




हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति को दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा हो यही कामना की जाती है।
विवाह = वि+वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है – विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
शायद इन्हीं उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अजित कन्हैया ओझा और उनकी पत्नी सुनीता ओझा ने अपने जीवन काल में अधिक से अधिक निर्धन व गरीब कन्याओं के विवाह कराने का फैसला लिया। इसी के अंतर्गत 18 अप्रैल को यहां होने वाले कार्यक्रमों की तैयारियों में जुटे लोगों ने मौका मुआयना किया। सामूहिक विवाह स्थल पर पहुंचकर कन्यादान समागम के वरिष्ठ पदाधिकारी दुर्गा प्रताप सिंह उर्फ पप्पू, जितेन्द्र सिंह, कृष्ण कुमार सिंह, उपेन्द्र पाण्डेय आदि ने तैयारियों का जायजा लिया। उधर, अजित कन्हैया ओझा के पिताश्री कन्हैया ओझा ने बताया कि इस सामूहिक वैवाहिक संस्कार के आयोजन से जो आत्मिक शांति मिलती है, वह अमूल्य है। इसे प्राकृतिक व आध्यात्मिक सुख भी कहा जा सकता है।
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