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राहुल की इस ‘अदा’ पर कोई क्यों न फिदा हो जाए?

राजीव रंजन तिवारी 
दस नवम्बर को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि गुजरात में उनकी (राहुल) रैलियों में आने वाली भीड़ को देख यह स्पष्ट हो गया है कि जनता ने उन्हें स्वीकारना शुरू कर दिया है। पवार ने कहा कि जो सत्ता में हैं उन्होंने राहुल गांधी का मजाक उड़ाया था, लेकिन आज उल्टा हो रहा है। लोग आज उन्हें स्वीकार कर रहे हैं और उनकी रैलियों में भारी संख्या में भीड़ जुटने लगी है। इतना ही नहीं वैचारिक रूप से कांग्रेस की धुर विरोधी पार्टी शिवसेना के प्रमुख उद्ध ठाकरे ने भी कुछ दिन पहले राहुल गांधी की यह कहते हुए तारीफ की थी- ‘राहुल गांधी एक काबिल नेता हैं। उनमें प्रधानमंत्री बनने और देश को सही दिशा में ले जाने की क्षमता है।’ इसी बीच बीते दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस के हर स्तर तक के नेताओं को यह कड़ा निर्देश दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर किसी भी सूरत में निजी कटाक्ष अथवा मौखिक हमला नहीं करना है। निश्चित रूप से यह संदेश राहुल गांधी की नकारात्मक राजनीति न करने की दिशा में एक उम्दा पहल है। दिलचस्प यह है कि मौजूदा गुजरात के चुनावी मौसम में जहां गैर कांग्रेसी पार्टियां सोनिया-राहुल और गांधी-नेहरू परिवार पर सियासी हमले कर वोट बटोरने की कोशिश में हैं, इस दौर में राहुल का उक्त निर्देश न सिर्फ आम जनता बल्कि अन्य दलों को भी पसंद आ रहा है। शायद यही वजह है कि भाजपा और मोदी की तारीफ करने वाले कुछ राजनीतिक टीकाकार भी दबी जुबान से यह कहने लगे हैं कि राहुल गांधी की इस अदा पर कोई क्यों न फिदा हो जाए? गुजरात की सत्ता से करीब दो दशकों से वनवास झेल रही कांग्रेस इस बार उत्साह से लबरेज है और पार्टी इस बार सत्ता में आने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। इस बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे नकारात्मक प्रचार से दूर रहें। गुजरात के स्थानीय अखबारों ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं से कहा है कि सिर्फ पीएम नरेन्द्र मोदी को टारगेट करके प्रचार नहीं करना है। यानी मोदी पर निजी आक्षेप लगाने से बचना है। कांग्रेस के सूत्र बता रहे हैं यह राहुल गांधी का यह निर्देश पूरे देश के कांग्रेसी नेताओं पर लागू हो रहा है। इतना ही नहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पार्टी नेताओं को हिदायत दी है कि वे ऐसा कोई बयान न दें जिससे पार्टी की छवि खराब हो। पार्टी की आईटी सेल को भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सोशल मीडिया पर कैंपेन में नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले न किए जाएं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं और कारिंदों को चुनाव को सकारात्मक मुद्दों पर लड़ने का निर्देश दिया है। गुजरात में कांग्रेस के चुनाव प्रचार का थीम 'आपकी इच्छा, हमारा संकल्प' है। प्रचार में यह बताया जा रहा है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो उसकी प्राथमिकता क्या होगी। दरअसल, बीते वर्षों गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेसी नेताओं की तरफ से ऐसा कुछ न कुछ हो जाता था, जिसे बीजेपी लपक लेती थी। 2007 में तो खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान 2002 के गुजरात दंगों का हवाला देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' कह दिया था। जब कांग्रेस चुनाव हार गई तो विश्लेषकों ने इसके लिए सोनिया के बयान को भी जिम्मेदार बताया था। गौरतलब है कि इसी वर्ष विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान 09 फरवरी को कानपुर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साझा जनसभा की थी। इस दौरान राहुल की जुबान से कुछ ऐसा निकला जिसे सुनकर अचानक सब चौंक पड़े। स्थिति यह पनपी कि थोड़ी देर के लिए सभी उनके मुंह ताकते रह गए। दरअसल, जनसभा में आए लोग राहुल गांधी का भाषण शुरू होते ही ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे लगाने लगे। इस पर राहुल गांधी ने पीएम नरेन्द्र मोदी के खिलाफ नारेबाजी करने वालों को हिदायत दी कि ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे मत लगाइए। उनके इतना कहने भर की देर थी कि अखिलेश समेत वहां मौजूद तमाम लोग उनका मुंह ताकने लगे। सभी ने समझा कि राहुल ने ये क्या कह डाला। कानपुर में अपने भाषण की दमदार शुरुआत करते हुए राहुल ने सबको चौंकाया। फिर बीच में अचानक जनता ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे लगाने लगी तो राहुल ने ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे लगाने वालों को रोका और कहा ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे मत लगाओ.. रुक जाओ.. यहां ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे मत लगाओ। राहुल ने कहा अपना गुस्सा बचाकर कर रखो ये चुनाव में काम आएगा। जब आप वोट डालने जाएंगे तब ये गुस्सा वहां निकालना। राहुल ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा कि अपना किमती वोट मोदी को न देकर उन्हें हराइए और अपना गुस्सा जाहिर किजिए। यही सही तरीका है। ‘मोदी मुर्दाबाद’ के नारे लगाने से कुछ होने वाला नहीं है। जो लोग आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करते हैं, उन्हें करने दीजिए। राहुल का इशारा था कि नकारात्मक शैली ईजाद नहीं करनी है। पक्ष-विपक्ष सबको सम्मान देना है। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेताओं द्वारा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा जा रहा है। हाल ही सम्पन्न हुआ हिमाचल प्रदेश में मतदान से पूर्व भी प्रचार के दौरान भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेताओं ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर तरह-तरह के अनाप-शनाप आरोप लगाए। भाजपा के दिग्गज नेताओं द्वारा कांग्रेसी नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी और इनके पूर्वजों नेहरू-इंदिरा-राजीव तक को नहीं बख्शा गया। इसी के मद्देनजर यूपी कांग्रेस के उपाध्यक्ष दीपक कुमार और एक अन्य वरिष्ठ नेता पवन दीक्षित नेता सोशल मीडिया पर बड़ी विनम्रता से अलग-अलग पोस्ट डाली थी, जिसे काफी शेयर किया गया। उक्त पोस्ट में कहा गया था कि भाजपा के नेता अपने पूर्वज नेताओं की कथित कार्यशैली की चर्चा करके वोट क्यों नहीं मांग रहे है? वोट मांगने के लिए उन्हें नेहरू-गांधी परिवार के लोगों का सहारा लेना पड़ रहा है। इन कांग्रेसी नेताओं ने बजाप्ता गुरू गोलवलकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय आदि का नाम भी लिखा था। इन नेताओं का कहना था कि भाजपा को अपने इन दिग्गज नेताओं के नाम पर वोट मांगना चाहिए। भाजपा को यह बताना चाहिए कि उसके उक्त दिग्गज नेताओं ने देश के लिए क्या-क्या किया। खैर, मूल विषय यह है कि भाजपा के लोग (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत) जमकर कांग्रेस और राहुल गांधी पर भड़ास निकाल रहे हैं। भाजपा नेताओं द्वारा कांग्रेस के आला नेताओं के खिलाफ इस तरह के अपशब्दों के प्रयोग किए जा रहे हैं, जिसे जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। और तो और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ अनाप-शनाप बोलने में आगे है। स्वाभाविक है, पार्टी अध्यक्ष के पद चिन्हों पर ही अन्य नेता भी चलेंगे। 08 नवम्बर को नोटबंदी की बरसी के दिन अमित शाह ने नई दिल्ली में कहा कि राहुल गांधी त्रासदी निर्माता हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता को पचाने में असमर्थ कांग्रेस का ‘‘षडयंत्र विभाग’’ झूठी खबरें प्रसारित करने के अति सक्रिय मोड में है। इतना ही नहीं अमित शाह ने इंडियन नेशनल कांग्रेस कां नाम बदलकर ‘‘इनकरेक्ट न्यूज कांग्रेस’’ कर दिया। बहरहाल, चुनाव जीतें या हारे, पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का यह संदेश सुकून देने वाला है कि वे नकारात्मक राजनीति नहीं करना चाहते। अब सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी की इस शूचितापूर्ण सियासत के जवाब में भाजपा कौन सा कदम उठाती है और उसके नेता राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ की जाने वाली अपनी बयानबाजी को किस प्रकार परिमार्जित करते हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार हैं. संपर्क. 8922002003)
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