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पीएम के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा की नियुक्ति पर रार

नई दिल्ली। सरकार और विपक्ष की पहली भिड़ंत का कारण संभवत: प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव होंगे। शुक्रवार को तब इसका संकेत मिल गया, जब ट्राई संशोधन कानून लोकसभा में पेश किए जाने से पहले ही विपक्षी दलों ने इस पर मुखर विरोध जता दिया। सदन में चुप्पी साधे बैठी रही कांग्रेस ने वोटिंग के दौरान दोनों सदनों में विरोध की बात कहकर राजग सरकार के लिए बेचैनी बढ़ा दी है। हालांकि, सरकार विधेयक पारित कराने को लेकर आश्वस्त है। इसके लिए पर्दे के पीछे कवायद भी शुरू हो गई है। हालांकि, यह तय है कि विपक्ष इस मौके पर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इस विरोध को दबाव की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। गौरतलब है कि पहली कुछ नियुक्तियों में ही नृपेंद्र मिश्रा को पीएमओ में प्रधान सचिव बनाया गया था। इसके लिए एक अध्यादेश लाकर भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के कानून में संशोधन भी किया गया था। दरअसल, ट्राई कानून के अनुसार अध्यक्ष रहे व्यक्ति की कभी भी सरकार में कोई नियुक्ति नहीं हो सकती थी। गौरतलब है कि 1967 बैच के नृपेंद्र मिश्रा 2006-2009 के दौरान ट्राई के अध्यक्ष रह चुके हैं। संशोधन को कानूनी जामा पहनाने के लिए ही शुक्रवार को लोकसभा में विधेयक पेश किया गया। हालांकि, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के संशोधन विधेयक पेश करने से पहले ही तृणमूल कांग्रेस ने नियमों का हवाला देकर इसका विरोध किया। साथ ही आशंका जताई कि ऐसे संशोधन के बाद ट्राई भी निष्पक्ष नहीं रह जाएगा। कुछ अन्य सदस्यों ने भी बिल पर विरोध जताया। रविशंकर प्रसाद ने विरोध को अनुचित ठहराते हुए कहा कि विधेयक पेश करते हुए सिर्फ इसकी संवैधानिकता पर ही सवाल उठाया जा सकता है। सरकार को अधिकार है कि वह विधेयक पेश करे। बाद में विधेयक ध्वनिमत से पेश तो हो गया, लेकिन आगे की राह फिलहाल आसान नही है। कांग्रेस महासचिव ऑस्कर फर्नाडिस ने सदन से बाहर इस विधेयक पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक व्यक्ति के लिए इतना बड़ा बदलाव किया जाना सही नहीं है। संशोधन के घातक परिणाम हो सकते हैं। लिहाजा, पार्टी इसके खिलाफ वोटिंग करेगी। गौरतलब है कि राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है। क्षेत्रीय राजनीति के कारण अगर दूसरे छोटे दल भी दूर रहे तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। सूत्रों की मानी जाए तो कांग्रेस के विरोध को दबाव की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है। अगर सरकार नेता विपक्ष का पद कांग्रेस को दे तो उसका रुख सहयोगी हो सकता है, जबकि सरकार फिलहाल किसी दबाव में नहीं आना चाहती है। कोशिश होगी कि राज्यसभा में दूसरे छोटे दल सरकार का समर्थन करें। फिर भी यह तय है कि इस मसले पर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव दिखेगा जरूर।
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