूरत है जो उन्हें कांग्रेस को खड़ी करने में मदद कर सके. ऐसी परिस्थिति में प्रियंका गांधी ही उत्तर प्रदेश की आखिरी उम्मीद है लेकिन उनके राजनीति में आने को लेकर अभी भी संदेह बना हुआ है. उत्तर प्रदेश में 29 विधायकों के साथ कांग्रेस ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी दी है. पार्टी ने इस उम्मीद के साथ किशोर को जिम्मेदारी दी है कि वह 2017 के चुनाव में पार्टी की स्थिति में अप्रत्याशित बदलाव ले आएंगे. प्रशांत किशोर के लिए उत्तर प्रदेश चुनाव अब तक की सबसे मुश्किल जिम्मेदारी साबित होने जा रही है. बिहार में किशोर को इसलिए खासी मशक्कत नहीं करनी पड़ी क्योंकि वहां पर जेडी-यू और आरजेडी की मजबूत जमीनी पकड़ थी. लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठन स्तर बेहद कमजोर है. उत्तर प्रदेश में पिछले 27 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस फिलहाल राज्य में मरणासन्न अवस्था में है. इसके अलावा पार्टी की आंतरिक गुटबाजी भी किसी से छिपी नहीं है. पिछले बुधवार को वाराणसी में एक बैठक में युवा कांग्रेस के दो गुट प्रशांत किशोर की टीम के सामने ही भिड़ गए. प्रशांत किशोर की टीम 2012 के चुनाव के दौरान संगठन में हुए गलतियों का पता लगाने के लिए वाराणसी गई हुई थी. उत्तर प्रदेश में पिछले 27 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस फिलहाल राज्य में मरणासन्न अवस्था में है. युवा कांग्रेस के को-ऑर्डिनेटर राघवेंद्र चौबे और वाराणसी संसदीय क्षेत्र के चेयरमैन जफरउल्लाह की टीम प्रशांत किशोर की टीम से पहले मिलने के मसले पर भिड़ गई. इससे पहले टीम इलाहाबाद गई थी जहां पार्टी कार्यकर्ताओं ने ऐसी स्थिति बना दी जिससे नाराज होकर टीम को वहां से निकलना पड़ा. गुटबाजी केवल स्थानीय नेताओं तक ही सीमित नहीं है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच झड़प तो देखने को नहीं मिलती लेकिन वह एक दूसरे को लेकर समावेशी रुख नहीं रखते हैं. वाराणसी के राजेशपति त्रिपाठी और राजेश मिश्रा, कानपुर में श्रीप्रकाश जायसवाल और अजय कपूर और बाराबंकी में पीएल पूनिया और बेनी प्रसाद वर्मा एक दूसरे को फूंटी आंख भी नहीं सुहाते हैं. लखनऊ में रीता बहुगुणा जोशी ने भी अन्य नेताओं के खिलाफ अपना गुट बना रखा है. कांग्रेस प्रवक्ता सत्यदेव त्रिपाठी हालांकि ऐसी किसी गुटबाजी से इनकार करते हैं. उन्न्होंने कहा कि चुनाव परिणाम ही बता पाएगा कि प्रशांत किशोर ने कितना काम किया. त्रिपाठी ने कहा, 'वह मौजूदा कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना चाहते हैं. अब वह कितना सफल हो पाते हैं यह देखना होगा.' उत्तर प्रदेश के पूर्व कांग्रेसी नेता रमेश दीक्षित ने कहा कि प्रशांत किशोर एक इवेंट मैनेजर हैं जिसे उत्तर प्रदेश 2017 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति सुधारने की जिम्मेदारी दी गई है. दीक्षित ने कहा, 'यह राजनीति में नया प्रयोग है जो यह बताता है कि पार्टी किस कदर नीति, विचार और नेतृत्व के मामले में खोखली हो चुकी है. यह पार्टी का जनता की दूरी को बयां करता है.' उन्होंने कहा, 'पार्टी शॉर्ट कट की मदद से सफलता चाहती है. आप प्रशांत किशोर को ठेका दीजिए और फिर सो जाइए.' दीक्षित ने कहा कि प्रशांत किशोर का मॉडल उत्तर प्रदेश में काम नहीं करेगा. दीक्षित सही भी हो सकते हैं क्योंकि प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने की भी मांग की जा रही है. कुछ कांग्रेसी नेता इसे प्रशांत किशोर के खिलाफ साजिश मानते हैं. कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक बड़ी मांग मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने की है. हालांकि ऐसा नहीं है. प्रशांत किशोर को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच बूथ लेवल कार्यकर्ता खोजना है. इस बारे में सभी विधानसभा क्षेत्र में प्रश्नवाली भेजी गई है. हालांकि रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर विधानसभा क्षेत्र ने इस तरह की जानकारी देने से मना कर दिया है. यह जाहिर करता है कि किशोर के पास उत्तर प्रदेश में काम करने के लिए सीमित जगह है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक बड़ी मांग मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने की है. भले ही पार्टी सरकार बनाने से कई कोस दूर खड़ी हो लेकिन कार्यकर्ताओं को लगता है कि इससे उन्हें काफी मदद मिलेगी. पार्टी हाई कमान अभी तक इस बारे में तय नहीं कर पाई है कि प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में किस तरह की भूमिका दी जाए. नहीं किसी को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी. ऐसे में प्रशांत किशोर के ऊपर ही उत्तर प्रदेश में कुछ अच्छा करने की जिम्मेदारी बोझ दिखने लगी है. (साभार)
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