अलका मिश्रा झा, देहरादून। उत्तराखंड के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) ने कहा है कि अदालती लड़ाई में इसलिए सरकार को हारना पड़ता है क्योंकि सिस्टम में कई खामियां है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार जब कोई निर्णय लेती है तब उसकी वस्तुनिष्ठता पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसका नतीजा यह निकलता है कि निर्णय को कोर्ट में चुनौती दे दी जाती है और अदालत का फैसला सरकार के खिलाफ जाता है। इसके लिए पैरोकारी को जिम्मेदार ठहराना गलत है। मसूरी में आयोजित दो दिवसीय महाधिवक्ताओं के सम्मेलन के समापन के बाद देहरादून पहुंचे महाधिवक्ता वीके उनियाल ने सचिवालय में पत्रकारों से कहा कि 20 वर्ष बाद ऐसा आयोजन हुआ है। इस सम्मेलन में विचार के लिए किसी खास विषय को नहीं चुना गया था। सभी प्रदेश के महाधिवक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान प्रदत्त भूमिका को सरकारी अधिवक्ता गंभीरता से लें और निष्ठापूर्वक उसका पालन करें। उन्होंने कहा कि अगला सम्मेलन अक्टूबर में गोवा में होगा। उक्त सम्मलेन का एजेंडा पहले से तय होगा। देश में तीन करोड़ से अधिक लंबित मुकदमो के बारे में उन्होंने कहा कि सरकारी एजेंसियां कानून का क्रियान्वयन ठीक से नहीं करती हैं। इस कारण आम जनता को न्याय के लिए कोर्ट जाना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि उत्तराखंड की सरकार ने राज्य आंदोलन कारियों के लिए सरकारी नौकरी का प्रावधान किया था। इस नियम का ठीक से पालन नहीं हुआ और कई आंदोलनकारी नौकरी से वंचित रह गए। जिन्हें नौकरी नहीं मिली वे सरकार पर उंगली उठाते हुए कोर्ट में वाद दायर कर दिया। उनियाल ने कहा कि नौकरी देने में यदि पारदर्शिता बरती जाती तो सरकार को इस मामले में कोर्ट में पेश नहीं होना पड़ता। कई मामलों में सरकार सही निर्णय नहीं लेती और आबादी का एक बड़ा हिस्सा उससे प्रभावित होता है। ऐसी स्थिति में सरकार के निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी जाती है। चूंकि सरकारी की ओर से बुनियादी गलती होती है इस कारण लाख प्रयास के बाद कोर्ट में उसे हारना पड़ता है। इसके लिए महाधिवक्ता या सरकारी अधिवक्ता की पैरोकारी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
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