पटना। राष्ट्रीय जनता दल बिहार सरकार के खिलाफ़ 15 मई को पटना में ‘परिवर्तन महारैली’ नाम से एक रैली कर रहा है। इसे सफल बनाने में राजद ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है। पटना के गांधी मैदान तक जाने वाली तमाम सड़कों और शहर के सभी चौक-चौराहों को बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बैनर-पोस्टर से पाट दिया गया है। इससे पहले यहां इतनी भारी तादाद में किसी पार्टी-रैली के प्रचार वाले होर्डिंग और बैनर-पोस्टर नहीं लगे थे। राज्य के विभिन्न हिस्सों से लोगों को पटना लाने और वापस ले जाने के लिए पार्टी ने अपने खर्च पर तेरह रेलगाड़ियों की सेवाएं उपलब्ध कराई हैं। इतनी व्यापक तैयारी के मद्देनज़र इस रैली में भारी भीड़ जुटने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसी सिलसिले में कई ऐसे सवाल भी उभरे हैं, जो ' लालू राज ' की वापसी होने या नहीं होने के कारणों से जुड़े हैं। पहला बड़ा सवाल ये है कि क्या लालू प्रसाद को दो दशक पहले जैसा अवसर और जनाधार आज भी हासिल हो सकता है? उस समय उन्हें ' सामाजिक न्याय ' के नारे के तहत पिछड़ी जातियों की एकजुटता और मुस्लिम-यादव समीकरण जैसी सियासी ताक़त मिली हुई थी।
माना जा रहा है कि इस रैली के जरिए लालू अपने बेटे को राजनीति में उतार सकते हैं। पंद्रह वर्षों के उस राज-पाट के दौरान जहां दलित-पिछड़े तबक़ों में अधिकार-बोध और आगे बढ़ने का हौसला बढ़ा, वहीं शासन-शक्ति के दुरूपयोग वाले ढेर सारे अशुभ लक्षण भी उभरते चले गए। ख़ास कर स्व-परिवार केन्द्रित सत्ता सुखभोग और चारा घपले के आरोपों में फंसे लालू प्रसाद के सितारे मलिन होने लगे। रेल मंत्री रहने तक जो उनकी चमक बाक़ी थी, बाद में वो भी मंद पड़ गयी। अब आठ साल पुरानी नीतीश सरकार के कमज़ोर पक्षों से उपजे जनाक्रोश में लालू प्रसाद अपनी सत्ता-वापसी की संभावना देख रहे हैं। इसलिए लंबी शिथिलता के बाद पिछले कुछ महीनों से वो सक्रिय हुए हैं। 15 मई की 'परिवर्तन रैली' के ज़रिये लालू प्रसाद के दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव को उभारने का सुनियोजित प्रयास भी साफ़ दिख रहा है। इस कारण ख़ुद राजद के कई बड़े नेता असहज हो उठे हैं। अनौपचारिक बातचीत में वह कहते हैं कि लालू जी ने अपने कथित परिवार मोह के अतीत से सबक नहीं सीखा है। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना है कि लालू जी के साले एस-2 (साधु यादव और सुभाष यादव ) की जगह अब टी-2 (तेजस्वी और तेज प्रताप) आ रहे हैं।
जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद शिवानंद तिवारी मानते हैं कि लालू प्रसाद किसी भी हालत में अपना परिवार मोह और अपनी पुरानी आदत नहीं छोड़ सकते। सत्ता में वापसी का सपना लालूजी भले ही देख रहे हों लेकिन वो कभी साकार होने वाला नहीं है। कारण है कि दोनों पति-पत्नी के शासन काल में जैसी अराजकता, अपराध और विकासहीनता वाला माहौल बना, उसका भय और आतंक लोगों के मानस में अब भी क़ायम है। इसमें दो राय नहीं कि बिहार में विकल्पहीनता की मौजूदा राजनीतिक स्थिति जदयू-भाजपा गठबंधन को रास आ रही है। उसे मिल रही चुनौती एकमात्र और कमज़ोर राजद की ही है।
शायद इसलिए माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के सवाल पर अगर भाजपा-जदयू गठबंधन टूटा, तो बिहार की भावी सत्ता-राजनीति में जदयू और भाजपा ही सत्ता पक्ष और मुख्य विपक्ष की भूमिका में होंगे। लेकिन ऐसी स्थिति में ये भी संभव हो सकता है कि मुक़ाबले का त्रिकोण बन जाय और उसमें लालू यादव का राजद एक मज़बूत कोण की शक्ल में उभर आए। राजद के पक्षधर इस 'परिवर्तन रैली' में वैसा ही कोई संकेत ढूंढने का प्रयास करेंगे और विरोधियों की नज़र 'परिवारवाद' जैसी नुक्स तलाशी पर ज़्यादा होगी। (साभार)
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