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‘मिशन केदार वैली’ जस की तस, सरकार कन्फ्यूज

देहरादून (अलका मिश्रा झा)। केन्द्र सरकार ने खजाने का मुंह खोल रखा है। राज्य सरकार बार-बार अपनी प्रतिबद्धता दोहरा रही है। अन्य प्रदेश की सरकारें भी हर संभव मदद को तैयार है। इसके बावजूद उत्तराखंड में आई आपदा की जमीनी सच्चाई यह है कि एक माह बीतने के बाद भी ‘मिशन केदार वैली’ जस की तस है। घाटी में एक साथ कई मोर्चे पर काम कर रही सरकार दुविधा में है और अब तक अपनी प्राथमिकता भी तय नहीं कर पाई है। उत्तराखंड में 15-16 जून को आई आपदा ने प्रदेश सरकार की नाकामी, अदूरदर्शिता और अक्षमता की पोल खोल दी है। खासकर केदार वैली में हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि केदार वैली को लेकर सरकार अपनी प्राथमिकता ही तय नहीं कर पा रही है। काफी सरकार वैली के लिए नए मार्ग खोलने की बात करती है। कभी कहती है कि गौरीकुंड से केदारवैली तक रोप वे का निर्माण किया जाएगा। कभी सरकार वैली के लिए वैकल्पिक पैदल मार्ग खोजने का ऐलान करती है। अपने ही बयानों में उलझी सरकार यह तय नहीं कर पा रही है कि वैली में सबसे पहले करना क्या है? 15 जून को आपदा आने के बाद वैली में हजारों लोग लापता हो गए और दो सौ से अधिक मारे गए। इसके साथ ही वैली में हजारों लोग फंस गए। सेना की मदद से इन लोगों को बाहर निकालने और मलवे के ऊपर पड़े शवों के निस्तारण का काम लगभग 29 जून तक पूरा हो गया। उसके बाद सरकार ने यह दावा किया था कि जल्द ही जेसीबी मशीन के साथ वैली में टीम भेजी जाएगी। यह टीम मलवे को हटाकर उसमें दबे शवों को बाहर निकालेगी और उसका अंतिम संस्कार करेगी। इस तरह वैली को मलवे और शवों से खाली कराने के बाद वहां पुनर्निर्माण का कार्य होगा। इस दावे की हकीकत यह है कि अब तक वैली में मशीन के नाम पर एक पेचकस तक नहीं पहुंचा है। इस बीच तीन टीमें वैली जा चुकी है और नाकाम होकर लौट चुकी है। अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए सरकार यह दावा करती है कि खराब मौसम के कारण मिशन वैली पर ब्रेक लगा हुआ है। तो क्या यह मान लिया जाए कि एक मौसम ने पूरी सरकारी मिशनरी को पंगु बना दिया है? देखा जाए तो मौसम एक बहाना है। अब तक शासन को यह भी पता नहीं कि वैली में कौन सा दल भेजा गया है और उस दल के पास किस तरह के उपकरण हैं। अब सरकार यह कह रही है कि मलवे में दबे शवों को निकालने के लिए किस तरह के मशीन की जरूरत होगी इसके लिए जीएसआई और एएसआई विभागों से सलाह लेनी पड़ेगी। सवाल यह है कि यही सलाह पहले ही क्यों नहीं ली गई। मिशन वैली की असफलता सरकार की विफलता ही नहीं सामरिक दृष्टि से एक बड़ी चूक मानी जा रही है। क्योंकि सीमा तक पहुंच चुका चीन इस कमजोरी को नजदीक से देख रहा है। उधर,, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कहते हैं कि मौसम प्रतिकूल होने के कारण वैली में कामकाज रुका हुआ है। वैली से जुड़ी दो टीमें जिसमें एनडीआरएफ और पुलिस के जवान शामिल हैं, गरुड़चट्टी और गुप्तकाशी में कैम्प कर रहे हैं। इन दोनों स्थानों पर सेना के तीन और सिविल के तीन यानी कुल छह हेलीकॉप्टर तैयार खड़े रखे गए हैं। मौसम ठीक होते ही मिशन वैली फिर से शुरू होगी।
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