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लापरवाही के दो ऐसे सबूत जिससे कांप जाएगा देश का दिल

नई दिल्ली। जिस तरह पठानकोट में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला किया उसी तरह सात साल पहले पाकिस्तान के ही आतंकियों ने मुंबई पर भी हमला किया था. समंदर के रास्ते पाकिस्तान से आए दस आतंकियों ने ये हमला किया था हमले के बाद समंदर में निगरानी बढ़ाने के लिए कई कदम भी उठाए गए थे लेकिन क्या इससे सुरक्षा चाकचौबंद हुई? एबीपी न्यूज की पड़ताल कहती है कि सुरक्षा चाकचौबंद नहीं हुई. हम पूरी पड़ताल बताएंगे लेकिन उससे पहले आपको लापरवाही के दो सबूत बताते हैं. पहला ये कि समुद्री सुरक्षा में तैनात 450 सुरक्षाकर्मियों में से 230 ऐसे हैं जिन्हें तैरना भी नहीं आता, लापरवाही का दूसरा सबूत ये है कि पानी और जमीन पर चलने वाली 20 में से 16 विदेशी बोट की हालत खस्ता हो चुकी है, ये तो सिर्फ दो नमूने हैं और क्या क्या खामियां है? पठानकोट एयरफोर्स बेस पर हमला करने वाले आतंकी जिस तरह से सरहद पर हमारी सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर भारत में दाखिल हुए उसी तरह से साल 2008 में 10 पाकिस्तानी आतंकी हमारी समुद्री सीमा की खामियों का फायदा उठाते हुए मुंबई में घुस गये थे. मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद समुद्री सुरक्षा के नाम पर काफी कुछ कहा गया और किया गया. उस हमले के 7 साल बाद क्या अब हमारी समुद्री सरहद महफूज है? दक्षिण मुंबई के बधवार पार्क का वो इलाका जहां से 26 नवंबर 2008 की रात करीब 9 बजे अजमल कसाब समेत 10 पाकिस्तानी आतंकी मुंबई में दाखिल हुए और अगले 3 दिनों तक उन्होने मुंबई में जमकर खूनखराबा किया. उस तारीख के अब करीब 8 साल बाद हम देख रहे हैं कि अब यहां पर पुलिस चौकी बनाई गई और मुंबई पुलिस की एक धूल खाती बोट भी यहां नजर आ रही है. ये इंतजाम उन तमाम योजनाओं का हिस्सा हैं जो उस हमले के बाद समुद्री सुरक्षा के नाम पर मुंबई में किये गये. लेकिन क्या अब मुंबई की समुद्री सुरक्षा वाकई पुख्ता है. क्या हम इस विश्वास के साथ बेफिक्र रहे कि आतंकी फिरसे समुद्र के रास्ते मुंबई में नहीं दाखिल होंगे? 2009 में महाराष्ट्र सरकार ने न्यूजीलैंड में बनी 20 सी लैग बोट्स खरींदीं. हरेक बोट की कीमत 20 लाख रूपये थी. 20 एंपीबियस वेहिक्लस खरीदे गये. ऐसे एक वेहिकल की कीमत 40 लाख रूपये थी. 15 पुरानी स्पीड बोट खरींदीं गईं. 20 नई स्पीड बोट खरीदीं गईं. इनके अलावा समुद्री सुरक्षा के लिये 450 पुलिसकर्मी तैनात किये गये और 4 विशेष पुलिस थाने बनाये गये जिनका कार्यक्षेत्र मुंबई के समुद्र तट से 12 नॉटिकल माईल्स तक रखा गया. तो आपने देखा कि मुंबई की समुद्री सुरक्षा के लिये कितना कुछ किया गया. लेकिन तब जो दिखा, 8 साल बाद आज वैसा नहीं है. उन सुरक्षा इंतजामों का खोखलापन जल्द ही सामने आने लगा. ये कहना गलत नहीं होगा कि समुद्री सुरक्षा के नाम पर खर्च किये गये करोडों रूपये इसी अरब सागर में डूब गये जिसके किनारे मुंबई बसी है. महाराष्ट्र की समुद्री सीमा 720 किलोमीटर लंबी है और इसमें से 114 किलोमीटर की सीमा अकेले मुंबई से लगी हुई है. मुंबई हमले की जांच के लिये बनाई गई रामप्रधान कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मुंबई में समुद्री सुरक्षा सिर्फ नाममात्र के लिये थी. आतंकी हमले से पहले खुफिया एजेसियों ने 6 बार अलर्ट भेजा था कि आतंकी समुद्र के रास्ते मुंबई पर हमला कर सकते हैं लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया. मुंबई पुलिस, कोस्ट गार्ड और नौसेना के बीच कोई तालमेल नहीं था. महाराष्ट्र सरकार ने रामप्रधान कमिटी की सिफारिशों को गंभीरता से लेते हुए समुद्री सुरक्षा से जुडे तमाम कदम उठाये लेकिन उस हमले के 8 साल बाद ये बेकार नजर आ रहे हैं. सीलैग बोट की कीमत 20 लाख रूपये है और ये समुद्र और जमीन दोनों पर चल सकती है. महाराष्ट्र पुलिस के पास ऐसी 20 बोटें हैं जिनमें से 16 की हालत खस्ता है और बडी मुश्किल से इनका इस्तेमाल हो पा रहा है. खरीदे जाने के सालभर के भीतर ही इनमें समस्या आने लगी. खराब मौसम में इनका इस्तेमाल नहीं हो सकता. बताया जाता है कि इन्हें चलाने के लिये मारूति जिप्सी और एंबेसेडर कार के कार्बोरेटर का इस्तेमाल करना पड रहा है क्योंकि सरकार का इनको बनाने वाली कंपनी के साथ करार खत्म हो गया है. नियमित समुद्री गश्त के लिये अब मुंबई पुलिस इनका इस्तेमाल नहीं करती. अगस्त 2010 में एक हादसा हुआ जो मुंबई पुलिस की समुद्री सुरक्षा की पोल खोलता है. रमेश मोरे नाम का एक कासंटेबल जो कि पुलिस की एक गश्ती नौका पर तैनात था उसकी डूबने से मौत हो गई. बताया गया कि उसे तैरना नहीं आता था. साल 2015 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसी से जुडा हुआ एक अहम खुलासा किया. कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया कि जिन 450 लोगों को मुंबई पुलिस ने समुद्री सुरक्षा के लिये नियुक्त किया था उनमें से 230 पुलिसकर्मियों को तो तैरना ही नहीं आता है. ये भी पता चला कि समुद्री सुरक्षा के लिये लगाये गये कई पुलिसकर्मी महाराष्ट्र के तट से दूर वाले इलाके जैसे विदर्भ और मराठवाडा से थे, जिनमें से कईयों ने पुलिस सेवा से जुडने से पहले न कभी समंदर देखा था और न उन्हें समंदर में काम करने का अनुभव था. समुद्री सुरक्षा की हकीकत चाहे जो भी हो, लेकिन दिखावे के लिये मुंबई पुलिस काफी कुछ कर रही है. समुद्री सुरक्षा के नाम पर पुलिस ने कई ऐसे नियम लोगों पर लादें हैं जो कि उनके लिये परेशानी का सबब बन गये हैं. 26 नवंबर 2008 के पहले तक मुंबई के गेटवे औफ इंडिया पर कई बोट पार्टियां होतीं थीं जो देर रात तक चलतीं थीं, लेकिन उन हमलों के बाद पुलिस ने इन पार्टियों पर पूरी तरह से रोक लगा दी. इसी तरह से पर्यटकों को बंदरगाह की सैर कराने वाली मोटरबोटों के चलने पर भी शाम 7 बजे के बाद बंदिश लगा दी गई. गेटवे औफ इंडिया से पास के अलीबाग जाने वाली बोट आखिरी बोट का वक्त भी शाम 8 बजे तय कर दिया गया. समुद्री सुरक्षा के लिये सरकार ने मछुआरों को परिचय पत्र देने और उनकी नौकाओं का रजिस्ट्रेशन कराने का काम शुरू किया है लोकिन मछुआरों का कहना है कि ये सब सिर्फ दिखावा है. कई नौकाएं गैरकानूनी तरीके से मछली पकडतीं हैं, लेकिन भ्रष्ट पुलिसकर्मी उनके प्रति आंख मूंद लेते हैं जो कि खतरनाक है. समुद्री सुरक्षा की इस हालत पर जब हमने मुंबई पुलिस से सवाल किया तो उसका कहना था कि जो भी खामियां नजर आ रहीं हैं उन्हें दुरूस्त करने का काम जारी है. 26 नवंबर 2008 को हुए हमले ने मुंबई को जो घाव दिये वे अब भी ताजा हैं. मुंबई की समुद्री सुरक्षा का जो हाल है उसे देखते हुए 8 साल बाद हम आज भी विश्वास के साथ ये नहीं कह सकते कि हम उस जैसे हमले से महफूज हैं. (साभार एबीपी)
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