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फिजां में तैर रहा शालिनी यादव का नाम, सहमी सपा-भाजपा कि क्या होगा अंजाम?

मेयर चुनाव में कांग्रेसी दिग्गज श्यामलाल यादव की सियासी पृष्ठभूमि से बिगड़ सकता है अन्य दलों का गेम 
 राजीव रंजन तिवारी 
वाराणसी। नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था- ‘अगर जीतना है तो आगे बने रहने का गुर सीखना होगा।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय सीट बनारस में एक पुराने सियासी घराने की अंगड़ाई ने नेपोलियन के उक्त वाक्य को याद करने के लिए विवश किया है। हम चर्चा कर रहे हैं दशकों पूर्व जन-जन में लोकप्रिय रहे कांग्रेसी दिग्गज स्व.श्यामलाल यादव की। श्यामलाल यादव जानते थे कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप जनहित के कार्यों से मतदाताओं के दिल में किस तरह पैठ बनाकर सियासत की अग्रणी पंक्ति में अपनी कुर्सी सुरक्षित रखी जा सकती है। राजनीति से गहरा रिश्ता रखने के बावजूद इस दिग्गज सियासी घराने का कोई सदस्य उनके बाद किसी तरह का कभी चुनाव नहीं लड़ा। अब स्थानीय निकाय चुनाव के अंतर्गत बनारस में मेयर पद के लिए बतौर कांग्रेस प्रत्याशी शालिनी यादव का नाम फिजां में तैर रहा है। हालांकि इस बाबत अभी पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक संकेत नहीं मिले हैं, पर श्यामलाल यादव की बहू और अरूण यादव की पत्नी शालिनी यादव के नाम की गूंज ने सपा-भाजपा के रणनीतिकारों के होश फाख्ता कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि यदि सबकुछ सामान्य रहा और स्व.श्यामलाल यादव की सियासी पृष्ठभूमि के मद्देनजर कांग्रेस ने शालिनी को अपना उम्मीदवार बना दिया तो बेशक परिणाम चौंकाने वाला होगा, जो केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकारों की पेसानी पर पसीना ला सकता है। स्थानीय राजनीति को जानने वाले कहते हैं कि नगर निगम में मेयर पद पर काबिज होने को बेताब कांग्रेस शायद अब राज्य सभा के पूर्व उप सभापति स्व.श्यामलाल यादव की बहू शालिनी यादव को प्रत्याशी बनाने की सोच रही है। बता दें कि बनारस और आसपास के इलाकों में स्व.श्यामलाल यादव के नाम की गहरी पैठ है। उनका नाम लोग बड़ी इज्जत से लेते हैं तथा उनकी चर्चा के क्रम में उन्हें ‘बाबूजी’ कहकर पुकारते हैं। परिवार की बिरादरी में भी अच्छी-खासी पकड़ है। कहा जा रहा है कि इन्हीं वजहों से कांग्रेस श्यामलाल यादव की बहू शालिनी यादव पर दांव लगाने की तैयारी में है। बता दें कि 1995 से अब तक के मेयर के चार चुनावों में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। लेकिन इस बार पार्टी पूरी मुस्तैदी से इस कोशिश में है कि किसी तरह इस पद पर काबिज हुआ जाए। इसके पीछे बीजेपी के इन 22 वर्षों के कामकाज को भी देखा जा रहा है। खास तौर पर निवर्तमान मेयर के कार्यकाल को। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि इस बार उनके पास अच्छा मौका है जिसे वह भुना सकते हैं। बताते हैं कि कांग्रेस ने पहले बनारस के प्रतिष्ठित चौरसिया परिवार पर दांव लगाया लेकिन किन्हीं कारणों से बात नहीं बनी तो अब श्यामलाल यादव के परिवार के साथ बातचीत शुरू की गई है। समझा जा रहा है कि शालिनी का नाम लगभग फाइनल स्थिति में है। इस संबंध में स्व.श्यामलाल यादव के सबसे छोटे पुत्र अरुण यादव ने कहा कि पार्टी हित में उनसे जो हो सकेगा करने को तैयार हैं। परिवार का पुराना कांग्रेसी इतिहास रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी शालिनी यादव मूलतः गाजीपुर की रहने वाली हैं। अग्रेजी से बीए ऑनर्स के साथ उन्होंने लखनऊ से फैशनडिजाइनिंग में डिप्लोमा किया है। फिलहाल वह एक मीडिया हाउस चला रही हैं। वैसे अगर जातीय आंकड़ों की बात करें तो नगर निगम वाराणसी क्षेत्र में करीब ढाई लाख जायसवाल वैश्य समाज के मतदाता हैं तो सवा दो लाख के करीब मुस्लिम हैं। निगम के 90 वार्डों में से 12 वार्ड यादव बहुल हैं। तकरीबन 80 हजार यादव मतदाता हैं। ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ, वैश्य को मिला लें तो करीब पांच लाख मतदाता हैं। उधर, पटेल मतदाताओं की तादाद शहर में बमुश्किल 35-40 हजार है। इस जातीय गणित पर भी कांग्रेस की नजर है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को पता है कि बीजेपी के उम्मीदवार पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री अमर नाथ यादव मेयर बन सकते हैं तो किसी यादव प्रत्याशी को उतारना कहीं ज्यादा मुनासिब होगा।
समाजवादी पार्टी और भाजपा में बढ़ी बेचैनी 
सपा के उद्भव काल के पूर्व से ही बनारस में यादव जाति स्वयं में अपना नेता बनाने की हैसियत में रहा है। फलतः स्व.श्यामलाल यादव मुगलसराय से न सिर्फ विधायक चुने गए बल्कि कांग्रेस ने इस जाति को संतुष्ट करने के लिए इन्हें तीन बार राज्यसभा सांसद बनाया। तत्पश्चात तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी ने स्व.श्यामलाल यादव को राज्यसभा का उप सभापति भी बनाया। इंदिरा गांधी के निधन के बाद जब स्व.राजीव गांधी के हाथ में सरकार और कांग्रेस की कमान आई तो उन्होंने श्यामलाल यादव को वाराणसी लोकसभा सीट दी और चुनाव जीतने के बाद केन्द्र में मंत्री बनाया। वहीं कांग्रेसी दिग्गज स्व.श्यामलाल यादव के जवाब में भाजपा ने भी अमरनाथ यादव को खड़ा किया तथा अमरनाथ को विधायक, मंत्री और मेयर तक बनाया। बताते हैं कि सपा के उद्भव काल के उपरांत स्व.श्यामलाल यादव ने पहले नगर निगम में बिमला ग्वाल (यादव) को मेयर का चुनाव लड़वाया लेकिन वह लगभग एक लाख 32 हजार वोट पाकर भी चुनाव हार गईं। बावजूद इसके वाराणसी में स्व.श्यामलाल यादव का वर्चस्व कायम रहा। दिलचस्प यह है कि प्रदेश में सपा की दो बार सरकार भी बनी लेकिन कथित रूप से यादव जाति का विश्वास खो देने के कारण वह वाराणसी में मेयर सीट पर काबिज नहीं हो सकी। सपा ने सरकार में रहते हुए पहले विजय जायसवाल को मेयर का चुनाव का लड़वाया जो एक लाख 09 हजार वोटर पाकर हार गए। बाद में सपा ने कन्हैया लाल गुप्ता पर दांव खेला, लेकिन वे भी महज 43 हजार वोट पा सके और चुनाव हार गए। इससे सिद्ध होता है कि यादव जाति का मतदान के दौरान विभाजन हुआ। जानकार बताते हैं कि बनारस में यह माना जाता है कि यादव जाति जब सपा के साथ मजबूती से खड़ी नहीं होती तो मुस्लिम सुस्त पड़ जाता है। इसी स्थिति का लाभ उठाकर पिछले मेयर चुनाव में बनारस से भाजपा जीत गई जबकि कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। कांग्रेस से बाबूजी यानी स्व.श्यामलाल यादव की पुत्रवधू शालिनी यादव के इस बार मेयर पद के लिए प्रत्याशी बनने की संभावना से ही यह चर्चा आम हो गई है कि यादव और मुस्लिम लगभग 50 फीसदी अभी से शालिनी के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। इसे स्व.श्यामलाल यादव की शानदार सियासी पृष्ठभूमि वाले पैठ का असर माना जा रहा है जो इन दोनों तबकों में तकरीबन पांच दशकों तक रही है। आपको बता दें यादव जाति दशकों से अपनी जाति के नेता को चुनता रहा है लेकिन पिछले दो बार से सपा द्वारा बनिया को मेयर प्रत्याशी बनाने से वह दबाव में है। यही स्थिति कमोबेश भाजपा में भी है। दरअसल, स्व.श्यामलाल यादव की पैठ बनारस के अमूमन हर वर्ग में थी। स्वाभाविक है, उनकी सहानुभूति का लाभ कांग्रेस की संभावित मेयर प्रत्याशी शालिनी यादव को मिलेगा। बताते हैं कि पूर्व में हुए चुनावों में यादव वर्ग भाजपा को भी वोट देता आया है, लेकिन भाजपा द्वारा किसी यादव जाति के नेता को समुचित सम्मान न देने से इस बिरादरी में मायूसी है। सूत्रों का कहना है कि अमरनाथ यादव भाजपा में हैं, लेकिन कथित रूप से उपेक्षित हैं। राजनीति के जानकार बताते हैं कि शालिनी यादव पर कांग्रेस द्वारा खेले जाने वाले संभावित सियासी दांव ने सपा-भाजपा दोनों को बेचैन कर दिया है। चौक-चौराहों और आम चर्चाओं के हिसाब से माना जा रहा है कि यदि शालिनी यादव कांग्रेस से प्रत्याशी बन जाती हैं तो भाजपा समेत अन्य दलों का बनारस में सियासी गणित चित हो जाएगा। हालांकि बाबूजी यानी श्यामलाल यादव के पुत्र व शालिनी यादव के पति अरुण यादव राजनीति में सक्रिय हैं, बावजूद इस दिग्गज राजनीतिक घराने से अभी तक किसी ने चुनाव नहीं लड़ा। यद्यपि इलाके में गहरी पैठ रखने वाले स्व.श्यामलाल यादव के समर्थक चाहते हैं कि उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़े तो उसे वोट देकर ‘बाबूजी’ के प्रति आस्था व समर्पण दिखाई जाए। (इनपुट साभार पत्रिका)
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