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नरेंद्र मोदी सरकार की इन गलतियों से कभी नहीं आ सकते अच्छे दिन!

देखते-देखते केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए, मगर अच्छे दिन का नामो-निशां तक नहीं मिला है 
नई दिल्ली। केंद्र में आज भले ही एनडीए की सरकार हो, लेकिन देश की जनता के अच्छे दिन नहीं आ सके हैं। भाजपा और नरेंद्र मोदी 2014 में आम चुनाव से पहले गुजरात मॉडल की बात करते थे। लोगों को यकीन दिलाते थे कि वह देश भर में भी वैसा ही मॉडल लागू कर विकास करना चाहते हैं। यही सोचकर जनता ने उन्हें एक मौका दिया और देश का प्रधानमंत्री चुना। देखते-देखते मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए, मगर अच्छे दिन का नामो-निशां तक नहीं मिला है। अच्छे दिनों की बात अब सिर्फ और सिर्फ जुमलों में ही सुनाई देती है, जिसके लिए मोदी सरकार के ही फैसले और नीतियां हैं। जिन चीजों को मोदी सरकार ने बड़े और सकारात्मक स्तर पर पेश किया। पूरे लब्बोलुबाब के साथ उन्हें लागू किया, वही असल में उसके लिए सबसे बड़ी समस्या बनीं। ये रहीं केंद्र सरकार की वे आठ गलतियां, जिनके कारण वह देश में अच्छे दिन नहीं ला सकी।
1- नोटबंदीः प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने देश का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया था। बगैर तैयारी के आठ नवंबर 2016 को एलान किया गया कि मध्यरात्रि से 500 और 1000 रुपए के नोट नहीं चलेंगे। सरकार का तब इसके पीछे तर्क था कि इससे ब्लैक मनी और आतंकी संगठनों की फंडिंग पर रोक लगेगी, जो कि नहीं हुआ। 30 अगस्त 2017 को रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में बताया गया कि 99 फीसद रुपए (500 और 1000 के नोट वाले) एक्सचेंज हो या फिर लौट आए। मतलब साफ है कि ब्लैक मनी रखने वालों ने भी इसमें अपने पैसे को काले से सफेद में तब्दील कर लिया। यही नहीं, अर्थव्यवस्था भी इससे दो फीसद तक की गिरावट आई थी। यह 7.5 फीसद से गिरकर 5.7 हो गई थी।  
2- स्मृति ईरानी को मानव संसाधन बनानाः मोदी सरकार की बड़ी भूलों में से एक था टीवी स्टार रहीं स्मृति ईरानी को मानव संसाधन और विकास मंत्रालय का भार सौंपना। वह खुद पढ़ाई को लेकर तब सवालों के घेरे में आई थीं। वह दावा करती थीं कि उनके पास येल यूनिवर्सिटी की डिग्री है। जब कि विवि ने साफ किया था- वह 2013 में हुए एक कार्यक्रम में महज एक हफ्ते तक शामिल हुई थीं। एजुकेश्नल क्वालिफिकेशन के अलावा वह अन्य विवादों में भी रहीं। आईआईटी और बाकी उच्च शिक्षण संस्थानों के निदेशकों के इस्तीफे को लेकर उनके कार्यकाल में बार-बार हस्तक्षेप किया था। आईआईटी में संस्कृत पढ़ाने और उसे जर्मन के बजाय पाठ्यक्रम में लाने का आइडिया भी उन्हीं का था।  
3- वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटलीः नरसिम्हा राव की सरकार की सफलता का अधिकतर श्रेय के लिए आज भी तब के मजबूत वित्त मंत्रालय का जिक्र किया जाता है। मगर मोदी सरकार में वित्त मंत्रलाय की साख पर कई बार सवालिया निशान लगे हैं। नोटबंदी के विफल होने के पीछे, जेटली का हाथ भी था। हर दिन तब नोटों के चलन के संबंध में नियम बदलते थे, जो बड़ी कमी के तौर पर उभर कर सामने आया। वह देश में कर व्यवस्था का प्रबंधन करने में भी नाकाम रहे। पेट्रोल पर 58 और डीजल पर 50 फीसद टैक्स लगने लगा, जो कि आम जनता की जेब पर डाका डालने जैसा है। पीएम के पास इस मंत्रालय के लिए और भी कई विकल्प थे, लेकिन उन्होंने जेटली जी को ही इसके लिए चुना।
4-डिजिटल इंडियाः देश में इंफ्रास्ट्रक्चर को स्थाई और सुरक्षित बनाने के लिए मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया अभियान बड़े स्तर पर लॉन्च किया। फिर भी निजी से लेकर कई सरकारी वेबसाइट्स हैक या क्रैश हुईं। ऐसा डाटाबेस को टीसीएस से एनआईपर प्लैटफॉर्म पर ट्रासंफर करने से हुआ। इस दौरान कई ब्लैकमी रखने वालों का डाटा या तो खो गया फिर डिलीट हो गया।  
5- गलत जगह पर पानी की तरह बहाए पैसेः किसी भी सरकार को देश के करदाताओं का पैसा बड़ी होशियारी से खर्चना चाहिए। लेकिन मोदी सरकार में यह बड़ी चूक के तौर पर देखा जा सकता है। मोदी सरकार ने विज्ञापन और अपनी इमेज की मैन्युफैक्चरिंग पर पानी की तरह पैसा बहाया। मसलन 3600 करोड़ रुपए से तैयार किया गया शिवाजी की प्रतिमा को ही ले लीजिए, जिसके लिए सरकार की खासा आलोचना हुई थी। अपने तीन साल पूरे होने पर सरकार ने दो हजार करोड़ रुपए कार्यक्रमों में फूंक दिए थे।  
6- सांप्रदायिक नफरत पर न लगा पाई लगामः अच्छे दिन न केवल लोगों की जेब में पैसों से आते हैं, बल्कि समाज में आपसी भाईचारे और सौहार्द की भावना से बनते हैं। मगर मोदी सरकार में धर्म आधारित राजनीति उफान पर रही। भाजपा देश भर में होने वाली सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर लगाम लगाने में नाकाम रही।
7- रेलवे पर नहीं दिया ध्यानः मोदी सरकार का सपना देश में बुलेट ट्रेन लाने का है। शायद इसलिए वह और उनकी सरकार रेलवे पर ध्यान नहीं दे रही है। हाल ही में मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन पर मची भगदड़, बीते दिनों कई ट्रेनों का बेपटरी होना और उनका देरी से आने पर अब तक रेलवे की खूब भद्द पिटी है। सुरेश प्रभु से मंत्रालय छीनकर पीयूष गोलय की इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गई, लेकिन रेलवे की हालत दुरुस्त करने को लेकर सरकार सजग नहीं दिख रही।  
8-काला धन की जमाखोरी पर कार्रवाई की कमीः प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर कहा था- न खाऊंगा, न खाने दूंगा। बेशक उनके दावों के मुताबिक सरकार भष्ट्राचार को लेकर बदनाम न हुई हो, लेकिन भ्रष्टाचार पर नकेल कसने और काला धन की जमाखोरी करने वालों पर अब तक वह चाबुक नहीं चला पाई है। पनामा पेपर्स सामने पर भी सरकार ने काला धन रखने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की। रॉबर्ट वाड्रा, ललित मोदी और विजय माल्या जैसों पर भी किसी प्रकार की बड़ी कार्रवाई न होना सरकार की इस मामले में उदासनीता को जगजाहिर करता है। साभार जनसत्ता
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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