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एक साल बाद फिर खुले केदारनाथ मंदिर के कपाट

केदारनाथ। 11वें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ के कपाट आज सुबह 6 बजे से भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए हैं। सरकारी सूत्रों के मुताबिक पहले जहां केदारनाथ धाम में लगभग पंद्रह हजार से ज्यादा लोग रुकते थे, वहीं अब सिर्फ ड़ेढ़ सौ लोगों के ही रुकने के इंतजाम हो पाया है। लोगों का कहना है कि प्रशासन की तैयारियां लगभग एक साल के बाद भी आधी अधूरी हैं। पिछले साल आई प्रकृतिक आपदा के बाद ये कपाट आम जनता के लिए पहली बार खोले गए हैं। बता दें कि पिछले साल 15-16 जून को केदारनाथ में हुई तबाही के लगभग एक साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन लोगों के जेहन में तबाही का मंजर अभी भी ताजा है। चारधाम यात्रा पर दैनिक ट्रिब्यून प्रकाशित जयसिंह रावत की पूरी रिपोर्ट पढ़िए... पिछले साल की खौफनाक यादों को लेकर इस साल का चारधाम यात्रा का सीजन आ गया। कपाटोद्घाटन से पहले बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने बदरीनाथ मंदिर को फूलों से लाद कर उसे दुल्हन की तरह सजा दिया है। सभी धर्मशालाओं और होटल-रेस्तरां को रंग रोगन कर हालात सामान्य दिखाये जा रहे हैं। इधर आपदाग्रस्त केदारनाथ मंदिर को भी सजा-संवार कर तीर्थयात्रियों की बाट जोहनी शुरू हो गयी है। मगर समूची केदारनाथपुरी में फैला वह लाखों टन मलबा अब तक नहीं हटा है। वह मलबा भी इन दिनों बर्फ की मोटी चादर के नीचे ढका हुआ है। जितना मलबा हटेगा, उतने ही अधिक सच ऊपर झांकेंगे और फिर लोगों को वही 16-17 जून 2013 का खौफनाक मंजर याद आयेगा। इस बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, एएसआई और भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग, जीएसआई की रिपोर्टें भी अमल के इंतजार में हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों को तो सबसे पहले तैयार कर दिया गया। सरकार और मंदिर समितियों ने चारों धाम तो सजा दिये मगर वहां पहुंचा कैसे जायेगा और पिछले साल की इतनी भयावह यादों को लेकर वहां कितने लोग पहुंचेंगे, ये सवाल गत वर्ष उजड़ी बदरीनाथ और केदारनाथ की वादियों में तैर रहे हैं। पिछले साल हजारों की जान लेने वाली आपदा की प्रेतछाया से बदरीनाथ और केदारनाथ घाटियों को मुक्ति मिलती नजर नहीं आ रही। बदरीनाथ और केदारनाथ पुरी के आसपास भी अभी बर्फ जमी है। कभी यात्रा सीजन शुरू होने से पहले ही ऋषिकेश से लेकर बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तक के लगभग 1350 कि.मी. लम्बे यात्रा मार्ग पर रौनक दिखने लग जाती थी। यात्रा शुरू होने से पहले ही लोग अपने ढाबों, होटलों और रेस्तरां को ठीकठाक करने लगते थे। यात्रा मार्ग के मकान भी रंगरोगन कर सजाये जाने लगते थे। लेकिन इस बार वह रौनक नजर नहीं आ रही है। केदारघाटी में लोग कहां से होटल, रेस्तरां और अपने ढाबे सजायेंगे क्योंकि विकराल मंदाकिनी पिछले साल सब कुछ बहा ले गयी। यात्रा मार्ग पर लोग इन छह महीनों में ही अपने पूरे साल की आजीविका जुटा लेते थे। जिनके पास होटल या ढाबा नहीं होता था, वे रोजगार के लिये यात्रा लाइन पर आ अपने श्रम से आजीविका कमाते थे। जिन विधवाओं के सिर से पति का साया उठ जाता था, उनके स्कूल जाने वाले बच्चे जून की छुट्टियों का इंतजार करते थे। ये बच्चे यात्रा मार्ग पर फल बेचने से लेकर होटल -रेस्तरां में वेटर का काम और घोड़ा-खच्चरों की लगाम पकड़ कर अपनी बेसहारा माताओं को सहारा देते थे। लेकिन वो कमाई के नन्हे हाथ भी पिछले साल काल के ग्रास बने। तिमंजिला होटलों के मालिक अब ढाबों में अपनी मंजिल खोज रहे हैं। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान है। एक अनुमान के अनुसार गढ़वाल मंडल में पर्यटन की 90 प्रतिशत आमदनी चार धाम यात्रा से होती है। आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने वाली संस्था, एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार आपदा से चरमराए पर्यटन उद्योग की वजह से हर साल इस व्यवसाय को लगभग 12,000 करोड़ रुपए के नुकसान अनुमानित है। पिछले साल तक ऋषिकेश में 9 परिवहन कंपनियों की साझा संस्था संयुक्त यातायात समिति के पास महीनों पहले बुकिंग आ जाती थी। इसी तरह टैक्सी वाले भी बेसब्री से यात्रा सीजन का इंतजार करते थे। लेकिन इस बार अब तक सब कुछ फीका-फीका सा नजर आ रहा है। परिवहन कंपनियां हर साल यात्रा सीजन में अपने किराये बढ़ाती थीं, लेकिन इस बार किसी की किराया बढ़ाने की हिम्मत नहीं पड़ी। परिवहन उद्योग के नेता संजय शास्त्री के अनुसार बसों के लिये पिछले साल तक महीनों पहले यात्रियों की बुकिंग आ जाती थी लेकिन इस बार परिवहन व्यवसायी अब तक इंतजार ही कर रहे हैं। चार धाम सड़कों की देखरेख का जिम्मा केंद्र सरकार के सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के पास है। उसने इन रास्तों को दुरुस्त करने के लिए 15 अप्रैल की डेडलाइन तय की थी लेकिन बीआरओ को समय से बजट ही नहीं मिला। बीआरओ वाले अब सड़कें दुरुस्त करने में जुटे हुए हैं। देहरादून में एक ट्रेवल एजेंसी के मालिक देवेंद्र सिंह चड्ढा कहते हैं, ‘सड़क ही नहीं है तो यात्रा कैसे होगी? आठ महीने गुजर चुके हैं लेकिन सरकार ने किया क्या है जो है वह पेपर पर है, जमीन पर तो कोई काम नहीं हुआ है। बदरीनाथ जाने को भी सड़क नहीं है।’ बीआरओ शिवालिक रेंज के मुख्य अभियंता केके राजदान का कहना है, ‘चार धाम यात्रियों की सुविधा के लिए ऋषिकेश-गंगोत्री, ऋषिकेश-बदरीनाथ और ऋषिकेश-केदारनाथ में सभी संकरे मार्ग टू-लेन बनाए जा रहे हैं। भैरोंघाटी-गंगोत्री मार्ग के चौड़ीकरण का काम अंतिम चरण में है। गंगोत्री में मार्ग के दोनों ओर लेबाई बनाई जा रही है, जिसमें 300 से अधिक वाहन एक साथ पार्क हो सकेंगे।’ चार धाम की यात्रा कर पुण्यलाभ कमाने की लालसा लिए हर साल फरवरी के दूसरे पखवाड़े तक हजारों तीर्थयात्री चार धाम यात्रा मार्ग पर स्थित होटल, अतिथिगृहों, धर्मशालाओं में अपनी बुकिंग करा लेते थे। इस साल स्थिति बिल्कुल विपरीत है। अभी तक जीरो बुकिंग है। होटल, ढाबे, टैक्सी ड्राइवर, पुजारी, खच्चर वाले- ऐसे लाखों स्थानीय कारोबारी विचलित और मायूस नजर आ रहे हैं। होटल एसोसिएशन उत्तरकाशी के अध्यक्ष अजय पुरी कहते हैं कि विगत वर्षों में चार धाम के यात्री दीपावली से पहले ही बुकिंग शुरू करा देते थे। अब तक तो यात्रा सीजन के शुरुआती दो माह के लिए होटल बुक भी हो जाते थे। इस बार अभी तक टूर आपरेटर्स ने कोई बुकिंग नहीं कराई है। उत्तरकाशी के जोशियाड़ा में गत वर्ष आपदा में धराशायी एक बड़े होटल के मालिक विशेष जगूड़ी कहते हैं कि वह खुद यहां किराए पर रहकर एक दूसरी जगह पर छोटा सा गेस्ट हाउस बना रहे हैं। लेकिन उन्हें लगता नहीं कि इस बार कोई यहां आएगा। उनका कहना है कि हर साल 15 जनवरी तक मई-जून की बुकिंग फुल हो जाती थी जो इस बार शून्य है। इधर बदरीनाथ मार्ग पर जोशीमठ में एक लाज चलाने वाले विनय डिमरी का कहना है कि सरकार कम से कम एक नीति तो बनाती जिससे पर्यटक आश्वस्त होते कि एक बार में कितने लोग केदारनाथ या बदरीनाथ जा पाएंगे।’ गढ़वाल मंडल विकास निगम के रीजनल मैनेजर आरडी उनियाल कहते हैं कि पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले में निगम के 41 गेस्ट हाउस हैं। इनमें से कुछ ध्वस्त हो गए हैं और कुछ क्षतिग्रस्त हो गए हैं। लोगों से इनक्वायरी आई है, लेकिन एक भी एडवांस बुकिंग चार धाम यात्रा के लिए नहीं मिली। यह सोचा जा रहा है कि आय के स्रोत बढ़ाने के लिए क्या किया जाए?’ चार धाम यात्रा के दौरान यात्रियों का बायोमीट्रिक्स रजिस्ट्रेशन कराने को लेकर इन दिनों कार्य जोरों पर चल रहा है। ऋषिकेश दफ्तर में आठ पंजीकरण काउंटर खोलने के बाद यात्रा मार्ग पर काउंटर निर्माण का कार्य अंतिम चरण में है। शासन ने ऋषिकेश में चार धाम यात्रा कराने वाले वाहनों को ग्रीन कार्ड भी जारी करने शुरू कर दिए परंतु अब तक इन वाहनों को श्रद्धालुओं का इंतजार है। इस बार वही लोग उत्तराखंड आने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं जिनके अपने परिजन पिछले वर्ष आई आपदा में लापता हो गए थे। उन्हें उम्मीद है कि थोड़ी बहुत तलाश करने के बाद संभव है कि उनके अपने बिछड़े हुए लोग मिल जाएं। राहत और पुनर्वास में ढिलाई के आरोपों की वजह से ही विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। इसी डर से नये मुख्यमंत्री हरीश रावत इस मामले में गंभीर नजर आ रहे हैं। यह भी सच है कि इसके लिए रावत ने यथासंभव प्रयास भी किया। मुख्य सचिव को पुनर्निर्माण के सत्यापन की जिम्मेदारी सौंपी गई और यात्रा मार्ग पर हजारों मजदूरों व लोक निर्माण विभाग को अत्याधुनिक उपकरणों के साथ उतारा गया है। दूसरी तरफ पुरोहित समाज ने पूरे देश में भ्रमण कर सुरक्षित उत्तराखंड-सुरक्षित यात्रा का संदेश दिया और श्रद्घालुओं से चार धाम यात्रा की अपील की। इसके बावजूद स्थिति जस की तस है। हरीश रावत यह भी कह चुके हैं कि जब तक आपदा प्रबंधन और पुनर्वास का काम संतोषजनक नहीं हो जाता वह देहरादून के आलीशान मुख्यमंत्री आवास में कदम भी नहीं रखेंगे। उन्होंने इस काम के लिए एक साल का लक्ष्य तय किया है। लेकिन अब जबकि यात्रा शुरू हो गयी है और यात्री गायब हैं तो ऐसे समय में चुनावों के कारण उनका ध्यान आपदा पर नहीं बल्कि वोटों पर टिका हुआ नजर आ रहा है। एक तो पांचों सीटों पर कांग्रेसियों को जिताने की जिम्मेदारी और ऊपर से पत्नी के हरिद्वार से मैदान में उतरने से चुनावी जिम्मेदारियों के दुगने हो जाने के कारण आपदा और निरापद यात्रा का मामला गौण हो गया है। चार धाम यात्रा को निरापद और सुचारु बनाने के दावों के बीच मौसम की अनिश्चितता भी कम चिन्ताजनक नहीं है। अपै्रल में भी रह-रहकर मौसम का मिजाज बिगड़ रहा है और चार धाम यात्रा मार्ग पर पुनर्निर्माण का कार्य बाधित हो रहा है। दूसरी ओर मौसम विभाग ने मौसम के सटीक पूर्वानुमान के लिए चार धाम क्षेत्रों के करीब रेडार लगाने का प्रस्ताव किया था, लेकिन उस पर भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस बीच विशेषज्ञों की चेतावनी है कि इस बार बरसात में और ज्यादा नुकसान हो सकता है। मौसम विभाग के निदेशक आनन्द शर्मा का कहना है कि पिछले वर्ष आपदा में मकान, दुकानें और सड़कें कमज़ोर हो चुकी हैं और जरा सी बारिश से ढह सकती हैं। यद्यपि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही आपदा के नाम पर सियासत न करने की बात तो कहते रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वे चार धाम यात्रा का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश में भी जुटे हैं। कुल मिलाकर, चार धाम यात्रा को सियासी दल भले ही नफा-नुकसान के तराजू में तोल रहे हों, लेकिन पहाड़वासियों के लिए यह अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है। यही नहीं, हरिद्वार और ऋषिकेश की आर्थिकी के साथ ही पर्यटन की धुरी भी चार धाम यात्रा पर टिकी है। सवाल उठ रहा है कि क्या पिछले साल की अकल्पनीय त्रासदी की अत्यंत खौफनाक यादों को भूल कर इस बार भी उतनी ही बड़ी संख्या में और उतने ही उत्साह के साथ लोग इन हिमालयी तीर्थों पर पुण्यलाभ के लिये आ पायेंगे? देश के कोने-कोने से आये हुए लगभग पौने दो लाख यात्री जब वापस लौटे होंगे तो उन्होंने अनुभव जरूर सुनाये होंगे। उन भयावह अनुभवों को सुनने के बाद भी श्रद्धालुओं की इन चार धामों के प्रति आस्था पर उत्तराखंडवासियों की आस्था अब भी कायम है।
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