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नवरात्र पर विशेषः पढ़िए सिद्ध चमत्कारिक मंत्र

मनुष्य ऐसा प्राणी है जो कभी तृप्त नहीं होता है। वर्तमान में मनुष्य ने अपने जीवन को इतनी आवश्यकताओं से घेर लिया है कि वह उनमें ही उलझा रहता है। ऐसे मनुष्यों के लिए समस्याओं को हल करने के लिए सरलतम मंत्र दे रहे हैं। जो नवरात्रि में करने से सफलता मिलती है एवं समस्या से छुटकारा मिलता है। दुर्गा सप्तशती में श्लोक, अर्धश्लोक और उवाच मिलकर 700 मंत्र है। जो कि सारे जगत को अर्थ, काम, धर्म, मोक्ष प्रदान करते हैं। जो जिस कामना से श्रद्धा एवं विधि के साथ सप्तशती का परायण करता है। उसे उसी भावना और कामना के अनुसार निश्चय ही फल सिद्धि मिलती है। पावन नौ दिनों के लिए ऐसे दिव्य मंत्र दिए जा रहे हैं, जिनके विधिवत परायण करने से स्वयं के नाना प्रकार के कार्य व सामूहिक रूप से दूसरों के कार्य पूर्ण होते हैं। इन मंत्रों को नौ दिनों में अवश्य जाप करें। इनसे यश, सुख, समृद्धि, पराक्रम, वैभव, बुद्धि, ज्ञान, सेहत, आयु, विद्या, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य सभी की प्राप्ति होती है। विपत्तियों का नाश होगा। 1. विपत्ति-नाश के लिए : शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्पापहरे देवि नारायणि नमोस्तुते।। 2. भय नाश के लिए : सर्वस्वरूपे सर्वेश सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि, दुर्गे देवि नमोस्तुते।। 3. पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिए : नमेभ्य: सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। 4. मोक्ष की प्राप्ति के लिए : त्वं वैष्णवी शक्तिरन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया। सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भूवि मुक्ति हेतु:।। 5. हर प्रकार के ‍कल्याण के लिए : सर्वमंगल्यमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।। 6. धन, पुत्रादि प्राप्ति के लिए : सर्वबाधाविनिर्मुक्तो-धनधान्यसुतान्वित: मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।। 7. रक्षा पाने के लिए : शूलेन पाहि नो देवि पाहि खंडे न चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।। 8. बाधा व शांति के लिए : सर्वबाधाप्रमशन: त्रैलोक्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्यद्धैरिविनाशनम्।। 9. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए : पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।। चैत्र नवरात्रि व्रत-पूजन का विधान व्रत की कथाः- माँ दुर्गा द्वारा रक्तबीज, महिषासुर आदि दैत्यों का वध आदि शक्ति माँ दुर्गा की जयकार और भक्त तथा देवगणों की रक्षा व कल्याण। इसी कल्याण के उद्देश्य से प्रतिवर्ष नवरात्रों में माँ की पूजा आराधना व यज्ञानुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। दुर्गा सप्तशत‍ी माँ की आराधना का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ है। चैत्र नवरात्रों का महत्व :- वैदिक ग्रंथों में वर्णन हैं कि जीव व जीवन का आश्रय, इस वसुधा को बचाएँ रखने के लिए युगों से देव व दानवों में ठनी रहीं। देवता जो कि परोपकारी, कल्याणकारी, धर्म, मर्यादा व भक्तों के रक्षक है। वहीं दानव अर्थात्‌ राक्षस इसके विपरीत हैं। इसी क्रम में जब रक्तबीज, महिषासुर आदि दैत्य वरदानी शक्तियों के अभिमान में अत्याचार कर जीवन के आश्रय धरती को और फिर इसके रक्षक देवताओं को भी पीड़ित करने लगे तो देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन कर उसे नाना प्रकार के अमोघ अस्त्र प्रदान किए। जो आदि शक्ति माँ दुर्गा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं। भक्तों की रक्षा व देव कार्य अर्थात्‌ कल्याण के लिए भगवती दुर्गा ने नौ दिनों में नौ रूपों जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा को प्रकट किया। जो नौ दिनों तक महाभयानक युद्ध कर शुंभ-निशुंभ, रक्तबीज आदि अनेक दैत्यों का वध कर दिया। भगवती ने भू व देव लोक में पुनः नवचेतना, कल्याण, ओज, तेज, साहस, प्राण व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। बिना शक्ति की इच्छा के एक कण भी नही हिल सकता। त्रैलोक्य दृष्टा भगवान शिव भी (इ की मात्रा, शक्ति) के हटते ही शिव से शव (मुर्दा) बन जाते हैं। सूर्य, शिव, आदि पुराणों में शिव व शक्ति की परम कल्याणकारी कथाओं का बड़ा अद्भुत व रोचक उल्लेख है। युग-युगांतरों में विश्व के अनेक हिस्सों में उत्पन्न होने वाली मानव सभ्यता ने सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधे, पर्वत व सागर की क्रियाशीलता में परम शक्ति का कहीं न कहीं आभास मिलता है। उस शक्ति के आश्रय व कृपा से ही देव, दनुज, मनुज, नाग, किन्नर, गंधर्व, पितृ, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी व कीट आदि चलायमान हैं। ऐसी परम शक्ति की सत्ता का सतत्‌ अनुभव करने वाली सुसंस्कृत, पवित्र, वेदगर्भा भारतीय भूमि धन्य है। सनातन हिन्दू धर्म जिसमें गृहस्थ जीवन को बसाना, सुयोग्य जीवन साथी के साथ शास्त्रीय मर्यादा में विवाह आदि रचाना एक धार्मिक कृत्य है जिसके सूत्रों में बंध कर व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम तथा जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। हमारे वेद, पुराण व शास्त्र गवाह हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की है, तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि जैसे दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देव गणों ने एक अद्भुत शक्ति संपन्न देवी का सृजन किया जो आदि शक्ति माँ जगदम्बा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री बनीं। जिन्होंने दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनः प्राणशक्ति का संचार कर दिया। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे चैत्र व शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष नवरात्रि का पवित्र पर्व 4 अप्रैल 2011, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा; सोमवार से प्रारंभ हो रहा है। जीवन की रीढ़ कृषि व प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनों ही ऋतुओं में लहलहाती हुई फसलें खेत-खलिहान में आ जाती हैं। इन फसलों के रखरखाव व कीट पंतगों से रक्षा हेतु, परिवार को सुखी व समृद्ध बनाने तथा कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने के लिए सभी वर्ग के लोग नौ दिनों तक विशेष सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए नौ देवियों की आराधना, हवनादि यज्ञ क्रियाएँ करते हैं। यज्ञ क्रियाओं द्वारा पुनः वर्षा होती है जो धन, धान्य से परिपूर्ण करती है तथा अनेक प्रकार की संक्रमित बीमारियों का अंत भी करती है। इस कर्मभूमि के सपूतों के लिए माँ 'दुर्गा' की पूजा व आराधना ठीक उसी प्रकार कल्याणकारी है, जिस प्रकार घने तिमिर अर्थात्‌ अंधेरे में घिरे हुए संसार के लिए भगवान सूर्य की एक किरण। जिस व्यक्ति को बार-बार कर्म करने पर भी सफलता न मिलती हो, उचित आचार-विचार के बाद भी रोग पीछा न छोड़ते हो, अविद्या, दरिद्रता, (धनहीनता) प्रयासों के बाद भी आक्रांत करती हो या किसी नशीले पदार्थ भाँग, अफीम, धतूरे का विष व सर्प, बिच्छू आदि का विष जीवन को तबाह कर रहा हो। मारण-मोहन अभिचार के प्रयोग अर्थात्‌ (मंत्र-यंत्र), कुल देवी-देवता, डाकिनी-शाकिनी, ग्रह, भूत-प्रेत बाधा, राक्षस-ब्रह्मराक्षस आदि से जीना दुभर हो गया हो। चोर, लुटेरे, अग्नि, जल, शत्रु भय उत्पन्न कर रहे हों या स्त्री, पुत्र, बाँधव, राजा आदि अनीतिपूर्ण तरीकों से उसे देश या राज्य से बाहर कर दिए हों, सारा धन राज्यादि हड़प लिए हो। उसे दृढ़ निश्चय होकर विश्वासपूर्वक माँ भगवती की शरण में जाना चाहिए। स्वयं व वैदिक मंत्रों में निपुण विद्वान ब्राह्मण की सहायता से माँ भगवती देवी की आराधना तन-मन-धन से करना चाहिए। नवरात्रि में माँ भगवती की आराधना अनेक साधकों ने बताई है। किंतु सबसे प्रामाणिक व श्रेष्ठ आधार 'दुर्गा सप्तशती' है। जिसमें सात सौ श्लोकों के द्वारा भगवती दुर्गा की अर्चना-वंदना की गई है। नवरात्रि में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ दुर्गा सप्तशती के श्लोकों द्वारा माँ-दुर्गा देवी की पूजा, नियमित शुद्वता व पवित्रता से की या कराई जाएँ तो निश्चित रूप से माँ प्रसन्न होकर इष्ट फल प्रदान करती हैं। इस पूजा में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व है। कलश स्थापना- राहु काल, यमघंट काल में नहीं करना चाहिए। इस पूजा के समय घर व देवालय को तोरण व विविध प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजा, सुन्दर सर्वतोभद्र मंडल, स्वास्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना विधवत शास्त्रोक्त विधि से करने या कराने तथा स्थापित समस्त देवी-देवताओं का आह्वान उनके 'नाम मंत्रो' द्वारा कर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए जो विशेष फलदायिनी है। ज्योति जो साक्षात्‌ शक्ति का प्रतिरूप है उसे अखंड ज्योति के रूप में शुद्ध देशी घी (गाय का घी हो तो सर्वोत्तम है) से प्रज्ज्वलित करना चाहिए। इस अखंड ज्योति को सर्वतोभद्र मंडल के अग्निकोण में स्थापित करना चाहिए। ज्योति से ही आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलते हैं। अखंड ज्योति का विशेष महत्व है जो जीवन के हर रास्ते को सुखद व प्रकाशमय बना देती है। नवरात्रि में व्रत का विधान भी है जिसमें पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों तक व्रत रखा जा सकता है। इस पर्व में सभी स्वस्थ व्यक्तियों को श्रद्धानुसार व्रत रखना चाहिए। व्रत में शुद्ध शाकाहारी व्यंजनों का प्रयोग करना चाहिए। सर्वसाधारण व्रती व्यक्तियों को प्याज, लहसुन आदि तामसिक व मांसाहारी पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए। व्रत में फलाहार अति उत्तम तथा श्रेष्ठ माना गया है। नवरात्रि में अपेक्षित नियमः पवित्रता, संयम तथा ब्रह्मचर्य का विशिष्ट महत्व है। धू्म्रपान, माँस, मंदिरा, झूठ, क्रोध, लोभ से बचें। पूजन के पूर्व जौ बोने का विशेष फल होता है। पाठ करते समय बीच में बोलना या फिर बंद करना अच्छा नहीं है, ऐसा करना ही पड़े तो पाठ का आरम्भ पुनः करें। पाठ मध्यम स्वर व सुस्पष्ट, शुद्ध चित्त होकर करें। पाठ संख्या का दशांश हवनादि करने से इच्छित फल प्राप्त होता है। दूर्वा (हरी घास) माँ को नहीं चढ़ाई जाती है। नवरात्रि में पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों का व्रत अपनी सामर्थ्य व क्षमता के अनुसार रखा जा सकता है। नवरात्रि के व्रत का पारण (व्रत खोलना) दशमी में करना अच्छा माना गया है, यदि नवमी की वृद्धि हो तो पहली नवमी को उपवास करने के पश्चात्‌ दूसरे 10वें दिन पारण करने का विधान शास्त्रों में मिलता है। नौ कन्याओं का पूजन कर उन्हें श्रद्धा व सामर्थ्य अनुसार भोजन व दक्षिणा देना अत्यंत शुभ व श्रेष्ठ होता है। इस प्रकार भक्त अपनी शक्ति, धन, ऐश्वर्य व समृद्धि बढ़ाने, दुखों से छुटकारा पाने हेतु सर्वशक्ति रूपा माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना कर जीवन को सफल बना सकते हैं। (साभार)
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