ऋषिकेश (राम महेश मिश्र)। बीते सप्ताह अपने माता व पिता से अलग हो गई बच्ची की पूरी परवरिश करने का जिम्मा लेने की पेशकश तीर्थनगरी के परमार्थ निकेतन आश्रम ने की है। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती ‘मुनि जी महाराज’ की प्रेरणा से यह निर्णय आश्रम ने लिया है। आश्रम बच्ची की देख-रेख, पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, शादी-ब्याह आदि की सभी जिम्मेदारियां संभालेगा। आश्रम प्रतिनिधि एवं डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की प्रमुख साध्वी भगवती सरस्वती ने बच्ची को गोद लेने की पहल की है। बच्ची इन दिनों दून अस्पताल के डाक्टरों की देखरेख में देहरादून में है।
परमार्थ प्रवक्ता ने बताया कि आश्रम प्रतिनिधि राम महेश मिश्र ने दून अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा.आरएस असवाल से इस बाबत बात की। परमार्थ निकेतन ने इसके लिए अपना लिखित आग्रह भी दून हास्पिटल को भेज दिया है। इसके लिए शासन द्वारा निर्धारित प्रावधान के अनुसार कार्यवाई की जायेगी और राज्य सरकार का समाज कल्याण विभाग इसकी अन्तिम स्वीकृति प्रदान करेगा। सब कुछ अनुकूल रहा तो यह बच्ची ‘ऋषिकेश की गुडि़या’ बन जायेगी। उन्होंने बताया कि परमार्थ निकेतन में निवास एवं सेवा कर रही डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की मुखिया साध्वी भगवती सरस्वती ने इस बच्ची को गोद लेने की पहल की। भारत और भारतीय संस्कृति से अनूठा अनुराग रखने वाली साध्वी भगवती सरस्वती मूलतः केलीफोर्निया (अमेरिका) की निवासी हैं और पिछले 18 वर्षों से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में रहकर देश, धर्म व संस्कृति की सेवा कर रही हैं।
श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने समाचार-पत्रों में इस बच्ची से सम्बन्धित समाचार पढ़कर दून अस्पताल के चिकित्सकों की सराहना की और परमार्थ आश्रम के इस निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ईश्वर करे कि बच्ची को उसके माता-पिता मिल जायें और वह अपने परिवार में पहुंच जाए। दून अस्पताल इसके लिए बेहतर प्रयास कर रहा है तथा हमारा मीडिया भी बच्ची को टेलीविजन पर दिखाकर देश भर को इसकी सूचना दे रहा है। लेकिन यदि उसके माता-पिता और परिवार का कोई पता नहीं चल पाया तो परमार्थ निकेतन अपने इस निर्णय पर बखूबी काम करेगा और उसका भविष्य उज्ज्वल बनाने तथा उसे देश का उत्कृष्ट नागरिक बनाने के समस्त प्रयास किए जायेंगे। श्री मुनि जी महाराज ने बच्ची के उज्ज्वल भविष्य की कामना की है।
उल्लेखनीय है कि कुछ वर्षों पहले सुनामी से पीडि़त परिवारों के एक सौ से अधिक ऐसे बच्चों, जिनके माता व पिता दैवीय आपदा में काल-कवलित हो गए थे, के पुनर्वास और शिक्षा की उचित व्यवस्था परमार्थ निकेतन द्वारा वहीं पर की गई थी। सभी लड़के और लड़कियाँ विद्याध्ययन कर रहे हैं। आश्रम के इस सफल प्रयास को दक्षिण भारत में बड़ी सराहना मिली है।
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