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रोहित वेमुला आत्महत्या कांडः क्या पीएम का इतना बोलना काफ़ी था?

नई दिल्ली (रविश कुमार)। प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ नारे लगाने वाले छात्र तो बाहर निकाल दिए गए लेकिन प्रधानमंत्री ने भी उन नारों पर कुछ नहीं बोला। कुछ छात्रों की नारेबाज़ी सामान्य घटना नहीं है खासकर प्रधानमंत्री की सभा का बंदोबस्त काफी चाकचौबंद होता है। नारेबाज़ी करने वाले छात्रों ने भी जोखिम की परवाह नहीं की। प्रधानमंत्री ने व्यवस्था बहाल होते ही छात्र जीवन के तमाम पहलुओं का चित्रण करते हुए ग़ैर राजनीतिक भाषण दिया। इस विश्वविद्यालय का महत्व आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि 10 जनवरी को ही यहां केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी मौजूद थी। जब विश्वविद्यालय अपना बीसवां स्थापना दिवस मना रहा था और वाइस चांसलर ने मंत्री की प्रशस्ति में कविता पाठ कर दिया। अपने भाषण के अंतिम चरण में रोहित वेमुला का ज़िक्र करते हुए प्रधानमंत्री भावुक हो गए। मां भारती ने अपना लाल खोया है इससे भी ज़्यादा कह सकते थे ताकि इस घटना से नाराज़ तबके में भरोसा पैदा होता और तमाम विश्वविद्यालयों को संदेश जाता कि किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। लेकिन प्रधानमंत्री का भाषण समाप्त होते ही न्यूज़ चैनलों पर फ्लैश होने लगा कि मानव संसाधन मंत्री ने रोहित की आत्महत्या से जुड़ी तमाम परिस्थितियों और तथ्यों की जांच करने के लिए न्यायिक आयोग के गठन का फैसला किया है। यह आयोग तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। स्मृति ईरानी ने रोहित की मां से बात की और अपनी संवेदना व्यक्त की। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों के साथ अब भेदभाव की घटनाएं न हों, उनके मुद्दों की ठीक मंच से सुनवाई हो सके इसके लिए मंत्रालय ने देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए कुछ कदम उठाए हैं। सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों की समस्याओं के प्रति संवेदनशी बनाने के लिए एक कार्यक्रम लॉन्चन किया जाएगा। इसके तहत अकादमिक प्रशासन से जुड़े व्यक्तियों को संवेदनशील बनाया जाएगा। सभी वार्डन, प्रशासनिक अधिकारी, रजिस्ट्रार के लिए इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेना अनिवार्य होगा। इसके लिए एक विशेष माड्यूल बनाया जाएगा। कमज़ोर छात्रों की शिकायतें लेने और कार्रवाई करने के लिए विशेष प्रकार का सिस्टम बनेगा। सभी वाइस चांसलर और वरिष्ठ प्रशासकों को ट्रेनिंग दी जाएगी कि वे सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक रूप से कमज़ोर छात्रों से रिश्ता कैसे बनाए। कैंपस में भेदभाव को लेकर ज़रा भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसके लिए एक विशेष चार्टर यानी घोषणापत्र जल्दी ही जारी किया जाने वाला है। पहले भी अदालतों ने इस तरह के कदम उठाने के आदेश दिये गए थे मगर ध्यान नहीं दिया गया। मंत्रालय के इन फैसलों से देश के सभी शिक्षण संस्थानों को कड़ा संदेश जाना चाहिए। आंध्र हाईकोर्ट ने भी ऐसी परिस्थितियों को रोकने केलिए 2013 में आदेश दिये थे कि छात्रों के खिलाफ निलंबन या बर्खास्तगी की कार्रवाई की अपील सुनने के लिए सभी विश्वविद्यालय में ज़िला जज को अंबुडस्मन बनाया जाए मगर इसका ठीक से पालन नहीं हुआ। अब यह भी फैसला हुआ है कि देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में आईआईटी गांधीनगर के तैयार किये हुए एक माड्यूल को लागू किया जाएगा। इसे The Peer-group Assisted Learning (PAL) कहा जाता है। इसके तहत सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर सभी छात्रों को एक मेंटर मिलेगा। ये मेंटर न सिर्फ पढ़ाई में मदद करेंगे बल्कि संस्थानों के भीतर अन्य मामलों में सहयोग करेंगे। 2 नवंबर 2015 को हमारे अहमदाबाद सहयोगी रोहित भान ने एक स्टोरी फाइल की थी। रोहित ने बताया है कि The Peer-group Assisted Learning (PAL) का माड्यूल 2012 में प्रो कबीर जसूजा ने तैयार किया था। इसके तहत सभी विषयों के छात्रों को भावनात्मक और पढ़ाई के तनाव और दबाव से मुकाबला करने के लिए सीनियर को मेंटर बनाया जाता है। केमिकल इंजीनियर पढ़ाने वाले प्रो. कबीर ने बताया कि दूसरे और तीसरे वर्ष के छात्र का चयन किया जाता है कि वे प्रथम वर्ष के छात्रों की मदद करेंगे। इससे छात्रों का प्रदर्शन धीरे-धीरे बेहतर हो रहा है। रोहित भान ने स्टोरी इसलिए की थी क्योंकि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने इस व्यवस्था को सभी आईआईटी के लिए लागू करने का फैसला किया था। इसी को अब सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में लागू किया जाएगा। मेंटर बनने वाले सीनियर को आईआईटी गांधीनगर प्रति घंटा 125 रुपये देती है। इसके कारण 42 छात्रों के लिए 20 सीनियर छात्र मेंटर के लिए आगे आए हैं। आईआईटी दिल्ली की एक और टीचर ने इस सिस्टम की तारीफ की है। मानव संसाधन मंत्रालय ने दो सदस्यों की एक जांच टीम हैदराबाद भेजी थी, टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इस घटना का असर देश के विश्वविद्यालयों में दिखना चाहिए बल्कि एक जगह से दिखने की खबर भी आई है। कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद गुरुवार को अजमेर में राजस्थान सेंट्रल युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें छह अन्य प्रोफेसरों के भी नाम हैं। इन सभी पर पीएचडी के छात्र उमेश जोनवाल ने आरोप लगाया है कि गाइड उल्लास जाधव ने वीसी से मिलकर परेशान किया और विश्वविद्यालय से निकलवा दिया। पिछले अक्टूबर में जब जोनवाल ने शिकायत की थी तब पुलिस ने एफआईआर भी नहीं की थी। गुरुवार को कोर्ट के आदेश के बाद दर्ज किया गया है। जोनवाल को 15 दिन तक अनुपस्थित रहने के कारण विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था। स्मृति ईरानी ने जो कदम उठाये हैं क्या वह यह भी सुनिश्चित करेंगी कि उनमें राजनीतिक दखलंदाज़ी नहीं होगी। इस बीच हैदराबाद से ख़बर आई है कि विश्वद्यालय ने रोहित वेमुला चक्रवर्ती के परिवार को 8 लाख रुपया देने का फैसला किया है। आठ लाख का ड्राफ्ट रोहित की मां को सौंप दिया जाएगा। अभी भी सात छात्र भूख हड़ताल पर हैं। दस छात्रों के संगठन ने मिलकर एक ज्वाइंट ऐक्शन कमेटी बनाई है। इसमें एबीवीपी नहीं है। शुक्रवार को जनरल बॉडी मीटिंग भी हुई ताकि स्थिति सामान्य हो सके लेकिन इस्तीफा देने वाले प्रोफेसरों और छात्रों ने विरोध किया और कहा कि वीसी का इस्तीफा होना चाहिए। रोहित वेमुला के सुसाइड नोट को भी फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। रोहित के सुसाइड नोट में कई जगहों पर काटा गया है। उस पर रोहित ने लिखा है कि ये लाइन उन्होंने खुद काटी है फिर भी इनकी फोरेंसिक जांच कराई जाएगी। हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने बताया है कि जिन पंक्तियों को काटा गया है उससे ज़ाहिर होता है कि रोहित जिन संगठनों के लिए काम करता था, उन्हें लेकर भ्रमित था और उनसे कुछ मतभेद थे। सुसाइड नोट से ऐसा ज़ाहिर होता है कि रोहित ने कहा है कि एएसए और एसएफआई अपने हित के लिए ही काम करते हैं। पुलिस यह भी जांच करेगी कि रोहित का पता लगाने में छह घंटे क्यों लगे। बुधवार की प्रेस कांफ्रेंस में स्मृति ईरानी ने कहा था कि कार्यकारी परिषद की उप समिति के मुखिया दलित प्रोफेसर थे। उनके इस दावे को गलत बताते हुए 14 दलित और अन्य समुदाय के प्रोफेसरों ने अपने प्रशासनिक दायित्वों से इस्तीफा दे दिया। इस मामले पर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से कोई सफाई नहीं आई है। हम आज कैंपस में छात्र राजनीति बल्कि उससे भी ज्यादा विचार विमर्श के घटते स्पेस पर बात करना चाहते हैं। अगर विश्वविद्यालय में तमाम मुद्दों पर खुलकर बहस नहीं होगी तो कहां होगी। क्यों ऐसा होता है कि जेएनयू में रामदेव को नहीं आने दिया जाता है और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सिद्धार्थ वरदराजन को इसलिए नहीं बोलने दिया जाता है क्योंकि एबीवीपी को लगता है कि उनके विचार राष्ट्रविरोधी हैं। सिद्धार्थ वरदराजन रोज़ाना टीवी पर बीजेपी के नेताओं के बगल में बैठकर बहस करते नज़र आते हैं। उनके लेख हर जगह छपते हैं। लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने बोलने नहीं दिया। उसी तरह जेएनयू छात्र संघ ऐलान करता है कि रामदेव को अपने यहां नहीं आने देंगे। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष AISF के हैं। रामदेव तो दिन भर टीवी चैनलों और अपने योग शिविरों में भाषण देते नज़र आते हैं। उन्हें जेएनयू में क्यों नहीं सुना जा सकता। ये और बात है कि रामदेव बाद में अपने कारणों से जेएनयू नहीं गए लेकिन उनका विरोध तो हुआ ही। हमने कुछ और गूगल सर्च किया कि हाल फिलहाल में टकराव की क्या क्या घटनाएं हुईं हैं तो एक-एक कर कई छात्र संगठनों के नाम निकलते गए जिनके नाम मारपीट की घटना में शामिल हैं। मार खाने में भी और मारने में भी। आज ही 22 जनवरी को बेंगलुरु में NSUI के सदस्य ABVP के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन करने लगे जिसके कारण दोनों के बीच झड़प हो गई। आरोप है कि एबीवीपी के छात्र नेता पर हमला हुआ है और दफ्तर के शीशे तोड़े गए हैं। पांच लोग हिरासत में भी लिये गए हैं। पिछले साल 2 अक्टूबर को केरल के त्रिचूर के श्री केरला वर्मा कॉलेज में एसएफआई और एबीवीपी के सदस्यों के बीच झड़प हो गई। एसएफआई के छात्र बीफ फेस्टिवल का आयोजन कर रहे थे जिसका एबीवीपी ने कैंपस में बीफ खाए जाने का विरोध किया। जमकर मारपीट हुई और डेक्कन क्रोनिकल के अनुसार ABVP के सदस्यों को चोट भी लगी। पुलिस ने ABVP के छात्रों की शिकायत के आधार पर एसएफआई के 12 सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज किया। SFI के सदस्यों का आरोप था कि ABVP के सदस्यों ने मारा और उनपर पाकिस्तानी होने के आरोप लगाए। 26 अगस्त 2015 के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि दिल्ली के रामजस कॉलेज में ABVP के सदस्यों ने एसएफआई के दो सदस्यों को कथित रूप से पीट दिया। एसएफआई च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम का विरोध कर रहे थे। अखबार के अनुसार ABVP के स्टेट सेक्रेटरी ने माना मारपीट की घटना हुई है लेकिन उनके संगठन के सदस्य ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं थे। केरल के कोट्टायम में गर्वनमेंट आर्ट कॉलेज में ABVP और SFI के सदस्यों के बीच मारपीट में सात छात्र घायल हो गए। एबीवीपी और एसएफआई के नेताओं को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। कौन तय करेगा कि कौन राष्ट्रविरोधी है और किस मुद्दे पर हम आपको विचार करने की छूट देंगे और इस मुद्दे पर नहीं देंगे। अलग-अलग विचारधाराएं अगर एक दूसरे से संघर्ष करते हुए संवाद नहीं कर सकती हैं तो फिर उनकी आक्रामकता दादागीरी क्यों न मानी जाए।
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