अलका मिश्र झा, देहरादून। उत्तराखंड में वीआईपी गाड़ियों से लालबत्ती हटाने तथा दिल्ली जाने वाले महानुभावों और नौकरशाहों के साथ चलने वाले एस्कार्ट में कटौती की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। हालांकि इसके लिए प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का इंतजार कर रही है जो सात जुलाई को आने वाला है। दिल्ली कांड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरत जताई थी कि एक तरफ जहां आम आदमी को सुरक्षा देने के लिए पुलिस बल का अभाव है वहीं वीआईपी सुरक्षा के नाम पर पुलिसकर्मियों का बेजा इस्तेमाल हो रहा है। इस स्थिति में कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि संवैधानिक प्रावधानों के अतिरिक्त उन लोगों की सुरक्षा में लगे गनर वापस ले लिए जाएं जिनकी जान को वास्तव में कोई खतरा नहीं है। साथ ही कोर्ट ने गाड़ियों पर लालबत्ती लगाने और वीआईपी की सुरक्षा में चलने वाले पुलिस के वाहनों को लेकर भी गाइड लाइन जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उत्तराखंड शासन के गृह विभाग ने अब तक सवा सौ लोगों की सुरक्षा में लगे गनर वापस ले लिए हैं। इस सूची में कुछ माननीय, विश्वविद्यालयों के कुलपति, आयोगों के अध्यक्ष, नेता आदि शामिल हैं। गृह विभाग के सूत्रों का कहना है कि गनर वापस लिए जाने के बाद अब लालबत्ती हटाने का अभियान शुरू होगा। इस अभियान के लिए परिवहन विभाग को पहल करना पड़ेगा। गृह विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कापी बुधवार को परिवहन विभाग को भेज दिया है। परिवहन विभाग से कहा गया है कि कोर्ट की मंशा के अनुरूप लालबत्ती हटाओ अभियान शुरू किया जाए। इसमें आवश्यकता पड़ने पर पुलिस बल उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया गया है। गृह विभाग के सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि दिल्ली जाने वाले वीआईपी, जनप्रतिनिधियों और खास नौकरशाहों के साथ चलने वाले एस्कार्ट में भी कटौती की जाए और इसके बारे में एक हलफनामा कोर्ट में प्रस्तुत किया जाए। बताया गया है कि कोर्ट के आदेश के अनुरूप यह सूची तैयार की जा रही है कि किन-किन वीआईपी को दिल्ली जाते समय एस्कार्ट की सुविधा दी जाएगी। प्रमुख सचिव गृह ओम प्रकाश का कहना है कि गनर वापस लेने, लालबत्ती हटाने और एस्कार्ट कम करने के मामले में सात जुलाई को हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दिया जाएगा। आगे की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर होगी। संभव है कि कुछ और लोगों को गनर की सुविधा की श्रेणी से हटाया जाए।
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