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लालू की इफ्तार पार्टी में पहुंचे नीतीश, पर तेवर में तल्खी कायम, कहा- ‘क्या बिहार की बेटी को हारने के लिए चुना गया है?’

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि वो राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का अपना फ़ैसला नहीं बदलेंगे. लालू यादव के घर इफ़्तार में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि उनका फ़ैसला सोच-विचार कर और विपक्षी पार्टियों से बात कर लिया गया है और वो इसे बदलने वाले नहीं हैं. बिहार की बेटी को समर्थन के सवाल पर उन्होंने कहा कि क्या मीरा कुमार का चयन हारने के लिए किया गया है. उन्होंने कहा कि मीरा कुमार के लिए उनके दिल में सम्मान है लेकिन अगर विपक्ष चाहता तो उन्हें पहले भी उम्मीदवार बना सकता था. इससे पहले लालू यादव ने पहले ही कहा था कि वो नीतीश को अपने फ़ैसले पर विचार करने के लिए फिर से कहेंगे. नीतीश ने कहा, 'इस मुद्दे पर किसने क्या कहा, इस पर मुझे प्रतिक्रिया नहीं देनी. हमें जो निर्णय लेना था हमने लिया. सब अपनी सोच के लिए स्वेतंत्र हैं.' गौरतलब है कि नीतीश के सहयोगी लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि नीतीश ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं और उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए. इफ्तार पार्टी में भाग लेने के बाद नीतीश ने संवाददाताओं से कहा, 'यह राष्ट्रपति का चुनाव है. यह टकराव का मुद्दा नहीं बनना चाहिए.' उन्होंने कहा, ''नतीजों को लेकर कोई शंका नहीं है. हमारे मन में 'बिहार की बेटी' (मीरा कुमार) के प्रति बहुत सम्मान है लेकिन सवाल यह है कि क्या बिहार की बेटी को हारने के लिए चुना गया है?'' नीतीश ने कहा, ''हमने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद यह फैसला किया. और जहां तक जदयू की बात है तो उसने हमेशा स्वतंत्र फैसले लिये हैं यहां तक कि जब राजग में थी, तब भी. हमने उस समय यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था.'' उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की कुर्सी राजनीतिक लड़ाई के लिए नहीं है. उन्होंने कहा, ''अगर आम-सहमति बन जाती तो अच्छी बात थी लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसे वाद-विवाद का विषय बनाना चाहिए.'' उन्होंने कहा, ''मैंने रामनाथ कोविंद से मुलाकात की थी और फिर सोनियाजी और सीताराम येचुरी जी से बात की और उन्हें अपनी इन भावनाओं से अवगत कराया कि रामनाथ कोविंदजी ने बिहार के राज्यपाल के रूप में प्रशंसनीय काम किया है. उन्होंने बिहार में बिना किसी पक्षपात के काम किया है. लालू ने शुक्रवार को दिन में कहा था कि विपक्षी दल अब भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं जो नीतीश कुमार ने देश को 'संघ मुक्त' बनाने के लिए सुझाया था. उन्होंने नई दिल्ली से पटना पहुंचने पर हवाईअड्डे पर संवाददाताओं से कहा, 'पता नहीं किस वजह से नीतीश कुमार अलग चले गये और आरएसएस के आदमी को समर्थन दे दिया.'' शाम को जब लालू से पूछा गया कि क्या उन्होंने नीतीश कुमार के साथ बात की तो उन्होंने कहा, ''यह ऐसे विषयों पर बोलने का अवसर नहीं है.'' भाकपा नेता एस सुधाकर रेड्डी ने कहा, ''हमने गोपाल कृष्ण गांधी का नाम सुझाया था लेकिन भाजपा ने एक बार फिर बैठक की बात कही थी. लेकिन उन्होंने हमसे सलाह मशविरा किये बिना रामनाथ कोविंद का नाम घोषित कर दिया.'' जब पूछा गया कि विपक्ष ने गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया तो रेड्डी ने कहा, ''हमने गांधी का नाम केवल सुझाया था. अगर भाजपा इस पर सहमत हो जाती तो हम उनका समर्थन करते.'' वाम दलों के सूत्रों के अनुसार यह भी हैरानी की बात है कि गुरुवार को जब दिल्ली में संयुक्त उम्मीदवार के नाम पर फैसला करने के लिए विपक्ष की बैठक हुई तो उनके सुझाये नामों पर विचार तक नहीं हुआ. सूत्रों के मुताबिक पहले विपक्षी एकता की वकालत करने वाली और बाद में कोविंद की उम्मीदवार का समर्थन कर रही जदयू की भी राय थी कि कोई गैर-कांग्रेसी प्रत्याशी बेहतर होता. सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस उम्मीदवार खड़ा करना जदयू को विपक्षी खेमे में वापस लाने के रास्ते में कठिनाई वाला साबित हो सकता है, भले ही मीरा कुमार बिहार से ताल्लुक रखती हैं. सूत्रों ने कहा, 'ऐसी भावना है कि कोई गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार होना चाहिए.'' नीतीश ने कहा कि जो भी निर्णय है, बहुत ही सोच समझ कर निर्णय लिया गया है और उसके पीछे बहुत ही स्पष्ट हमलोगों की अवधारणा है. हम ये मानते हैं और जैसा कि जब उनके नाम की घोषणा की गई, और जब मैं मननीय श्री रामनाथ कोविंद जी से मिलकर लौटा था तो मैंने उस समय जो बात कही थी, उसके पहले ही मेरी लालू जी से और सोनिया गांधी बात हुई थी. और तब हमने अपनी भावना से अवगत करा दिया था. और हमारी भावना बहुत स्पमष्टज है कि रामनाथ कोविंद की जो भूमिका बिहार में रही है एक राज्यजपाल के रूप में वह सराहनीय रही है. उन्होंने निष्पक्षता के साथ बिहार में काम किया. और बिहार के राज्यजपाल सीधे राष्ट्रापति बनने जा रहे हैं, यह भी एक प्रसन्नता की बात है. इसके पहले जाकिर हुसैन साहब बने थे लेकिन पहले उपराष्ट्रापति तब राष्ट्र पति. और देश के प्रथम राष्ट्रपति तो बिहार के ही थे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद. तो यह देखकर अच्छा लगा और मैंने अपनी भावनाएं साझा कीं. उसके बाद पार्टी के अंदर विचार कर यह निर्णय लिया गया कि यह राष्ट्रपति पद का चुनाव हो रहा है. मैं नहीं मानता कि इसे कोई विरोध का मुद्दा बनाना चाहिए. हम लोग अपनी ये बात विपक्षी दलों की हुई बैठक में जाकर भी कह सकते थे. लेकिन उसके एक दिन पहले कांग्रेस के वरिष्ठं नेता गुलाम नबी आजाद पटना आए और उन्होंने अपनी बात इतने स्पष्ट रूप से कही कि इसपर विचार ही नहीं करना है, तब यह मुनासिब ही नहीं लगा कि उस बैठक में जाकर और इस पर अनावश्यक चर्चा की जाए. क्योंकि जब मन पहले ही बता दिया, जबकि जब पहले दिन मैंने अपनी भावना प्रकट की थी तब ऐसा लगा था कि बैठकर बातचीत करेंगे. बैठकर अगर खुले मन से बातचीत करते तो हमलोग उसमें यह बात रखते कि राष्ट्रपति के चुनाव को इस प्रकार से विरोध का मुद्दा बनाने का कोई आवश्यकता नहीं है. 2019 के जीत की रणनीति बनानी चाहिए और कैसे मुकाबला करें. मैं समझता हूं यह 2019 के जीत की रणनीति नहीं है. ये तो तात्कालिक रूप से हार की रणनीति है. साभार एनडीटीवी
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