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भ्रष्टाचार और अवैध कब्जे के खिलाफ ‘अजेय’ धरना!

सबसे बड़ा सवाल यह है कि विश्व के सबसे लंबे धरने (18 वर्ष) पर बैठे मास्टर विजय सिंह को कब ‘विजय’ हासिल होगी। आखिर वजह क्या है कि एकला चलो की तर्ज पर अपने मिशन को जारी रखने वाले मास्टर विजय सिंह की ओर किसी का गंभीर रूप से ध्यान नहीं जा रहा है। लोग आते हैं, अफसोस जता कर चले जाते हैं। इस तरह से कब तक चलता रहेगा ये सब, अंतहीन सिलसिला। एक रिपोर्ट।
मुजफ्फरनगर। अट्टारह साल की कठिन तपस्या। एक ही धुन। भ्रष्टाचार और भूमाफिया के खिलाफ जंग। मुजफ्फरनगर और अब शामली जिले की कैराना तहसील के ब्ल‚क ऊन में पड़ने वाले गांव चौसाना में करीब चार हजार बीघा सार्वजनिक जमीन पर दबंगों के कब्जे को मुक्त कराने के महायज्ञ में मास्टर विजय सिंह को आंशिक सफलता तो मिली है, लेकिन अभी भी यह मिशन अधूरा है। सियासत और पैसे की ताकत में दखल रखने वाले भूमाफिया के खिलाफ जंग के इस सेनानी ने हिम्मत नहीं हारी है। अन्ना हजारे ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठार्इ तो मास्टर विजय सिंह ने इस आवाज के साथ अपना सुर मिलाया। आज अन्ना की आवाज के साथ आप पार्टी को मिली सफलता से उन्हें संबल मिला है कि वे अन्ना और अरविंद केजरीवाल की मुहिम का मुखर समर्थन कर देश को भ्रष्टाचार के महादानव से मुä दिलाने का काम कर रहे हैं। पेश है मास्टर विजय सिंह के सघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी। मैं कैराना तहसील के चौसाना गांव का एक साधारण सा अध्यापक था। मैने गांव में गरीबी देखी। मैने एक भूखे बच्चे को देखकर सोचा कि जब हमारे शास्त्रों में सबै भूमि गोपाल की अर्थात र्इश्वर की मानी गर्इ है तो क्यों समाज में एक वर्ग आज भी दरिæता के चंगुल में फंसा हुआ है। गांव में रहते रहते मुझे पता चला कि कुछ दबंग गांव सभा की करीब चार हजार बीघा जमीन पर अवैध कब्जा किए हुए हैं। यह कीमती जमीन काफी कानूनी तरीके से अवैध कब्जा कर हथियायी गर्इ। ग्राम प्रधान और राजस्व अधिकारियों की मिली भगत से करीब 130 लोगों के नाम जमीन के पट्टे और फर्जी प्रविष्टियां की गईं। इनमें कुछ वास्तविक जरूरत मंद थे, लेकिन उनकी आड में करीब 70 ऐसे लोगों ने भी अवैध रूप से पट्टे कराकर जमीन हथियायी जो पहले से सैंकडों बीघा जमीन के काश्तकार हैं। इनमें कुछ ऐसे लोग भी हैं जो गांव के निवासी नहीं हैं। मैने इसकी पड़ताल शुरू की तो पता चला कि इनमें गांव के प्रधान बाबूराम और उनके परिजन तथा रिश्तेदारों के नाम से भी करीब एक हजार बीघा जमीन पर अवैध रूप से पट्टे काटकर अवैध कब्जा किया गया है। मैंने इसके खिलाफ उठार्इ तो ग्राम प्रधान और उनके दंबग परिजनों व साथियों ने मुझे धमकियां देनी शुरू कर दीं। समाज में असमानता के खिलाफ जंग का जज्बा मुझे वहां से मिला। मैंने शिक्षक पद से इस्तीफा देकर अन्याय के खिलाफ लड़ने का मन बनाया। गांव की भूमि पर शोध किया तो पाया कि हमारे गांव समेत तमाम स्थानों पर ऐसी बेपनाह भूमि है, जिस पर कब्जा किए हुए हैं। मैने इसे लेकर प्रशासन को ज्ञापन दिए तो मर्इ 1995 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने इसकी जांच मेरठ मंडल के आयुक्त एचएल बिरदी को सौंपी। उनके नेतृत्व में डीआर्इजी विक्रम सिंह, डीएम सूर्यप्रताप सिंह व अन्य अधिकारियों की टीम ने इसकी जांच शुरू की। जांच में अवैध कब्जे के आरोपों को सही पाया गया। मंडलायुक्त बिरदी ने अपनी रिपोर्ट में मेरे आंदोलन को धर्म युद्ध की संज्ञा दी तो माफिया के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए मेरा हौसला और बढ़ा। उस समय अवैध कब्जा करने वाले परिवार के जगत सिंह भाजपा से विधायक थे। इस जांच की रिपोर्ट को सियासी दबाव में ठंडे बस्ते में डलवा दिया गया। मामले की जांच सीबीसीआर्इडी को सौंप दी गर्इ। सीबीसीआर्इडी के आर्इजी एसी शर्मा ने मामले की जांच की और एक बार फिर अपनी रिपोर्ट में अवैध कब्जों की पुष्टि कर संयुक्त सचिव गृह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके बावजूद इस मामले में शासन या प्रशासन की स्तर से कोर्इ कार्रवार्इ नहीं की गर्इ। गरीबों के हक की जमीन को दबंगों से मुक्त कराने और पात्र लोगों को इसका लाभ दिलाने की मांग को लेकर मुझे 26 फरवरी 1996 को जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर कार्यालय पर धरने पर बैठना पड़ा। कोर्इ कार्रवार्इ न होने के कारण यह धरना बेमियादी ढंग से शुरू किया गया। सियासत के बहरे कान खोलने के लिए मुझे कर्इ बार सियासी रहनुमाओं के आगे एडि़यां रगडनी पड़ीं। भाजपा बसपा शासन में तत्कालीन नगर विकास मंत्री लालजी टंडन को सारी बातों से अवगत कराया गया। कोर्इ कार्रवार्इ न होने पर मैने कफन ओढ़कर उनकी गाडी के आगे लेटकर भी अपनी बात मनवाने पर दबाव दिया, लेकिन कोर्इ कार्रवार्इ नहीं हुर्इ। बाद में राजस्व मंत्री रवि गौतम यहां आए और उन्होंने मेरे धरने पर पहुंचकर तमाम जांच रिपोर्टों का अवलोकन किया तथा एक सप्ताह में कार्रवार्इ का आश्वासन देते हुए धरना समाप्त करने को कहा। मैने उनसे कहा कि मैं उसी दिन धरना समाप्त कर दूंगा जिस दिन आप इस संबंध में कार्रवार्इ की शुरूआत कराएंगे। मंत्री जी आश्वासन देकर लखनऊ चले गए और कोर्इ कार्रवार्इ नहीं की गर्इ। 
सीएम के आदेश पर भी जांच नहीं 
वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह जेएन चौंम्बर को मामले की जानकारी दी तो उन्होंने स्थानीय प्रशासन को इस संबंध में कार्रवार्इ के आदेश दिए। तत्कालीन जिलाधिकारी आर.रमेश कुमार के नेतृत्व में प्रशासन की टीम मौके पर जाकर करीब तीन सौ बीघा जमीन से अवैध कब्जे हटवाए। इस मामले में अवैध कब्जे करने वालों के खिलाफ 136 मुकदमे दर्ज किए गए। अभी तक जांच में करीब 3200 बीघा जमीन पर अवैध कब्जे साबित हो चुके हैं। इसके बावजूद बाकी कब्जों के मामले में कोर्इ कार्रवार्इ नहीं हुर्इ। प्रदेश में सपा सरकार के गठन के बाद 30 मार्च 2012 को मैने मुजफ्फरनगर से लखनऊ के लिए पैदल मार्च किया। 19 दिन तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए छह सौ किमी पैदल चलकर 28 अप्रैल को लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने मेरी मुहिम को सही बताया और मेरे गांव चौसाना के साथ प्रदेश भर में ग्राम सभा व अन्य सार्वजनिक संपत्तियों पर इस तरह से किए गए अवैध कब्जे हटाने के लिए निर्देश भी अधिकारियों को दिए। मुख्यमंत्री ने कहा था कि वरिष्ठ अधिकारियों की टीम गठित कर उसे मौके पर भेजकर अवैध कब्जे हटवाएं और पात्र गरीब लोगों को ऐसी भूमि का वितरण कराएं एवं विकास के कार्यों में इसका प्रयोग करें। इसके तीन सदस्यीय समिति भी गठित की गर्इ। इसमें विशेष राजस्व डा.एसएस सिंह व दो अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल किए गए। आज तक इस समिति ने कोर्इ जांच नहीं की है। मौके पर आने या अवैध कब्जे हटवाने का तो सवाल ही नहीं। समझ में नहीं आता कि वह कौन सी ताकत है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम में अफसरों के हाथ पांव बांध देती है।
सघर्ष के 18 बरस
मास्टर विजय सिंह का धरना इस 26 फरवरी को 18 वर्ष पूरे कर रहा है। विश्व के सबसे लंबे एकल व्यक्ति धरने के रूप में इसे लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स, इंडिया बुक आफ रिकार्ड्स तथा एशिया बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज किया जा चुका है। गिनीज बुक में इसे दर्ज करने की प्रक्रिया अभी प्रगति पर है। मुजफ्फरनगर कचहरी में डीएम कार्यालय के पास मास्टर जी सर्दी गर्मी और बरसात में लगातार इस तपस्या में लीन हैं। अनेक बार उन्हें शासन व प्रशासन की यंत्रणा भी झेलनी पड़ी। उन्हें उम्मीद है कि एक न एक दिन उनकी बात सुनी जाएगी। इस दौरान घर से उनका नाता टूटा हुआ है। वे अपना मृत्योपरांत अपना शरीर एम्स में दान कर चुके हैं। 33 साल की आयु में धरने बैठे मास्टर विजय सिंह अब 51 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन उनके जज्बे में जवानी अभी भी कायम है।
आसान नहीं आंदोलन की डगर 
मास्टर विजय सिंह को अपने आंदोलन में दबंगों के लगातार हमलों का सामना करना पड़ा। उन पर तथा उनके परिवार व साथियों पर हमले हुए। उनके एक साथी धीर सिंह हरिजन को फांसी पर लटकाकर मार दिया गया। घर में आग लगार्इ गर्इ। दबंगों से बचने के लिए उन्हें गांव छोडकर आना पड़ा। उनका परिवार भी गांव छोडकर दर-दर भटकता रहा। हालांकि परिजन पहले उनके इस आंदोलन का अर्थ नहीं समझ पाए। और उनका विरोध परिवार से भी होता रहा। आज भी परिवार उनके इस आंदोलन के साथ नहीं है। बस इतना भर है कि गांव में करीब 24 बीघा जमीन से उनका व परिवार के भरण पोषण योग्य पैसा मिल जाता है।
वीपी सिंह का आश्वासन भी फेल
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 2007 में यह मामला रखे जाने के बाद आश्वासन दिया था कि वे स्वयं इस जमीन से कब्जा हटवाकर उस पर हल चलवाएंगे। दुर्भाग्य से वीपी सिंह नहीं रहे और यह मुहिम अभी तक अधूरी है। तमाम राजनीतिक नेताओं ने उनकी मुहिम को सम्मान तो दिया, लेकिन कोर्इ भी इसके लिए पहल करने को सामने नहीं आया। एकला चलो की तर्ज पर मास्टर विजय सिंह चल रहे हैं।
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