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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है या ये रामदेव दिवस?

नई दिल्ली। पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार। यही एक पता है जो केंद्र सरकार की योग शिविरों के लिए बनाई सूची में बार-बार नज़र आता है। www.ccryn.org पर क्लिक करेंगे तो देश के 191 ज़िलों में योग शिविर चलाने की ज़िम्मेदारी रामदेव की संस्था को दी गई है। सरकार ने बकायदा इसके लिए योग के काम में जुटी संस्थाओं से आवेदन मंगाया था, जिसकी अंतिम तारीख़ 8 मई थी। The Central Council for Research in Yoga & Naturopathy की वेबसाइट पर जब गया तो पता चला कि देश के सभी ज़िलों में महीने भर के लिए योग शिविर लगाये जाने हैं। इसके लिए सरकार एक लाख रुपये की मदद राशि भी देगी। वेबसाइट पर फॉर्म तो है, मगर किन संस्थाओं ने जमा किया और किस आधार पर चयन हुआ इसकी कोई सूचना नहीं है। फिर भी हैरानी होती है कि जिस देश में योग की अनगिनत संस्थाएं हैं, उस देश के बारे में इस सूची को देखते हुए आप कोई छवि बनाते हैं तो यही बनेगी कि रामदेव न होते तो अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ही नहीं बन पाता। यह एक सच्चाई भी है मगर यही एक सच्चाई नहीं है। रामदेव ने ज़रूर योग को कुलीन सेठों की संगत में बैठने वाले गुरुओं की पांत से निकाल कर गांव-गांव तक पहुंचाया है लेकिन हमारे देश में और भी कई छोटी-बड़ी संस्थाएं योग को लेकर काम कर रही हैं। सरकार की यह एक लाख की मदद राशि उन्हें मिलती तो योग का आधार और मज़बूत होता। एक शिविर के लिए एक लाख की राशि से रामदेव को ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन योग के ज़रिये सरकार से उनके संबंध और मज़बूत तो होते ही हैं। कुछ दिन पहले 'आजतक' चैनल पर जब अशोक सिंघल ने रामदेव से पूछा था कि काला धन पर क्यों चुप हो गए हैं तो उन्होंने कहा था कि 21 जून बीत जाने दीजिए। तो क्या नहीं बोलने की कीमत पर ही रामदेव को 191 शिविरों की ज़िम्मेदारी दी गई है। इसके लिए सरकार उन्हें 191 लाख रुपये भी देगी। हालांकि यह साफ नहीं है कि रामदेव ने यह रकम ली है या नहीं। केंद्र सरकार की वेबसाइट पर 651 केंद्रों की सूची तैयार की गई है, जिनमें से 24 स्थान रिक्त हैं। 191 योग शिविर रामदेव के हिस्से में आए हैं। दूसरे नंबर पर हैं श्री श्री रविशंकर की संस्था 'व्यक्ति विकास केंद्र' जिसे 69 शिविर मिले हैं। अब श्री श्री रविशंकर के लिए 69 लाख क्या चीज़ हैं इसलिए पैसा तो कारण नहीं हो सकता है। लेकिन इन्हीं दो संस्थाओं के ज़रिये क्या देश में योग-कार्टेल तो नहीं बन रहा है। कार्टेल का मतलब कुछ खास लोगों का समूह जिनके संबंधों के दायरे में संसाधनों का बंटवारा हो जाता है। सामान्य के लिए ख़ास नहीं बचता। मेरी तरफ से संस्थाओं को गिनने में मामूली चूक हो सकती है। मगर एक-दो से ज़्यादा का अंतर नहीं आएगा। कुल मिलाकर तीन संस्थाओं को 271 शिविर मिले हैं। सद्गुरु के 'इशा फाउंडेशन' को सिर्फ 11 शिविर दी गई है। सदगुरु भी काफी लोकप्रिय हैं। इनका एक पोस्टर दिल्ली में किरण बेदी के साथ हाल ही में देखा था। सदगुरु कॉरपोरेट की दुनिया में काफी मान्य व्यक्ति हैं। अंग्रेज़ी में ही सही काफी प्रभावशाली तरीके से बोलते हैं। देश के सत्रह राज्यों में इशा फाउंडेशन के सेंटर हैं। भारत के बाहर कई देशों में भी इनकी संस्थाएं चलती हैं। ब्रह्म कुमारीज़ को कौन नहीं जानता। इनका राजयोग काफी लोकप्रिय है। कई चैनलों पर इनका कार्यक्रम देखा भी जाता है। देश के कोने-कोने में इनकी संस्था है। फिर भी ब्रह्म कुमारीज़ को सिर्फ तीन शिविर दी गई है। यह पता करना चाहिए कि क्या इन संस्थाओं ने 11 और 3 के लिए ही आवेदन किया था या इनके आवेदन पतंजलि के आगे खारिज क्यों हुए। इसके अलावा उज्जैन योग लाइफ सोसायटी को पांच, एस डी एम कॉलेज आफ नेचुरोपैथी एंड यौगिक साइंसेज़ को सात शिविर मिले हैं। उम्मीद है विज्ञापनों में लोगों को बताया जा रहा है कि अमुक ज़िले में फलाने को एक महीने तक योग शिविर चलाने की ज़िम्मेदारी दी गई है, आप वहां जाकर योग का प्रशिक्षण ले सकते हैं। सरकार के इस फैसले से योग को लेकर काम करने वाली छोटी संस्थाओं में असंतोष तो हैं मगर कोई बोलना नहीं चाहता। गुरुओं के कारोबारी जगत का यह एक नियम भी है कि कोई किसी के ख़िलाफ़ नहीं बोलता है। रामदेव के अलावा कई बड़े गुरुओं ने भी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का समर्थन किया था और अपने तरीके से प्रचार भी किया था लेकिन रामदेव जितना राजनीतिक प्रयास किसी ने नहीं किया। लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपनी संस्था का राजनीतिक इस्तेमाल भी किया था। एक पार्टी भी बनाई थी प्रचार के लिए जिसका अब कोई अता-पता नहीं है। तो क्या इसी का इनाम रामदेव को मिला है। हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरोप लगाया था कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के नाम पर सिर्फ रामदेव को बढ़ावा दिया जा रहा है। मुंगेर स्थित बिहार योग विद्यालय को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। ज़्यादा लोगों का ध्यान इस पर नहीं गया। लेकिन आप योग के किसी भी जानकार से पूछ लीजिए, वो बतायेगा कि दुनिया भर में योग को ले जाने के लिए बिहार योग विद्यालय ने कितना योगदान दिया है। पुणे के गुरु आयंगार की भी लोकप्रियता कम नहीं हैं। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन इनके ही शहर में कोई और संस्था सरकार की तरफ़ से योग शिविर का आयोजन करेगी। बिहार के मुंगेर में पतंजलि योग पीठ को देने का क्या मतलब है जबकि वहां बिहार योग विद्यालय आश्रम के आंगन से घर के आंगन तक कार्यक्रम चला ही रहा है। मेरी जानकारी के अनुसार बिहार योग विद्यालय ने आवेदन भी नहीं किया था लेकिन क्या इस संस्था का मान नहीं रखना चाहिए था। वही हाल पुणे का है। वहां दो संस्थाओं को जिम्मेदारी दी गई है। दोनों ही आयंगार स्कूल के नहीं हैं। मीडिया के कुछ हलकों में चर्चा हुई थी कि योग दिवस के बहाने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रामदेव को किनारे लगाना चाहता था। दरअसल तभी समझ गया था कि रामदेव को ही प्रमुखता मिलेगी। रामदेव ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए काफी कुछ किया है। प्रधानमंत्री ने भी रामदेव का काफी मान रखा है। 191 लाख रुपये की राशि कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हर लिहाज़ से देखिये तो अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर सिर्फ और सिर्फ रामदेव ही हैं। टीवी पर भी श्री श्री रविशंकर और सदगुरु जग्गी दिखे मगर बहुत देर से और बहुत कम। 21 जून के पहले के आयाजनों के लिहाज़ से देखिये तो रामदेव ही नज़र आ रहे हैं। चैनल से लेकर पैनल तक में वही हैं। उनकी ऊर्जा बेमिसाल है। वे हर चैनल पर आसन करते हुए नज़र आ रहे हैं। क्या पता अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का नाम भी रामदेव दिवस हो जाए। भारत में तो हो ही सकता है। चलते-चलते एक टिप्पणी और- प्रधानमंत्री ने शिल्पा शेट्टी से मुलाकात की और उन्हें योग दिवस के मौके पर आमंत्रित भी किया। शिल्पा शेट्टी के योग के मशहूर वीडियो राजपथ पर दिखाये जायेंगे। शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा आईपीएल की टीम राजस्थान रॉयल्स के मालिक हैं। राज कुंद्रा पर सट्टेबाज़ी के आरोप लग रहे हैं और अदालत में मामला भी चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आर एम लोढा और रिटायर जस्टिस अशोक भान और आर वी रवींद्रन की कमेटी को चेन्नई सुपरकिंग्स के मयप्पन और राजस्थान रायल्स के कुंद्रा के ख़िलाफ़ सज़ा तय करनी है। कहीं ऐसा तो नहीं कि शिल्पा शेट्टी इसी बहाने कोई नया ‘फिक्सासन’ कर रही हैं। शिल्पा शेट्टी का योग वीडियो काफी लोकप्रिय है लेकिन अच्छा होता कि इस दिवस को योग के अनुरूप पावन ही रहने दिया जाता। गुरुओं को दरकिनार कर ग्लैमर के नाम पर आरोपी और विवादित लोगों को ब्रांड बनाकर योग का कितना भला हो रहा है इस पर विचार करना चाहिए। (साभार)
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