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गोरखपुर में सियासी हवा की ‘बेरुखी’ से भाजपा के मेयर उम्मीदवार सीता ‘रामभरोसे’!

गोरखपुर। बहुत तेजी से मौसम बदल रहा है। सियासी मौसम भी। गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ है, फिर भी हवा का रूख अनुकूल नहीं है। हम चर्चा कर रहे हैं गोरखपुर नगर निगम चुनाव में भाजपा के मेयर पद के उम्मीदवार सीताराम जायसवाल की। योगी का गढ़ होने के नाते कोई खुलकर तो भाजपा का विरोध नहीं कर रहा है, लेकिन दबी जुबान चर्चाएं सीताराम जायसवाल के खिलाफ ही है। वजह स्पष्ट है, पिछले एक वर्ष से यहां के कारोबारियों, व्यापारियों का कामकाज ठपप्राय है। पहले नोटबंदी ने तबाही मचाई और रही-सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी। इसलिए कहा जा रहा है कि यदि आज जैसे हालात मतदान के दिन तक बने रहे तो सीताराम जायसवाल की सियासी नैया मंझधार में फंस सकती है। आपको बता दें कि गोरखपुर से नगर निगम प्रत्याशी के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता धर्मेन्द्र सिंह को मैदान में उतारने की चर्चा चल रही थी। पर, नोटबंदी-जीएसटी से परेशान व्यापारियों को खुश करने और वोटिंग समीकरण के मद्देनजर अचानक मेयर पद के प्रत्याशी के रूप में सीताराम जायसवाल के नाम पर मुहर लग गई। उधर, धर्मेन्द्र सिंह व उनके समर्थक चुनाव की तैयारी में लगे हुए थे, लेकिन जायसवाल का नाम सामने आते ही धर्मेन्द्र समर्थकों का उत्साह ठंडा पड़ गया। यह संकेत भाजपा के भीतर गहरी पैठ रखने वाले नेताओं की ओर से मिले हैं। दूसरी तरफ महानगर के ज्यादातर व्यापारी अपना धंधा चौपट होने के कारण जबर्दस्त गुस्से में है, लेकिन सीएम योगी के डर की वजह से वह अपने गुस्से का खुलकर इजहार नहीं कर पा रहे हैं। इतना ही नहीं, व्यापारी वर्ग सीताराम जायसवाल को वोट देने की बात भी कर रहा है, लेकिन उन्हें हराने के लिए गांठ भी बांधे हुए है। कुल मिलाकर आज की तारीख में सीताराम जायसवाल के खिलाफ माहौल है, पर माहौल किसके पक्ष में है, इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। खास बात यह भी है कि गोरखपुर से भाजपा का मेयर बनाना सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। शहर की राजनीति को ठीक से समझने वाले कहते हैं कि यदि सबकुछ इसी तरह मतदान के दिन तक चलता रहा तो सीताराम जायसवाल का चुनाव ‘रामभरोसे’ ही होगा। क्योंकि शहर के बहुसंख्यक व्यापारियों में भाजपा के प्रति गुस्सा है, जो नकारात्मक चुनाव परिणाम के रूप में सामने आ सकता है। हालांकि सीताराम जायसवाल के पक्ष में हवा बनाने के लिए कुशल मीडिया प्रबंधन का प्रयास भी चल रहा है, लेकिन वह सिर्फ कुछ गिने-चुने अखबारों तक ही सीमित है, जो प्रयाप्त नहीं है। क्योंकि शहर का एक बड़ा वर्ग अखबार के बजाय सोशल मीडिया व न्यूज पोर्टल्स पर ही ज्यादा ध्यान दे रहा है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि सिर्फ अखबारों के सहारे हवा का रूख बदला जा सकता है। बहरहाल, देखना यह है कि दबी जुबान भाजपा की मुखालफत में जुटे महानगर के बड़े व्यापारी वर्ग पर सीएम योगी आदित्यनाथ का कितना असर पड़ता है। क्योंकि सीताराम जायसवाल का विजय-पराजय सीएम के प्रभाव पर ही निर्भर है।
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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