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उत्तर प्रदेश चुनाव के 'सियासी दंगल' में महिलाओं का दांव!

आशा त्रिपाठी 
अब ये बातें हैरत में डालने लगी हैं कि आखिर अचानक एसा क्या हो गया कि पुरुष प्रधान समाज में अचानक महिलाओं की अहमियत बढ़ गई। सड़क से लेकर सदन और घर से लेकर समाज तक महिलाओं को दोयम दर्जे का समझने वाला पुरुष वर्ग को शायद अब अहसास हो गया है कि बगैर महिलाओं के इस दौर में काम चलने वाला नहीं है। महिलाएं अपने हक के लिए वर्षों से संघर्ष कर रही हैं, पर उधर किसी का ध्यान नहीं है लेकिन जब पुरुषों का काम फंसने लगता है तब उन्हें महिलाएं याद आ जाती हैं। अफसोस यह भी है काम निकलने के बाद महिलाओं के प्रति पुरुषों का नजरिया फिर वही हो जाता है, जैसा परम्परागत रूप से देखा जाता रहा है। फिलहाल, पुरुषों को लग रहा है कि यदि महिलाओं को आगे कर दिया जाए तो सियासी बाजी जीती जा सकती है। यूपी के विधानसभा चुनाव में भी कुछ इसी तरह के हालात देखने को मिल रहे हैं। चाहे पार्टी कोई भी हो, उसने महिलाओं को ही आगे कर सियासी जंग जीतने की रणनीति बनाई है। हालांकि एसा कतई नहीं है कि उन दलों में दिग्गज पुरुष नेताओं की कमी है, पर पता नहीं क्यों अब उन दिग्गजों को भी यह लग रहा है कि डूबती सियासी नांव की साहिल महिलाएं ही हो सकती है। शायद यही वजह है कि यूपी के सियासी दंगल में महिलाओं का दांव ही भारी पड़ेगा। रणनीतिकारों का तो यही अनुमान है, पर परिणाम क्या होगा, यह तो 11 मार्च को ही पता चलेगा। सबसे पहले चर्चा कांग्रेस की कर रही हूं। कांग्रेस ने अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर ब्राह्मण महिला नेत्री व पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आगे किया। बेशक शीला दीक्षित जुझारू हैं, संघर्षशील हैं और उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले समाज में अपनी एक खास पहचान बनाई है। खैर, अब चर्चा है कि कांग्रेस और अखिलेश यादव खेमे के बीच सियासी तालमेल होने जा रहा है। इस तालमेल में भी महिलाएं ही मुख्य भूमिका में हैं। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश खेमे से कांग्रेस के तालमेल की बात को उनकी पत्नी डिम्पल यादव ही आगे बढ़ा रही हैं। कहा जा रहा है कि डिम्पल यादव द्वारा लगातार राहुल गांधी की बहन और और कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी से इस संबंध में बात की जा रही है। इसे बहुत जल्द राहुल गांधी और अखिलेश यादव इस तालमेल पर मुहर लगाने वाले हैं। इतना ही नहीं, सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि यदि अखिलेश खेमे से कांग्रेस के सीटों का तालमेल हो जाता है तो प्रियंका गांधी और डिम्पल यादव ही इस खेमे की स्टार प्रचारक होंगी। यही दोनों नेत्रियां एकसाथ मंच पर नजर आएंगी तथा लोगों से अपने खेमे को जीताने के लिए वोट मांगेंगे। यूपी की एक अलग सियासी ध्रूव बसपा के बारे में तो सबको पता है। वहां वन वोमेन शो चलता है। यानी वहां की साम्राज्ञी सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती हैं। मायावती के शासन काल में हुए प्रदेश में हुए विकास कार्यों को लोग अभी भुले नहीं हैं। इतना ही नहीं, मायावती का जुजारूपन भी उन्हें सबकी जेहन में याद रखता है। आमतौर पर लोग कहते हैं कि मायावती बहुत कड़क प्रशासक हैं। जब उनकी सरकार बनती है तो अपराध का बोलबाला कम हो जाता है और सरकारी अधिकारियों की घिग्घी बंध जाती है। जानकारों का कहना है कि महिलाओं को टिकट देने के मामले में भी मायावती अन्य दलों की अपेक्षा ज्यादा लचर स्वाभाव वाली हैं। यानी वे चाहती हैं कि महिलाएं आगे बढ़ें और अपने अधिकार की लड़ाई खुद लड़ें। मतलब ये कि मायावती अकेले अपने अन्य सियासी विरोधियों से टक्कर लेने को तैयार हैं। इसके लिए बसपा खेमे में भी लगातार रणनीतियां बनाई जा रही हैं। यूं कहें कि बसपा में भी नारी शक्ति यानी मायावती का ही अकेला बोलबाला रहेगा और पार्टी की स्टार प्रचारक वह खुद होंगी। अब बारी भाजपा की है। भाजपा को तो जैसे ये लग रहा है कि भले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी के स्टार प्रचारकर होंगे, पर चुनाव उन्हें महिलाएं ही जीताएंगी। आपको याद होगा कि बीते भाजपा के एक नेता दयाशंकर सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री बसपा प्रमुख मायावती पर अभद्र टिप्पणी कर दी थी। जिसे लेकर काफी बवाल हुआ। दयाशंकर सिंह को जेल भी जाना पड़ा। उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है। इसी दरम्यान दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह पूरे तेवर के साथ सियासत में प्रादुर्भाव हुआ। देखते-देखते स्वाति सिंह न सिर्फ मीडिया बल्कि पार्टी में भी खास लोकप्रिय हो गईं। नतीजा यह हुआ कि उन्हें आनन-फानन में उत्तर प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। जानकारों का कहना है कि भाजपा स्वाति सिंह को चुनाव प्रचार के दौरान एक स्टार प्रचारक की तरह उपयोग कर सकती है। बीच में यह भी शोर होने लगा था कि शायद कांग्रेस की शीला दीक्षित के मुकाबले भाजपा स्वाति सिंह को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी घोषित कर सकती है। पर एसा कुछ नहीं हुआ। फिलहाल भाजपा ने किसी को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। उल्लेखनीय है कि चुनाव और दंगल, दोनों में ही फैसला हार-जीत का होता है। चुनाव में यह फैसला मतदाता करते हैं और दंगल में पहलवानी दांव। यूपी के चुनावी दंगल में ज्यादा से ज्यादा मतदाता वोट डालें, इसके लिए जागरूकता कैंपेन चलाए जा रहे हैं। ऐसे में बलाली की पहलवान बहनों गीता और बबीता का यूपी का दंगल इंतजार कर रहा है। पहलवान बहनों को यूपी में मतदाताओं को जागरूक करते के लिए बुलाया गया है। इसके लिए 22 जनवरी को उन्हें मतदाता जागरूकता कैंपेन में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया है। हालांकि फिलहाल दोनों बहनें प्रो.रेसलिंग में हिस्सा ले रही हैं। उनके भाई राहुल फौगाट का कहना है कि उनके पास मेरठ जिला प्रशासन की तरफ से निमंत्रण आया है। 22 तारीख को यदि किसी अन्य कार्यक्रम में व्यस्त नहीं होगी तो गीता और बबीता जरूर मेरठ दंगल में शामिल होंगी। बचपन से लेकर युवा होने तक जिन बहनों ने पिता के सपने को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा कर मिसाल दी। कुश्ती जैसे खेल में जहां पहले से ही पुरुषों का वर्चस्व था, उस खेल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर अन्य युवतियों के लिए राह दिखाने वाली दादरी की रहने वाली गीता-बबीता का नाम सबकी जुबान पर है। उनपर, उनके पिता महावीर फोगाट और उनके संघर्ष पर हाल ही में बनी फिल्म दंगल लोगों को बेहद पसंद आई। इतना ही नहीं यूपी के बुंदेलखंड के चुनावी मैदान की तीन महिला खिलाडियों का नाम भी जोर पकड़ रहा है। बताते हैं कि संपत पाल, पुष्पा गोस्वामी और शीलू निशाद, ये तीनो अपने दम पर इस चुनाव के लिए अपनी दावेदारी ठोक रही हैं। बदोसा की एक आम औरत संपत पाल (50) ने अपने गुलाबी गैंग के बूते पर दूर-दूर तक अपनी पहचान बनाई। संपत इस चुनाव में कांग्रेस से टिकट मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर बांदा की पुष्पा गोस्वामी (48) जो बेलन फौज की मुखिया और भाजपा की समर्थक हैं। पुष्पा बांदा की गलियों में महिलाओं की मदद के लिए अपने बेलन फौज के साथ घूमती हैं। बेलन फौज की शुरूआत 2008 में हुई थी। संपत और पुष्पा की तरह ही शाहबाजपुर की शीनू (23) भी राजनीति में आने का सपना देख रही हैं। तेजतर्रार और आक्रामक तेवर वाली शीलू की कहानी दुखद है। 2011 में बसपा की सरकार के दौरान उसका विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी ने कथित रूप से रेप किया। शीलू तबसे ही अक्रामक है और राजनीति के माध्यम से बदला लेने को बेचैन हैं। बहरहाल, स्थितियां जो हों, पर महिलाओं का दांव इस चुनाव में भारी पड़ने वाला है।
(लेखिका चर्चित स्तंभकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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