लखनऊ। मुजफ्फरनगर दंगे का जिन्न दो साल बाद फिर बंद बोतल से बाहर आ गया है। मुजफ्फरनगर दंगा जांच आयोग के अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस बिष्णु सहाय ने बुधवार को राज्यपाल राम नाईक से राजभवन में मुलाकात कर मुजफ्फरनगर दंगे की न्यायिक जांच रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में मुजफ्फरनगर के तत्कालीन पुलिस व प्रशासनिक अफसरों और कुछ नेताओं को कठघरे में खड़ा किया गया है। जांच आयोग की रिपोर्ट की कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि आयोग की जांच रिपोर्ट में पुलिस प्रशासन के कुछ अफसरों और कुछ नेताओं को दोषी ठहराते हुए दंगे के लिए जिम्मेदार माना गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरनगर में तैनात कुछ पुलिस और प्रशासन के अफसरों की अक्षमता व लापरवाही से दंगा भड़का। इसके साथ ही कुछ पार्टी विशेष के नेताओं ने भी दंगा भड़काने में अहम भूमिका निभाई। रिपोर्ट में आगे से इस तरह के दंगे न हो, इस दृष्टि से राज्य सरकार को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं। इस बीच, राजभवन के प्रवक्ता ने बताया कि राज्यपाल इस जांच रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे और अध्ययन के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास कार्रवाई के लिए भेजेंगे। अगस्त 2013 में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ था। दंगे की न्यायिक जांच के लिए यूपी सरकार द्वारा हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस बिष्णु सहाय की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया था। बिष्णु सहाय जांच आयोग का गठन कमीशन आफ इन्कवायरी एक्ट के तहत नौ सितंबर 2013 को किया गया था। करीब दो साल की जांच के बाद जस्टिस बिष्णु सहाय ने यह जांच रिपोर्ट पेश की है। जांच रिपोर्ट छह खंडों में 775 पेजों की है। हालांकि अभी जांच रिपोर्ट में क्या है, इसका खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि इसकी सिफारिशें जब सामने आएंगी तो दंगे के तमाम रहस्यों से पर्दा उठेगा।
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