पटना। बिहार में करारी हार के बाद सत्ताधारी पार्टी जेडी (यू) की खींचतान सार्वजनिक रूप से सामने आ गई है। पार्टी अध्यक्ष शरद यादव का खेमा बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विदाई सुनिश्चत करने में लगा है। दूसरी तरफ नीतीश के समर्थक विधायक किसी और को मुख्यमंत्री स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि, नीतीश की पसंद उनके प्रधान सचिव रहे राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह बताए जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि नीतीश के समर्थक अब शरद यादव पर पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए दबाव डालेंगे। शरद यादव ने सोमवार को भी कहा कि मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफे का नीतीश का फैसला अंतिम है और यह काफी सोच-समझकर लया गया है। दूसरी तरफ विधायकों और विधान पार्षदों के अनुरोध पर नीतीश ने अपना अंतिम फैसला सुनाने के लिए आज तक का वक्त लिया है। नए मुख्यमंत्री के लिए कई नेताओं के नाम चल रहे हैं। पटना में जारी जेडी (यू) विधानमंडल दल की बैठक में इस पर तस्वीर साफ होने की उम्मीद है।
सूत्रों का कहना है कि नीतीश ने आगे की रणनीति के लिए अपने करीबियों के साथ रविवार की रात मंत्रणा की और आज भी वह एक-एक करके नेताओँ से मिल रहे हैं। बताया जाता है कि नीतीश पार्टी अध्यक्ष शरद यादव से इस बात से नाराज हैं कि उन्होंने 'सेक्युलर अलायंस' के लिए लालू यादव के साथ बातीचत की पहल अपने स्तर पर कर दी। दूसरी तरफ शरद यादव का खेमा अब नीतीश से कैमरे के सामने भी इस्तीफा मांगने से परहेज नहीं कर रहा है। जेडी (यू) के दो विधायकों ने कहा कि मुख्यमंत्री को पद छोड़ देना चाहिए। अनिरुद्ध यादव ने कहा कि नीतीश को इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने कहा, 'विधायकों को नीतीश का समर्थन करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। नीतीश दोबारा चुने गए तो सदन में शक्ति परीक्षण की स्थिति में सरकार हार जाएगी।' शरद यादव ने भी कहा कि नीतीश के इस्तीफे का फैसला अंतिम है। उन्होंने कहा, 'यह कठिन फैसला था, लेकिन सही है और देश, पार्टी व नीतीश जी के लिए अच्छा है।' शरद यादव ने कहा कि फैसला हो चुका है और उसी पर कायम रहेंगे। हालांकि जब शरद यादव से पूछा गया कि नीतीश नहीं तो बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, तो इसके जवाब में उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। इन घटनाक्रमों के बीच विरोधी खेमा शरद यादव से काफी चिढ़ा हुआ है। यह खेमा शरद यादव के करीबी बिजेंद्र यादव को किसी भी कीमत पर सीएम बनाने के लिए तैयार नहीं है। कुछ नेताओं का कहना है कि शरद यादव को अपनी जाति के वोटरों का भी साथ नहीं मिला है।
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