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गोरखपुर में बाढ़ की अनसुनी कहानी, हर ओर जल पर नहीं है पीने को पानी

गोरखपुर शहर से सटे गांव डूहिया और इसके आसपास के इलाकों में अब संक्रामक बीमारी बढ़ने का खतरा, जलस्तर घट रहा है पर जनजीवन की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं 
सूरज सिंह 
गोरखपुर। महानगर गोरखपुर से महज़ 7 किमी दूरी पर स्थित गांव डूहिया और इसके आसपास के इलाकों की अनसुनी कहानी यह बयां कर रही है कि जनजीवन किस तरह पटरी से उतर चुका है। भले बाढ़ का पानी कम हो रहा है, लेकिन हाहाकार और समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। दरअसल, राप्ती नदी अमूमन हर वर्ष इस गांव में कहर बरपाती है। फलतः राप्ती के कहर से पैदा होने वाली समस्याओं के बीच जीने के लिए डूहिया और आसपास के लोग शायद अभ्यस्त हो चुके हैं। बताते हैं कि गांव की समस्या का स्थायी निदान न होने से जन-जन में खौफ का मंजर साफ देखा जा सकता है। दरअसल, राप्ती के तट पर बसे ड़ूहिया गांव की अच्छी-खासी आबादी है और यह अपने ग्रामसभा का प्रमुख गांव है। इस गांव में तकरीबन 300 मकान हैं। राप्ती नदी 15 साल पहले लगभग पांच किमी दूर थी, लेकिन इधर कुछ वर्षों में वह महज़ 100 मीटर की दुरी पर आ गई है। कुछ साल पहले इस नदी ने कई आशियानो को अपने अगोश में ले लिया था और ग्रामीण तथा प्रशासन के लोग इसे देखते रह गये। अब सवाल यह है क्या शासन-प्रशासन की अनदेखी और नदी का अक्रामक रूप इस गांव के अस्तित्व को तो खत्म नहीं कर देगा। कई बार विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हारने और जीतने वाले प्रत्याशी इस गांव के उत्थान की बात करते रहे हैं, पर परिणाम शून्य ही रहा है। हर बार गांव के लोगों को सिर्फ आश्वासन मिलता है और उसी के भरोसे यहां के लोग अपनी जिंदगी काटते हैं। यह अलग बात है कि बाढ़ के दौरान शासन-प्रशाशन से जुड़े लोग आते-जाते रहते हैं, गांव को बाढ़ से बचाने के लिए पैमाईश होती है, योजनाएं बनती हैं, पर सबके सब फाइलों में दबकर दम तोड़ देती है। यूं कहें कि परिणाम सिफर ही रहता है। इधर 20 वर्षों में बहुत कुछ बदल गया, पर की समस्याओं की सूरत नहीं बदली। खास बात यह है कि गांव डूहिया की समस्या को वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूरी तरह जानते हैं, लेकिन समस्याएं जस की तस बनी हुई है। गावं के लोग अपने सीएम से यह उमीद कर रहे हैं कि यहां ठोकर लग जाए ताकि गांव सुरक्षित रह सके, पर इस बारे में कुछ भी नहीं हो रहा है। गांव के प्रमुख लोग राकेश सिंह, रजीव सिंह, रामानांद सिंह, सूरज सिंह, आमित सिंह, किशन सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, सुरजीत, दूर्गेश आदि कहते हैं यदि गांव को बचाने के लिए समुचित उपाय नहीं हुए तो भविष्य में स्थिति और भी भयावह हो सकती है। दरअसल, इस बार के बाढ़ में पूरे गांव के मकानों में पानी में घुस चुका है। पूरे गांव में पीने का पानी नही है। शौच की व्यवस्था बदत्तर हो गई है। खासकर महिलाओं को बहुत समस्या हो रही है। पूरे गांव का जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है। खासकर बच्चो के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। बच्चों में बुखार, लूज मॉशन आदि की समस्याएं तेजी बढ़ रही है। बहरहाल, देखना है कि डूहिया की कब सुध ली जाती है।  
मुख्यमंत्री से बढ़ीं उम्मीदें 
गोरखपुर के सांसद आदित्यनाथ योगी के मुख्यमंत्री बनते ही गांव डूहिया की उम्मीदें परवान चढ़ गई हैं। लोग मुख्यमंत्री की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि योगी जी राप्ती की कहर से बचाकर डूहिया के वजूद कायम रखने में निश्चित ही कामयाब होंगे और यहां के लोगों के सपनों को पूरा करेंगे। लोगों को उम्मीद है कि महानगर गोरखपुर से महज़ सात किमी की दूरी पर स्थित राप्ती के तट पर बसा है गांव ड़ूहिया। ज़िसका अपना एक वजूद है। इस गांव की अच्छी-खासी आबादी है और यह अपने ग्राम सभा का प्रमुख गांव है। ताकरीबन 300 मकान वाले इस गावं में एक तो सुविधाओं का घोर अभाव है वहीं दूसरी राप्ती की कहर हमेशा लोगों को डराती रहती है। लोगों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इस गांव के कल्याण के लिए जरूर कुछ न कुछ करेंगे।  
मुसीबतें लेकर आई है बाढ़ 
गोरखपुर में आई बाढ़ कई मुसीबतें लेकर आई है। कई रास्तों पर आवागमन बाधित होने के चलते शहर में गैस सिलिंडरों की सप्लाई पर असर पड़ा है। इससे जितनी बुकिंग हो रही है, उतने सिलिंडर घरों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं। इस वजह से लोगों की परेशानी भी बढ़ी है। जिले में इंडियन ऑयल के डिस्ट्रीब्यूटर्स की संख्या 32 से ज्यादा है। ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर होने के कारण इसके उपभोक्ताओं की संख्या भी सबसे ज्यादा है। इस महीने बाढ़ के चलते गोरखपुर- लखनऊ मार्ग पर आवागमन ठप होने के कारण इंडियन ऑयल के सिलेंडर कई दिनों तक शहर में नहीं आ पाए थे। तभी से शुरू हुई किल्लत आज तक बनी हुई है।
दूध की सप्लाई में भी बाधा 
बाढ़ की चौतरफा मार से लोग परेशान हैं। कहीं खाने- पीने की किल्लत है, तो कहीं लोगों के घरों को काफी नुकसान हुआ है। बाढ़ की इस भीषण तबाही का साइड इफेक्ट अब लोगों के घरों में सप्लाई होने वाले दूध पर भी नजर आने लगा है। ओपन डेयरी और ग्वालों से दूध लेने वाले लोगों के घरों में रोजाना दूध नहीं पहुंच पा रहा है, जिससे लोगों को पैकेट के दूध पर ही निर्भर होना पड़ रहा है। इसकी वजह से पैकेट का दूध सप्लाई करने वाली डेयरीज का मार्केट शेयर 70 फीसद से ज्यादा हो चुका है। वहीं लोकल डेयरीज और ग्वालों की सप्लाई का आंकड़ा 40 फीसद गिर गया है। इससे अब ग्वालों और लोकल डेयरीज ने मैनेज कर दूध की सप्लाई करना शुरू कर दिया है। मार्केट में आई दूध की जबरदस्त किल्लत का असर लोगों को घरों में देखने को मिल रहा है। दूध की शॉर्टेज की वजह से डेयरी संचालक कुछ कस्टमर्स के घर दूध की सप्लाई पहुंचा पा रहे हैं, तो वहीं कुछ से हाथ जोड़ते नजर आ रहे हैं। डेयरी संचालक उत्तम दुबे की मानें तो दूध के उत्पादन में 40 फीसद कमी आई है, वहीं डिमांड का ग्राफ उछलकर दो गुने तक पहुंच गया है। इसकी वजह से दूध सप्लाई में परेशानी आने लगी है। इसका रास्ता यह निकाला है कि किसी दिन एक एरिया में सप्लाई रोककर दूसरे एरिया में की जा रही है। इस तरह अल्टरनेट सप्लाई से हर इलाके में सिर्फ एक दिन दूध नहीं पहुंच पा रहा है।  
मददगार भी मुसीबत में 
बाढ़ की आपदा झेल रहे लोगों को हर मुसीबत झेलकर भी एनडीआरएफ जवान मदद पहुंचा रहे हैं। आपदा के कहर से जूझ रही पब्लिक को जहां जिम्मेदार झिड़क दे रहे हैं, वहीं एनडीआरएफ के जवान बिना किसी रिएक्शन के गुस्साए लोगों को राहत का मरहम लगा रहे हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में शिद्दत से जुटे सैनिकों और एनडीआरएफ जवानों से पुलिस को सबक लेना चाहिए। 24 घंटे पब्लिक के बीच में रहने के बावजूद तमाम पुलिस कर्मचारी पब्लिक संग बदसलूकी से बाज नहीं आ रहे हैं। उनको पब्लिक के साथ ठीक से पेश आने की हिदायत रोजाना अफसरों को देनी पड़ती है। रोहिन नदी के किनारे मानीराम- बनरहां बांध टूटने से बाढ़ का पानी तबाही मचा रहा है। करीब 30 किलोमीटर के दायरे में मोहल्ले बाढ़ में डूबे हैं। 16 अगस्त की रात मानीराम- बनरहां बांध करमहां कला के पास दो जगहों पर कट गया। बांध कटने के बाद इस इलाके में सैलाब नजर आ रहा है। लोगों के बाढ़ में घिरने की सूचना पर जिला प्रशासन ने एनडीआरएफ को बुला लिया। 17 अगस्त को पहुंचे एनडीआरएफ के जवान लोगों की मदद में लगे हुए हैं। दो दिनों से पानी में फंसे लोगों के सामने खाने- पीने का संकट खड़ा हो गया। मकानों की छतों पर फंसे लोग राहत की बाट जोहते रहे। शुरुआती दो दिनों में समय से मदद न मिलने पर लोगों का गुस्सा भी भड़कता रहा। 18 अगस्त तक कई जगहों पर पीने के लिए पानी और भोजन का पैकेट नहीं पहुंच सका। इस वजह से आक्रोशित पब्लिक मदद में लगे जवानों से भिड़ने लगी। बालापार- टिकरिया रोड के विशुनपुर, जमुनिया में एनडीआरएफ की टीम पर पथराव हुआ। शिवपुर में पहुंची टीम पर लोगों ने पत्थर फेंके। लेकिन एनडीआरएफ के जवान बिल्कुल कूल बने रहे।
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